ग़ज़ल
जरा भर लो निगाहों में कि उल्फत और बढ़ती है
हया आए जो मुखड़े पर तो रंगत और बढ़ती है
निगहबानी खुदा की हो तो जीवन ये महक जाए
मुहब्बत हो बहारों से इबादत और बढ़ती है
मुसीबत राह में आई मिले हमदर्द भी हरदम
खिलाफ़त आँधियाँ करतीं तो हिम्मत और बढ़ती है
जमाने में शराफ़त की शिकायत भी लगी होने
जलालत की इसी हरकत से नफ़रत और बढ़ती है
फ़िजा महफ़ूज़ होगी तब कटे ना जब शज़र कोई
हवा में ताज़गी रहती तो सेहत और बढ़ती है
--ऋता शेखर 'मधु'
जरा भर लो निगाहों में कि उल्फत और बढ़ती है
हया आए जो मुखड़े पर तो रंगत और बढ़ती है
निगहबानी खुदा की हो तो जीवन ये महक जाए
मुहब्बत हो बहारों से इबादत और बढ़ती है
मुसीबत राह में आई मिले हमदर्द भी हरदम
खिलाफ़त आँधियाँ करतीं तो हिम्मत और बढ़ती है
जमाने में शराफ़त की शिकायत भी लगी होने
जलालत की इसी हरकत से नफ़रत और बढ़ती है
फ़िजा महफ़ूज़ होगी तब कटे ना जब शज़र कोई
हवा में ताज़गी रहती तो सेहत और बढ़ती है
--ऋता शेखर 'मधु'
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