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Channel: मधुर गुँजन
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इक दीया हाथों में लेकर द्वार द्वार हम घूमे

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इक दीया हाथों में लेकर
द्वार द्वार हम घूमे

वह गरीब कि कुटिया थी
जहां नहीं था पेटभर खाना
दिनभर के श्रम से जुटा था
पावभर चावल का निवाला
मिल बाँट कर खा पी कर
तत्क्षण वे संतुष्ट हुए
श्रम बूँद जब पास है उनके
कल की कल देखी जायेगी
स्नेह-दीप से रौशन घर को
दीये की नहीं जरुरत थी

इक दीया हाथों में लेकर
द्वार द्वार हम घूमे

वह ज्ञान का मंदिर था
जहां नहीं था कोई प्रपंच
न तो कोई अपराधी था
न कोई बनता था सरपंच
अंतरात्मा बड़ी सजग थी
नैतिकता का राज था
अमीर गरीब के भेद से दूर
विद्या ही वरदान था
ज्ञान-दीप से जगमग घर को
दीये की नहीं जरुरत थी

इक दीया हाथों में लेकर
द्वार द्वार हम घूमे

वह शहीद कि देहरी थी
जहां हसरतें दबी पड़ी थीं
आँखों में भरकर सन्नाटा
होठों पर सिसकी सुबक रही थी
चिरागे-कुल वतन को देकर
गहन तिमिर में डूबा घर
पर  कहीं कोई शिकवा थी
न कहीं दिखा था उपालम्भ
त्याग-दीप से रौशन घर को
दीये की नहीं जरुरत थी

इकदीयाहाथोंमेंलेकर
द्वारद्वारहमघूमे

वह वृध्दों का आश्रम था
जहां बिखरे  थे  टूटे  सपने
पोपल मुंह खांस खांस कर
ढूंढ रहे थे कोई अपने
जिन पांवों को शक्ति दी थी
जाने किन राहों पर मुड़ गये
जिन पंखों को विस्तार दिया
आज़ाद परिंदे बन उड़ गए
उन अशक्त बुझी नजरों को
दीयों की सख्त जरुरत थी

इकदीयाहाथोंमेंलेकर
उस द्वार पर हम रख दिए !!!!
.....................................ऋता
दीपावली कि हार्दिक शुभकामनायें !! 

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