सन्नाटा...
सनसना रहा बाहर का सन्नाटा
मन के भीतर बवंडर शोर का
कितना शांत कितना क्लांत तू
अपेक्षाओं के बोझ तले दबा
अपेक्षाओं के बोझ तले दबा
उस शोर से क्या कभी
पीछा छुड़ा पाएगा
जो तुम्हे धिक्कारता है
जब भी समय की कमी से
बूढ़े पिता की आँखें नहीं जँचवाता
उनकी दुखती हड्डियों को
प्यार से नहीं सहलाता
कभी उस बहन को नहीं देख पाता
जो अपने प्यारे भाई के लिए
राखी की लड़िया सजाए
इंतेजार करती है
कसूर तेरा नहीं
पर उनका भी तो नहीं|
...........ऋता