मन में जले जो दीप अक़ीदत का दोस्तो
नभ अब्र से भरा हो निहाँ चाँदनी रहेतब जुगनुओं से ही यहाँ शबगर्दगी रहेमन में जले जो दीप अक़ीदत का दोस्तोउनके घरों में फिर न कभी तीरगी रहेकटते रहे शजर और बनते रहे मकाँ हर ही तरफ धुआँ है कहाँ आदमी रहेआकाश...
View Articleरास्तों को ग़र्द से पहचान लेती मुफ़लिसी
ग़ज़लबेबसी की ज़िन्दगी से ज्ञान लेती मुफ़लिसीमुश्किलों से जीतने की ठान लेती मुफ़लिसीआसमाँ के धुंध में अनजान सारे पथ हुएरास्तों को ग़र्द से पहचान लेती मुफ़लिसीबारिशों में भीगते वो सर्दियों में...
View Articleजिंदगी में हर किसी को है किसी का इन्तिज़ार
इन्तिज़ारसर्वशक्तिमान को है बंदगी का इन्तिज़ारजिंदगी में हर किसी को है किसी का इन्तिज़ारलाद कर किताब पीठ पर थके हैं नौनिहाल'वो प्रथम आए', विकल है अंजनी का इन्तिज़ारपढ़ लिए हैं लिख लिए हैं ज्ञान भी वे...
View Articleकरामात होती नहीं ज़िन्दगी में
निग़ाहों की बातें छुपाने से पहलेनज़र को झुकाए थे आने से पहलेनदी के किनारे जो नौका लगी थीबहुत डगमगाई बिठाने से पहलेजो आज़ाद रहने के आदी हुए थेबहुत फड़फड़ाए निभाने से पहलेकरामात होती नहीं ज़िन्दगी...
View Articleकोमल घरौंदे रेत के वो, टूटकर बिखरे रहे-हरिगीतिका
नौका समय की जब बनी वो, अनवरत बहने लगी |मासूम बचपन की कहानी, प्यार से कहने लगी ||कोमल घरौंदे रेत के वो, टूटकर बिखरे रहे |हम तो वहीं पर आस बनकर, पुष्प में निखरे रहे ||1||तरुणी परी बन खिलखिलाई, चूड़ियों...
View Articleधूप एक नन्हीं सी
धूप एक नन्हीं सीधुंध को ठेल करहवा से खेलकरधूप एक नन्हीं सीधरती पर आईबगिया के फूलों पर ओज फैलाती हैफुनगी पर बैठकरबच्चों को बुलाती हैसन्नाटों के भीड़ मेंउनको न देखकरकूद फांद भागकरकी है ढूँढाईधूप एक नन्हीं...
View Articleन्यु इयर
न्यु इयरमाँ के स्वर्गवास के बाद अवनि को मैके जाने का मन नहीं होता था| फोन पर भाई भाभी हमेशा उसे बुलाते किन्तु वह उदासीन भाव से मना कर देती| उसे लगता कि अब सभी भाई बहनों का अपना अपना परिवार है तो वह...
View Articleराह...
राह....राह अनगिन हैं जग मेंराह का ले लो संज्ञानकहीं राह सीधी सरलकहीं वक्र बन जातीकहीं पर्वत कहीं खाईकभी नदिया में समातीसभी पार कर लोगे बंधुत्याग चलो अभिमानकहीं मिलेंगे सुमन राह मेंकहीं कंटक वन...
View Articleसरकारी नौकरी के लिए रुझान-एक रिपोर्ट
पढ़ाई पूरी करने के बाद जब रोजी रोटी की बात आती है तो हमारे पास तीन विकल्प होते हैं|1बहुराष्ट्रीय कम्पनी/प्राइवेट की नौकरी2.सरकारी नौकरी3.स्वरोजगारफेसबुक पर मैंने एक वोटिंग कराई| वोटिंग सिर्फ एक...
View Articleनए गगन में अब लो पंछी, अपने पंख पसार||
सरसी छंद -- बढ़े देश का मान.....नया साल लेकर आया है, पीत सुमन के हार|नए गगन में अब लो पंछी, अपने पंख पसार||हम बसंत के मस्त पवन में, गाएँ अपना गान|झंडा ऊँचा रहे हमारा, बढ़े देश का मान||1||हिम की नदिया...
