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Channel: मधुर गुँजन
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प्रतिकार-लघुकथा

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प्रतिकार
चिता पर पत्नी के शव के अंतिम संस्कार के लिए शिवशंकर बाबू के हाथों में अग्नि थमाई जा चुकी थी| अचानक तेज आँधी आई| बगल की चिता से चिंगारी उड़ी और शिवशंकर बाबू की पत्नी की चिता से जा लगी| धू धू कर जलने लगी चिता और अग्नि को हाथ में पकड़े पति को दग्ध करने लगी|
 “आज उस मौन बर्फ ने आपकी अग्नि को नकार दिया जीजा| जो काम वह जीते जी नहीं कर सकी, मरकर कर दिया उसने,” रोष फूट पड़ा भाई संजीव का|
 अवाक् खड़ी अपनों की भीड़ की ओर मुखातिब होकर संजीव कहने लगा, “ तीन बेटियों के लिए जीजा और उनके घरवालों से प्रताड़ित होती रही थी हमारी बहन| बाद में बेटे की चाह में अबॉर्शन पर अबॉर्शन ने उसके शरीर को खोखला कर दिया| क्षीण कमजोर शरीर पर लकवा का प्रकोप हुआ| उसकी शिथिल आँखें भाई को देखते ही बह जाने को आतुर दिखती थी| हम चाह कर भी कुछ न कर सके क्योंकि वह रोक देती थी हमें| ”
 संजीव ने अपनी बात जारी रखी, “ उसकी तीनों बेटियों को खरोंच भी आई तो देख लेना आप| संस्कारों का हवाला देकर हमें रोकने वाली बहन जा चुकी है| ”
 “उफ्फ, सज्जन दिखने वाले इस इंसान की इतनी क्रूर मानसिकता कि प्रकृति भी मरने वाली के मौन चीत्कार को अनदेखा न कर सकी,”भीड़ में से आई आवाज ने एकबारगी सबको दहला दिया|

--ऋता शेखर ‘मधु’

भली लगे सबके कानों को, बोलो ऐसी बोली

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११
जीवन जीने के कौशल में, होती कई परीक्षा
वो ही अव्वल आ पाते जो, पाते नैतिक शिक्षा
१२.
सावन भादो के मौसम में, करता है खुदगर्जी
बादल को अब आने भी दे, नभ को भेजो अर्जी
१३.
बासंती मौसम में आईं, कलियाँ नई नवेली
मनभावन खुश्बू से देखो, सबकी बनीं सहेली
१४.
भली लगे सबके कानों को, बोलो ऐसी बोली
कूक कूक कर अमराई में, कोयल शरबत घोली
१५.
मन माटी की हर क्यारी में, बीज प्रेम के बोना
सद्भावों से महक उठेगा, घर का कोना कोना
१६.
देशप्रेम की स्वच्छ सोच में, कैसी नफरत जागी
जात धर्म की उग्र हवा में, फूल हुए हैं बागी
१७.
स्वस्थ बीज अच्छी सिंचन से, आती है हरियाली
गेहूँ की बाली के संग संग,आएगी खुशहाली
१८.
इंद्रधनुष के सप्तवर्ण में,हमेंतीन है प्यारा
प्रगतिशील झंडे में सजकर, चक्र लगे है न्यारा
१९.
निर्निमेष व्याकुल अँखियों से, ताक रहा है चातक
मिलती ना बूँदें स्वाती की, प्यास बनी है घातक
२०.
नई राह पर नए कदम की, दुनिया है अनजानी
मायावी बातों में आकर, ना करना नादानी
२१.
पवन मेघ अरु धूप रूप में, आया है वनमाली
उसकी अगवानी करने को, झुकी फूल की डाली
२२.
अथक परिश्रम अटल आस से, दूर करो हर बाधा
खुशियों से खुशियाँ मिलती हैं, गम होता है आधा
२३.
कंकड़ पाथर के ऊपर से, निर्मल सरि सा बहना
सदा पहन कर सुन्दर दिखना, निश्छलता का गहना
२४.

