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गजल....
हर राह पर गुलों की कालीन तुम बिछाना
आए हजार बाधा धीरज से लाँघ जाना
ये आसमाँ सजाता सूरज औ'चाँद तारे
तुम रौशनी में इनकी अपने कदम बढ़ाना
जब जिंदगी में दुख सुख का सिलसिला मिले तो
इतनी विशालता हो, थक कर न बैठ जाना
रहतीं झुकी निगाहें माँ बाप के अदब में
आता है याद हमको गुजरा हुआ जमाना
झुकती हुई कमर में लाचारगी बहुत है
तुम प्रेम से सदा ही उनको गले लगाना
नाजुक बड़े ये रिश्तों के हैं महीन धागे
रखना बड़ी नफ़ासत जब भी इन्हें निभाना
*ऋता शखर 'मधु'*