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Channel: मधुर गुँजन
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दो अपना वात्सल्य माँ, आँचल में सौगात

प्रथम दिवस को पूजते, जिनको हम सोल्लास|पुत्री वह गिरिराज की, भरतीं जीवन आस||चंद्र शिखर को सोहता, वाहन बनता बैल|पुत्री मिली यशस्विनी, धन्य हुए हिमशैल||अधीश्वरी है शक्ति की, ब्रह्मचारिणी...

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189.श्रीराम सियाजी को लाने चले...

वैदेही को वापस पाने चलेश्रीराम सियाजी को लाने चले|श्रीलंका में बैठी सीतासब कुछ लगता रीता रीताव्याकुल रघुपति बिन परिणीतावैदेही को वापस पाने चलेश्रीराम सियाजी को लाने चले|सिंधु को पुकारकरवरुण को ललकार...

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190.अमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई है

कौम और मजहब की गिनती किसने गिनाई हैनिर्दोष जन में अलगाव की आग किसने लगाई हैरोटी कपड़ा मकान की जरूरत है सभी कोअमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई हैहवा की सरसराहटों में है खौफ़ का धुँआख्वाबों की बस्ती में...

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191. पंछी गीत सुनाएँ...(माहिया)

1कोयलिया जब बोलीहिय में हूक उठीउर  ने परतें खोलीं।2उसकी शीतल बानीपीर चुरा भागीसूखा दृग से पानी।3पंछी गीत सुनाएँचार पहर दिन केसाज़ बजाते जाएँ ।4टिमटिम चमके तारेरात सुहानी हैकिलके बच्चे सारे ।5प्राची की...

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192..कसीदाकारी

आज दर्द का इक टुकड़ा फ़लक में उड़ा दिया हमनेचंद ख्वाबों से हँसकरपीछा छुड़ा हमनेचाँद से चुराकर एक किरनजीवन की चादर परकसीदाकारी की हैबड़े जतन से समेटकर शबनमयादों की रुनझुन पायल परमीनाकारी की हैहोठों पर...

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लघुकथा....घर

लघुकथा....घर वह बहुत खुश थी...उसने राधा-कृष्ण की एक पेंटिंग बनाई थी...दौड़ी दौड़ी माँ के पास गई...माँ,इसे ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ...माँ - बेटा इसे तेरी भाभी ने बड़े प्यार से सजाया है...तेरा पेंटिंग...

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इक दीया हाथों में लेकर द्वार द्वार हम घूमे

इक दीया हाथों में लेकर द्वार द्वार हम घूमेवह गरीब कि कुटिया थी जहां नहीं था पेटभर खाना दिनभर के श्रम से जुटा था पावभर चावल का निवाला मिल बाँट कर खा पी कर तत्क्षण वे संतुष्ट हुए श्रम बूँद जब पास है उनके...

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दीये ये कच्चे

1दीये ये कच्चेधुन के बड़े पक्केबच्चों -से सच्चे |2नेह का दीपघृत हो विश्वास काअखंड जला|3चाक जो घूमासर्जक का सृजनसुगढ़ दीप |4मिलके रहेदीप तेल वर्तिकातभी लौ बने |5चंदा को ढूँढ़ेदीपक की बारातअमा की रात...

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प्रतिक्रियाएँ....

http://thalebaithe.blogspot.in/2013/07/sp229.html#comment-formठाले बैठे ब्लाग पर मेरे कुछ दोहे प्रकाशित हुए थे जिन्हें ऊपर ले लिंक पर देखा जा सकता है...वहा़ पर आदरणीय अरुण निगम सर ने मेरे प्रत्एक दोहे...

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कटीली बेड़ियाँ

कई कटीली बेड़ियाँ हैं धर्म की और जात कीजीवन के शतरंज पर शह की और मात कीखिलखिलाते बहार पर निर्दयी तुषारपात कीभोले भाले मेमनों पर शेर के आघात कीइर्ष्या के भाव से जुटे हुए प्रतिघात कीसिसकियों में डूबी...