ताकधिना धिन ताकधिना धिन, जमकर बरसा सावन
पुलकित बूँदों के नर्तन से, पात बने हैं पावन
२५.
रातों को जल्दी सो जाओ, सुबह सवेरे जागो
लाख टके की हवा मिलेगी, प्रातभ्रमण को भागो
२६.
बड़े दिनों पर पोते के घर, दादी अम्मा आई
बालक मन के गुलमोहर पर, डोली है पुरवाई
२७.
अरुणाचल की लाली में अब, जागी है अरुणाई
कोयल कूकी, बैल चले हैं, फैल रही तरुणाई
२८.
लम्बे चौड़े वादे मुकरे , उम्मीदें हैं भूखी
जबसे उनको वोट मिला है, बातें करते रूखी
२९.
मँहगाई के डंडे से वे, छीन रहे हैं रोटी
जाने किस किस हथकंडे से, जेब हुई है मोटी
३०.
हहराती बलखाती गंगा,धरती पर मुड़ जाती
फसलों की जड़ तक वह जाए, ऐसी जुगत लगाती
३१.
इस नश्वर दुनिया में मानव, जोड़ के रखो कड़ियाँ
जाने कब कौन कहाँ छूटे, बोल रही हैं घड़ियाँ
३२.
धरती की बढ़ती गरमी से, घबराती है बरखा
सत्य अहिंसा के दामन से, किसने छीना चरखा

---------ऋता शेखर मधु

हैप्पी बर्थडे - लघुकथा

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हैप्पी बर्थडे
‘आज माँ को क्या हो गया है’, पत्नी शिप्रा ने आते ही अभिनव से कहा|
“क्या किया माँ ने”, अभिनव सोचते हुए बोला|
“माँ ने मिठाई मँगवाई है और सजधज कर बैठी हैं|”
“देखता हूँ,” कहकर अभिनव माँ के कमरे की ओर गया|
अन्दर से कुछ आवाज आ रही थी| अभिनव बाहर ही रुककर सुनने लगा|
“अभिनव के पापा, याद है न वह गाना जो तुम अक्सर गाया करते थे....
मैं जब हूँगा साठ साल का और तुम होगी पचपन की...
...बोलो प्रीत निभाओगी न|
देखो जी, आज मैं पचपन की हो गई मगर तुम साठ के न हो सके|
मुझे देखो, बुढ़ापा चेहरे पर आने लगा है किन्तु तुम तो अब भी युवा दिखते हो|
तुम्हें साठ की देखने की मेरी ख्वाहिश पूरी न हो सकी|...अच्छा छोड़ो ये बातें, मिठाई खाओ|’’
इसके बाद माँ के हँसने की आवाज आई|
मात्र पाँच साल की उम्र में अपने पिता को खो चुका अभिनव कमरे में घुसकर
अपने पिता की उसी युवा तस्वीर देखते हुए आँखें पोंछ रहा था जिससे  माँ बातें कर रही थी|
‘हैप्पी बर्थडे माँ’’, कहते हुए उसने माँ के प्लेट से मिठाई उठाकर खा ली|
ऋता शेखर ‘मधु’

मूक बनोगे आज जब, हो जाएगी चूक

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दो पहलू हर बात के, सहमति और विरोध
कह दो मन के भाव को,नहीं कहीं अवरोध


मूक बनोगे आज जब, हो जाएगी चूक
होंगे कल के बोल तब, वीराने की कूक


चुप रहने से जिंदगी, बदले अपनी चाल
क्यों पूछे उस वक्त में, कोई तुम्हारा हाल


नित नित लिखते मित्र जो, बनते थे चर्वाक
चुप रहकर के वो बने, बड़े चतुर चालाक


रुक जाए जो लेखनी, कौन बने आवाज
खंगालो इतिहास को, कवि बदलो अंदाज


--ऋता शेखर 'मधु'

अंतर्देशीय

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अंतर्देशीय--

इमेल, एसएमएस, व्हाट्स एप के जमाने में ऑफिस के लिफाफों के ढेर में एक अन्तर्देशीय देखकर अविनाश चौंक गया| लिखने वाले ने अन्तर्देशीय के पीछे अपना नाम नहीं लिखा था| उत्सुकता से अविनाश ने सबसे पहले वही खोला|

