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Channel: मधुर गुँजन
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रूह मरती नहीं

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रूह से देह तक
देह से रूह तक
अनजान सफर में
कितने ही रहे होंगे
अनुभूतियों के आकाश

अनन्त यात्रा रूह की
देह पाने के लिए
दुर्गम यात्रा देह की
रूह से बिछड़ जाने के लिए
सुना है परमात्मा के चारो ओर
बिखरा है उज्जवल दिप प्रकाश
वहाँ आनन्द की अद्भुत अनुभूति है
रूह पृथक हो जाती है
उसी दिव्य को पाने के लिए
फिर क्यों छटपटाती
पुनः देह में बँध जाने के लिए

सुना है रूह मरती नहीं
बदल देती है देह
देह के पिंजर में
क्यों कैद होती है रूह
बार-बार बारम्बार

रूह की अनन्त प्यास
जज्बातों को समझे जाने की
छल और देह से परे 
सिर्फ और सिर्फ
प्रेम सम्मान पाने की
अमिट प्यास की खातिर
वह आती रहेगी बार-बार बारम्बार

*ऋता शेखर ‘मधु’*

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