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कहीं कुछ शाश्वत नहीं

कहीं कुछ शाश्वत नहीं कुछ भी तो नहीं न अँधेरा न उजाला न गीष्म न शरद न अमृत न विष का प्यालाशाश्वत हैं सूरज और चंदामगर गति शाश्वत नहीं दिन होते हर रोज़ मगर उजियार शाश्वत नहींकभी मेघ घिरे कभी धुंध उगे कभी...

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सूक्ष्म से साकार तक

सूक्ष्म से साकार तकआत्मा से परमात्मा तकमुर्छा से चेतना तकनई अनुभूतियाँकई विसंगतियाँसहेजता अंत:करणकहीं पुष्प की रंगिनियाँया कंटकों की है चुभनकहीं अट्टहास उल्लास हैया अंतस में भरा रुदनअंतहीन सी राह...

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मेरे हाइकु - 1

1.स्वर्ग -अप्सरागुलमोहर चुन्नीओढ़ के आई । 2लाल सितारेहरी चुनरी परलगते प्यारे । 3धरा की गोदकरते अठखेलीस्वर्ग के फूल ।4तपी धरतीलाल अँगार बनागुलमोहर  । 5लावण्य-भराअँखियों का सुकूनगुलमोहर । 6सर्पीली...

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उड़हुल के फूल...

उसेफूलों सेबहुत प्यार थापत्ता-पत्ता बूटा बूटाउसके स्पर्श सेखिले रहतेनित भोरवह औरउसकी फुलवारीकर में खुरपीसजाती रहती क्यारीगुनगुनाती रहतीभूल के दुनिया सारीगेंदा,गुलाब, जूहीचम्पा चमेलीबाग में तोवही थीं...

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घटाघोप अंधकार में एक किरण लहराई

१.अफवाह....बात बात की बात में बातें बन गईं परवाज|सच्ची झूठी बातों से अफवाहों का हुआ आगाज|धरती से उड़कर बातें पहुँची दूर गगन  के पार,बातों को मिल गई भीड़ की चटपटी आवाज|२.आशा.........घटाघोप अंधकार में एक...

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सन्नाटा...

सन्नाटा...सनसना रहा  बाहर का सन्नाटामन के भीतर  बवंडर शोर काकितना शांत कितना क्लांत तूअपेक्षाओं के बोझ तले दबाउस शोर से क्या कभी पीछा छुड़ा पाएगाजो तुम्हे धिक्कारता है जब भी समय की कमी से बूढ़े पिता की...

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मानस पटल...

मानस पटल...मानस पटल की दो बहनेंएक है आशा एक निराशासाथ साथ वे चलती थींबंधन भी था बड़ा अटूटजीवन का था प्रश्न जटिलसुलझाने में हुई मुश्किलदोनों में हो रहा संवादहर्ष मिले या मिले अवसादआशा आशापरक रहीनिराशा...

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न देखा है राम को न ही कृष्ण को देखा

1.न देखा है राम को न ही कृष्ण को देखा|सिर्फ़ नाम जपने से बदले विधि का लेखा|मौत शरीर की होती नाम कभी न मरता,नाम न बदनाम हो, बने ऐसी ही रेखा|2.आँख का अंधा नाम नयन सुख|कड़वी है बोली नाम मृदुमुख|नाम जैसा...

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तुम रहोगे दिल में हमारे...

अलविदा २०१३स्वागतम् २०१४नींद भरी आँखेंसहला रहा कोईटपकी है गालों परइक बूँद नन्ही सीमैं जा रहा हूँकरोगे न याद मुझेसाथ रहा हैतीन सौ पैंसठ दिनों कामुझे याद रहेगीतुम्हारी छुअनपलट देते थे पन्ने हर पहली...

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गुलाब...

नए वर्ष की प्रथम पोस्ट के रूप में गुलाब पर आधारित रचना पेश है.....आप सभी का जीवन गुलाब जैसा कोमल हो और गुलाब की खुश्बू जैसे रिश्ते अपनी सुगंध  बिखेरते रहें...शुभकामनाएँ सभी को !!गुलाब......खुश्बू संग...

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