''सॉरी भइया, तुमसे बात करने का कोई रास्ता नहीं था| इसलिए यह खत लिखा|
याद है बचपन में हम कितना लड़ा करते थे| मैं ही ज्यादा बदमाश थी और तुम हमेशा चुप लगाकर झगड़ा शात कर देते थे| तुम्हें याद है न, होमवर्क नहीं करने पर मैं स्कूल न जाने के कई बहाने ढूँढती थी और तुम चुपके से मेरा होमवर्क पूरा कर दिया करते थे| भाई, तुम्हें याद है एक बार कॉलेज से जाने वाले एजुकेश्नल ट्रिप पर जाने देने के लिए पापा राजी नहीं थे तब तुमने ही तो मेरी सिफारिश की थी और पापा तैयार हो गए थे| एक बार एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए सैंड कलर नहीं मिल रहा था तो तुमने कई दुकानों के चक्कर लगाए थे और लाकर दिए थे|
माना कि तुम्हें बहुत आगे तक जाने की महत्वाकांक्षा थी| एम बी बी एस के बाद आगे की पढ़ाई विदेश में पढ़ना चाहते थे तुम| इसके लिए तुमने भाभी के पापा के दबाव में आकर उनके घर में ही रहना स्वीकार कर लिया| हमें या मम्मी पापा को इससे कोई एतराज नहीं था लेकिन तुम धीरे धीरे हमसे दूर होते चले गए| मैं चाह कर भी तुमसे बात नहीं कर पा रही थी| मुझे मालूम था कि तुम्हारे फोन, मेल सब कुछ भाभी देखती हैं इसलिए कोई बात न बढ़ जाए मैंने भी दूरी बना ली थी|
भइया, मेरे इंगेजमेंट में भी तुम मेहमान बन कर आए और चले गए| अब मैं भी तो घर से जा रही हूँ| लोग कहते हैं कि बेटियाँ परायी होती हैं| तुम तो बेटा हो न| मम्मी पापा बिल्कुल टूट जाएँगे भाई|
भइया, दूसरे घर जाने से पहले मैं तुम्हें अपने हाथों से वो सभी राखियाँ बाँधना चाहती हूँ जिसे हर रक्षाबंधन पर मैंने खरीदे पर तुम्हारे पास जाने की हिम्मत न कर सकी| मुझे एक दिन के लिए मेरा भाई लौटा दो भइया| फिर आगे कुछ नहीं माँगूँगी | भइया प्लीज़, आशा है बचपन की प्यारी बहन का मान रख लोगे|
अनु
आँखें पोंछते हुए अविनाश टेबल पर पड़े सभी कागजों को समेट उठ गया|
''सर, आज की डील फाइनल नहीं हुई तो देर हो जाएगी| "
''अगर आज नहीं गया तो मेरी बहन खो जाएगी'', कहता हुआ अविनाश बाहर निकल गया|
--ऋता शेखर 'मधु'

वक्त की झुर्रियाँ-लघुकथा

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वक्त की झुर्रियाँ

आज फेसबुक पर सर्फिंग करते हुए अरुण बाबू अचानक लालिमा जी की प्रोफाइल पर पहुँच गए| उसने प्रोफाइल पर वही पिक लगा के रखा था जो चालीस साल पहले कॉलेज के पहचान पत्र पर था इसलिए नजर पड़ते ही अरुण बाबू पहचान गए| जल्दी जल्दी पूरी प्रोफाइल खंगाल डाले पर सिर्फ वही तस्वीर देख पाए| शायद प्राइवेसी सेटिंग थी या फिर वह कोई पोस्ट नहीं डालती थी|

अरुण बाबू ने मेसेज में लिखा,’ यदि मैं गलत नहीं हूँ तो तुम लालिमा ही हो न| इस तरह अचानक कॉलेज छोड़कर क्यों चली गई थी|” मेसेज भेजकर पुरानी यादों में खो गए जब लालिमा की खूबसूरती दोस्तों के बीच चर्चा का विषय थी| लालिमा मेसेज देखेगी भी या नहीं इसमें संदेह था कि अचानक मेसेज देख लेने का संकेत दिखा| अरुण बाबू उत्तर का इन्तेजार करने लगे|

