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Channel: मधुर गुँजन
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रास्तों को ग़र्द से पहचान लेती मुफ़लिसी

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ग़ज़ल

बेबसी की ज़िन्दगी से ज्ञान लेती मुफ़लिसी
मुश्किलों से जीतने की ठान लेती मुफ़लिसी


आसमाँ के धुंध में अनजान सारे पथ हुए
रास्तों को ग़र्द से पहचान लेती मुफ़लिसी

बारिशों में भीगते वो सर्दियों में काँपते
माहताबी उल्फ़तों का दान लेती मुफ़लिसी

भूख की ज्वाला बढ़ी तब पेट पकड़े सो गए
घ्राण से ही रोटियों का पान लेती मुफ़लिसी

धूप को सिर पर लिए जो ईंट गारा ढो रहे
वो ख़ुदा के हैं क़रीबी मान लेती मुफ़लिसी

ठोकरों से भी बिखर कर धूल जो बनते नहीं
पर्वतों से स्वाभिमानी शान लेती मुफ़लिसी

यह ख़ला है ख़ूबसूरत बरक़तें होती जहाँ
गुलशनों में शोख़ सी मुस्कान लेती मुफ़लिसी

-ऋता शेखर ‘मधु’

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