जिंदगी ने बिछायी है
बिसात शतरंज की
बिखरायी है उसने
मोहरें भाव-पुंज की
श्वेत-श्याम खानों के संग
दिख जाते सुख-दुःख के रंग
प्यादे बनते सोच हमारी
सीधी राह पर चलते हुए
सरल मना को किश्ती प्यारी
तीव्र चतुर दलबदलू ही
करते हैं घोड़ों की सवारी
व्यंग्य वाण में माहिर की
तिरछी चाल विशप कटारी
समयानुकूल वजीर बने जो
चाणक्य नीति के वो पिटारी
सबकी चालें सहता हुआ
बादशाह है हृदय बेचारा
नाप रहा उल्फ़त से पग
कैसे विजय मिले दोबारा
विषयासक्त अनुरागी को
यह टकराव बना रहेगा
कुछ भी कर लो जेहनवालों
अज्ञानी से ठना रहेगा
पूर्वाग्रह के पिंजरे में बैठे
अजनबी क्षितिज पर दिखते
हल्की सी भी ठेस लगे तो
यातना के नज़्म लिखते
ऐ जिंदगी,
छलिया बन तूने
हम सबको है नाच नचाया
बाँध के धागे भाव पगे
तूने सबसे रास रचाया
पर समझ लेना यह बात
मात हमें न दे पाएगी
मनु के अंतर्मन की शक्ति
तेरा हर घात सह जाएगी|
चालें चाहे हों जितनी शतरंजी
बस एक निवेदन करती हूँ
उनकी खुशियाँ खोने न देना
जिन रिश्तों पर मरती हूँ|
-ऋता शेखर ‘मधु’