वक्त का बदलाव
"जहाँ देखो सिर्फ बेटियों के लिए ही स्लोगन बन रहे।
मेरी बेटी मेरा अभिमान।
बेटी पढ़ाओ बेटी बढाओ।
बेटियों से संसार है....हुंह"
ननद रानी की बातें सुनकर सुहासिनी मुस्कुरा रही थी।
"तो इसमें दिक्कत क्या है जीजी। बेटियों को तो बढ़ावा मिलना ही चाहिए।"
"पर इस तरह के नारे बनाने की क्या जरूरत है। क्या बेटे वाले अपने बेटों पर अभिमान नहीं करते।"अब सुहासिनी दो बेटों वाली नन्दरानी का दर्द समझ रही थी।
"और बेटा या बेटी पैदा करना अपने हाथ में है क्या"जीजी अब भी बोले जा रही थीं।
"यही बात सदियों से कही जा रही। पर कहने वाले बदल गए। है न जीजी"सुहासिनी को वो दिन याद आ गया जब दूसरी बिटिया के जन्म पर बुरा सा मुँह बनाकर जीजी ने कहा था,"फिर से बेटी"।
जीजी को भी शायद वही बात याद आयी थी इसलिए नजरें बचते हुए वहाँ से दूसरे कमरे में चली गईं।
-ऋता शेखर "मधु"
"जहाँ देखो सिर्फ बेटियों के लिए ही स्लोगन बन रहे।
मेरी बेटी मेरा अभिमान।
बेटी पढ़ाओ बेटी बढाओ।
बेटियों से संसार है....हुंह"
ननद रानी की बातें सुनकर सुहासिनी मुस्कुरा रही थी।
"तो इसमें दिक्कत क्या है जीजी। बेटियों को तो बढ़ावा मिलना ही चाहिए।"
"पर इस तरह के नारे बनाने की क्या जरूरत है। क्या बेटे वाले अपने बेटों पर अभिमान नहीं करते।"अब सुहासिनी दो बेटों वाली नन्दरानी का दर्द समझ रही थी।
"और बेटा या बेटी पैदा करना अपने हाथ में है क्या"जीजी अब भी बोले जा रही थीं।
"यही बात सदियों से कही जा रही। पर कहने वाले बदल गए। है न जीजी"सुहासिनी को वो दिन याद आ गया जब दूसरी बिटिया के जन्म पर बुरा सा मुँह बनाकर जीजी ने कहा था,"फिर से बेटी"।
जीजी को भी शायद वही बात याद आयी थी इसलिए नजरें बचते हुए वहाँ से दूसरे कमरे में चली गईं।
-ऋता शेखर "मधु"