View Articleसभी ब्लॉगर मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
सभी ब्लॉगर मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !! ब्लॉग पर जितने भी मित्र हैं वो बहुत से बहुत तो बारह या तेरह वर्षों से ब्लॉग पर होंगे| ब्लॉग ने मन की बात कहने का सहज सरल रास्ता दिया| जो...
View Articleनए साल पर....
यह नवगीत प्रतिष्ठित ई-पत्रिका "अनुभूति"के नववर्ष विशेषांक पर प्रकाशित है...यहाँ क्लिक करें |नए साल पर....फिर से रमिया चलो गाँव मेंलेकर अपनी टोलीछोड़ चलो अब महानगर की चिकनी चुपड़ी बोलीनए साल पर हम...
View Articleसंक्रांति की सौगात
संक्रांति की सौगातमकर संक्रांति के दिन सुषमा ने नहा धोकर तिलवा और गुड़ चढ़ाकर विष्णु पूजन किया| सास, ससुर, देवर, ननद पति,जेठ, जेठानी सबको प्रसाद दे आई| यह सब करते हुए वह अनमयस्क सी लग रही थी| सास की...
View Articleस्वप्नलोक
स्वप्नलोक....बचपन का वह स्वप्नलोक अब विस्मृत होता जाता हैजलपरियाँ जादुई समंदर सन्नाटे में खोता जाता हैसीप वहाँ थे रंग बिरंगे मीन का नटखट खेल थासजा सजीला राज भवन जहाँ तिलस्म का मेल थासजा सजीला एक कुँवर...
View Articleबिसात जीवन की
देखो बंधु बाँधवों,जिंदगी ने बिछायी हैबिसात शतरंज कीबिखरायी है उसनेमोहरें भाव-पुंज की श्वेत-श्याम खानों के संग दिख जाते सुख-दुःख के रंगप्यादे बनते सोच हमारीसीधी राह पर चलते हुएसरल मना को किश्ती...
View Articleआत्मबोध जागृत रहे, कर में हो संघर्ष--दोहे
जब छाए मन व्योम पर, पीर घटा घनघोर|समझो लेखन बढ़ चला, इंद्रधनुष की ओर||दिशा हवा की मोड़ते, हिम से भरे पहाड़।हिम्मत की तलवार से, कटते बाधा बाड़।।खुशी शोक की रागिनी, खूब दिखाते प्रीत। जीवन के सुर ताल पर,...
View Articleगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ !!
करती समर्पित काव्य उनको, देश हित में जो डटे|वे वेदना सहते विरह की, संगिनी से हैं कटे ||दिल में बसा के प्रेम तेरा, हर घड़ी वह राह तके|लाली अरुण या अस्त की हो, नैन उसके नहिं थके||जब देश की सीमा पुकारे,...
View Articleशापित फल्गु-लघुकथा
शापित फल्गु"माँ, यहाँ तो रेत ही रेत है, फिर इसे नदी क्यों कहते हैं।"रेत पर बैठी मैनेजमेंट पढ़ रही प्रज्ञा पूछ रही थी।"बेटे, यहाँ गड्ढा करोगी तो पानी निकल आएगा। कहते हैं इस फल्गु नदी को सीता माता ने...
View Articleमैं वसुन्धरा
मैं वसुन्धरा खिले पलाशों से मिल मिल कर खुद बासंती होती जाऊँ सरस फाग के गीत सुहाने अलि पपीहा आए सुनाने पारिजात भर देता दामन मस्त हवा ने गाए तराने पीत रंग सरसो से लेकर मीठे सपनो को ले आऊँ ग्रंथों में न...
View Articleवक्त का बदलाव
वक्त का बदलाव"जहाँ देखो सिर्फ बेटियों के लिए ही स्लोगन बन रहे।मेरी बेटी मेरा अभिमान।बेटी पढ़ाओ बेटी बढाओ।बेटियों से संसार है....हुंह"ननद रानी की बातें सुनकर सुहासिनी मुस्कुरा रही थी।"तो इसमें दिक्कत...
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