Quantcast
Channel: मधुर गुँजन
Viewing all articles
Browse latest Browse all 486

मैं वसुन्धरा

$
0
0

मैं वसुन्धरा
खिले पलाशों से मिल मिल कर
खुद बासंती होती जाऊँ

सरस फाग के गीत सुहाने
अलि पपीहा आए सुनाने
पारिजात भर देता दामन
मस्त हवा ने गाए तराने

पीत रंग सरसो से लेकर
मीठे सपनो को ले आऊँ

ग्रंथों में न होगी पुरानी
विरह मिलन की कथा कहानी
शब्दों में भी जान आ गई
जब मौसम ने की नादानी

मसि सागर से माणिक चुन चुन
गीत बनी पल पल इतराऊँ

भोर सांध्य नभ है नारंगी
कलरव में बजती सारंगी
भाँति भाँति की खुश्बू लेकर
मुकुलित पुष्प हुए बहुरंगी

तितली के सुन्दर पंखों से
परागों के गुलाल उड़ाऊँ

उल्लास उजास गुण होली के
बीत गये अब दिन टोली के
द्वेष दंभ कालिख ले आये
मन सूना बिन रंगोली के

श्वेत श्याम होते नैनों से
कैसे सबका मन बहलाऊँ

अंतरजाल पर होली खेलें
लिखते हैं मुख से ना बोलें
शुभसंदेशों की लगी झड़ी
इस घर से उस घर में ठेलें

नए जमाने की धारा में
आभासी बन कर सकुचाऊँ

-ऋता शेखर ‘मधु’

Viewing all articles
Browse latest Browse all 486

Trending Articles