निग़ाहों की बातें छुपाने से पहले
नज़र को झुकाए थे आने से पहले
नदी के किनारे जो नौका लगी थी
बहुत डगमगाई बिठाने से पहले
जो आज़ाद रहने के आदी हुए थे
बहुत फड़फड़ाए निभाने से पहले
करामात होती नहीं ज़िन्दगी में
पकड़ना समय बीत जाने से पहले
बहन की दुआ आँक पाते न भाई
कलाई पे राखी सजाने से पहले
दफ़ा हो न जाए सुकूँ ज़िन्दगी का
ऋता सोचना आजमाने से पहले
ऋता शेखर 'मधु'
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