१.
श्रम में लगे थे हाथ, भूख लगी हुए साथ, रोटियों को मिल बाँट, संग संग खा रहे|
जो चतुर चालाक हैं, इरादों से ना पाक हैं, टुकड़ों को चुपचाप, तली में छुपा रहे|
तन मन की थकन, क्षुधा की बढी़ अगन, लालच की आहुति में, सबको जला रहे|
सद्भावना खिली रही, भावना बहती रही, मिट गए भाव छली, प्रेम गीत गा रहे|
*ऋता शेखर 'मधु'*
जो चतुर चालाक हैं, इरादों से ना पाक हैं, टुकड़ों को चुपचाप, तली में छुपा रहे|
तन मन की थकन, क्षुधा की बढी़ अगन, लालच की आहुति में, सबको जला रहे|
सद्भावना खिली रही, भावना बहती रही, मिट गए भाव छली, प्रेम गीत गा रहे|
*ऋता शेखर 'मधु'*
२.
वक्त की सिलवटों पे जाने कितने हैं पैगाम लिखे
उड़ते हुए परिंदों ने हौसले सुबहो-शाम लिखे
दौर मुफ़लिसी का भी गुजर जाएगा लहरों की तरह
बाद शब के रौशनी ने ऐसे ही कई मुकाम लिखे
*ऋता शेखर 'मधु'*
३.
इस अलाव की गर्मी से जुड़ती कितनी ही यादें
पगडंडी से दालानों में जा मुड़तीं कितनी ही यादें
सर्द शाम में चटका करतीं हरी मिर्च संग मूँगफली
रोटी की सोंधी खुश्बू से उड़ती कितनी ही यादें
-ऋता शेखर 'मधु'
४.
जीवन के इस हँसी सफर में कब कौन कहाँ पे सँवारा गया
प्रेम पंथ के कठिन डगर पर कब कौन किसी से पुकारा गया
रब की बातें रब ही तो जानें कब क्यों वह कुछ कर जाते हैं
उस दीन बंधु का सबल साथ कभी ना किसी से नकारा गया
प्रेम पंथ के कठिन डगर पर कब कौन किसी से पुकारा गया
रब की बातें रब ही तो जानें कब क्यों वह कुछ कर जाते हैं
उस दीन बंधु का सबल साथ कभी ना किसी से नकारा गया
५.
दोस्ती वो शय है जहाँ फूलों की महक रहती है
दोस्ती तो चाँद है जहाँ आशा की चमक रहती है
दिलोजा़ँ औ इमाँ से दोस्ताना निभा लेना ऐ दोस्तों
दोस्ती अनमोल है जहाँ बिकने की चहक रहती है
६.
नफ़रतों को छोड़ दो
दो दिलों को जोड़ दो
हौसला गर रख सको
आँधियों को मोड़ दो
हौसला गर रख सको
आँधियों को मोड़ दो
७.
काग़ज़ की कश्ती में बादशाहत का ताज था
बचपन की हस्ती में मुस्कुराहट का नाज था
शनै शनै ये ताजो'नाज छूटते चले गए,
अब वक्त की रवानगी में अनुभव का राज था
*ऋता शेखर 'मधु'*