‘आप कौन’ अचानक मेसेज बॉक्स की लाल बत्ती जल गई|

‘मैं अरुण जिसके नोट्स तुम्हें बहुत पसंद थे’|

कुछ देर बातें होती रहीं| अरुण बाबू ने लालिमा जी को हैंग आउट पर आने को कहा| उनकी कल्पना में वही बाइस साल की लालिमा की तस्वीर घूम रही थी| तभी लालिमा जी टैबलेट पर दिखने लगीं| दोनों दोस्तों ने एक दूसरे को देखा| कुछ देर देखते रहे फिर ठठाकर हँस पड़े|

‘’उम्र के इस पड़ाव पर भी कल्पना पुरानी है मगर झुर्रियाँ भी सुखद हैं’’ अरुण बाबू ने हँसते हुए कहा|

--ऋता शेखर "मधु"

फेसबुक की प्रतिक्रियाएँ

१ वाह, वाह।खूब बढ़िया लिखा आपने।मनभावन कथा।बधाई हो सुन्दर लेखन हेतु।–गीता सिंह

२. Behad sundar ehsaso ki mala Piro di aap nai-कुलविंदर सिंह

३. अत्यंत लुभावनी कथा ,हार्दिक बधाई ऋता शेखर 'मधु'जी-अर्चना त्रिपाठी

४. समय के साथ चेहरा बदल गया लेकिन मन के भाव नहीं, बहुत बढ़िया| बधाई इस सुंदर रचना के लिए-विनय कुमार

५. फेसबुक में झुर्रीदार सुखद मिलन, नये कलेवर में अच्छी रचना। बधाई।रूपेंन्द्र सामंत

६. वाह ख्वाबों की तस्वीर सदा जवांरहती है समय का प्रभाव नही पडता है यादों पर सुन्दर भाव वाली रचना बधाई ऋता जी-जितेंद्र गुप्ता

७. बहुत बढ़िया रचना बनी है चित्र के भाव को देखते हुए, कही भी ऐसा नहीं लगता कि रचना को जबरन लिखा गया हो ....... बधाई स्वीकार करे ऋता शेखर जी—वीरेंद्र वीर मेहता

८. बहुत सुंदर अंत के साथ एक बढ़िया कथा-जानकी वाही

९. अक्सर पुराना कोई दोस्त मिलता है तो ज़ेहन में उसका वही बरसों पुराना रूप समाया रहता है, अरसे बाद मिले मित्र में आये परिवर्तन खुद को भी उम्रदराज़ होने का अहसास करा जातें ,, बेहद सुन्दर रचना चित्र पर,----महिमा वर्मा

वंश - लघुकथा

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वंश
पूरा घर नन्हे रौशन के पहले जन्मदिन की तैयारी में व्यस्त था| किन्तु रौशन की माँ कमला निर्विकार भाव से बैठी थी| दो वर्ष पहले की बात उसे परेशान कर रही थी|
'बहुरिया, चल तैयार हो जा| बहुत पहुँचे हुए बाबा आए हैं| सायद कोनो किरपा हो जाए तब यहाँ भी बाल गोपाल की किलकारी गूँजे|'
'ना अम्मा जी, हम नहीं जाएँगे| हमरी अम्मा कहती थी कि जवान बेटी बहु को कोई बाबा उबा के पास नहीं जाना चाहिए|'
'काहे नहीं जाना चाहिए| अब जादे सिखाओ मत अउर चुपचाप तैयार हो जाओ|'
'अरे , काहे बहस लड़ाती है| अम्मा कह रही है तो जाओ न|'
पति की बात सुनकर बड़े बेमन से कमला तैयार हो गई|
'शुभ मुहुरत में बहुरिया को झाड़ फूँक देंगे| उसको यहीं छोड़ जाओ| मुहुरत आधी रात को है'बाबा ने कमला के चेहरे को पढ़ते हुए कहा|
'नहीं अम्मा, हमको छोड़ के मत जाओ|'
''छोड़ के जाने कौन कह रहा है| तुम्हारी अम्मा भी रहेगी|''
यह सुन कमला आश्वस्त हो गई| मुहुर्त देखकर बाबा ने कुछ जड़ी बूटी पीने को दिया| उसे पीकर कब वह बेहोश हो गई पता ही नहीं चला| जब होश आया तो सास के पास ही थी|
'बहुरिया, उठ कर रौशन को नए कपड़े पहनाओ| हमरा वंश बढ़ाने वाला वही तो है| '
सास की बात से कमला की तन्द्रा टूटी|
वह उस हरकत को महसूस कर रही थी जो अचानक होश आ जाने पर उसने महसूस किया था|
''हुँह,काहे का वंश...'घृणा से मु़ब बनाती कमला रौशन के पास चली गई|
ऋता शेखर 'मधु'

