सरस्वती वंदना—हरिगीतिका छंद
यह शीश कदमों पर नवा करकर रहे हम वन्दना
माँ शारदे कर दो कृपा तुम ज्ञान की है कामना
संतान तेरी राह भूलीदृष्टि की मनुहार है
उर में हमारे तुम पधारोपंचमी त्यौहार है
धारण मधुर वीणा किया है दे रही सरगम हमें
संगीत से ही तुम सिखाती एकता हरदम हमें
पद्मासिनी कर दो कृपा अबहो सुवासित यह जहाँ
कुसुमित रहे बगिया हमारी चम्पई भर दो यहाँ
है ज़िन्दगी की राह भीषण पग कहाँ पर हम धरें
मझधार में कश्ती फँसी है पार हम कैसे करें
तूफ़ान में पर्वत बनें हमशक्ति इतनी दो हमें
तेरे चरण- सेवी रहें हम भक्ति से भर दो हमें
तेरे बिना कुछ भी नहीं हम सब जगह अवरोध है
हों ज्ञान-रथ के सारथी हम यह सरल अनुरोध है
करते तुझे शत-शत नमन हम, हो न तम का सामना
आसक्त तुझमें ही रहें हम बस यही है कामना
हो शांति ही संदेश अपना दो हमें यह भावना
भारत वतन ऐसा बने होसब जगह सद्भावना
साकार हों सपने सभी के कर रहे आराधना
माता करो उपकार हमपर पूर्ण कर दो साधना
-ऋता शेखर ‘मधु’