तोटक छंद

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तोटक छंद (वर्णवृत छंद)
वर्णिक मापनी - 112 112 112 112

मनु के मन में जब आस रही
हर बात तभी कुछ खास रही
उर में बहती नित प्रेम सुधा
जग में हर भोर प्रभास रही

प्रिय है जिनका ब्रजधाम सखी
मन में रहते वह श्याम सखी
मुरली धुन से हरसी यमुना
जपती रहती नित नाम सखी

पथ के सब भीषण घात कहो
मिलती रहती वह मात कहो
बहती नदिया खिलती कलियाँ
मनभावन सी तुम बात कहो

लिखना कविता रसधार सखे
उतरे दिल के उस पार सखे
मिलते जब कंटक जीवन में
बन औषध दे यह सार सखे

रहता जिनके मन खोट नहीं
उनको सच से कुछ ओट नहीं
समभाव रहे सुख या दुख में
दिल को लगती फिर चोट नहीं
---ऋता

जमाना हर किसी को तोलता है

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शराफ़त से सभी को जोड़ता है
किसी खुदग़र्ज से वो भी अड़ा है

न कोई बच सका है आइने से
जमाना हर किसी को तोलता है

नदी को बाँध लेते हैं किनारे
यही तहज़ीब की परिकल्पना है

बिखरती पत्तियाँ भी पतझरों में
दुखों के सिलसिले में क्या नया है

नजरअंदाज ना करना कभी भी
बड़ों में अनुभवों का मशवरा है

दिलों में है नहीं बाकी मुहब्बत
*कोई आहट न कोई बोलता है*

--ऋता शेखर 'मधु'

1222/ 1222/ 122

काफ़िया- आ

रदीफ़-है

रोला छंद

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रोला छंद
1
देखो आई रात, चाँद भी नभ में आया
झरते हरसिंगार, भ्रमर ने राग सुनाया
फूले सरसो खेत, पंक ने कमल खिलाये
दे बासंती भाव, फूल गेंदा हरषाये
2
हरे हुए हर पात, दूब की बात निराली
झूल रही है ओस, पवन बनती मतवाली
हौले हौले सूर्य, गरम होता जाता है
शिशिर शरद के बाद, ग्रीष्म ही मन भाता है
3
चाह रहे बदलाव, तनिक धीरज से रहना
यह तो है संग्राम, जिसे मिलकर के सहना
मन में रखकर आस, जहाँ में सूरज भरना
गम को पीछे छोड़, कालिमा हर क्षण हरना
--ऋता शेखर 'मधु'

मरियम

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मरियम
गिरजाघर की रौनक देखते ही बन रही थी| चारों तरफ क्रिसमस ट्री पर सजे रंग बिरंगे बल्ब जुगनू की तरह टिमटिमा रहे थे| दुधिया रौशनी से नहाया गिरजाघर का घंटा, अतिथियों के आने जाने का ताँता, हर्षपूर्ण वातावरण, तितलियों की तरह उड़ती फिरती परियों सी नन्हीं बच्चियाँ, इशारों ही इशारों में प्यार का इजहार करने वाले नौजवानों की टोलियों ने त्योहार में इंद्रधनुषी रंग बिखेर दिए थे| ‘मेरी क्रिसमस’ के उल्लसित स्वर बरबस ही बता रहे थे कि आज के पावन दिन पर किसी देवदूत ने अवतार लिया था जिसने अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध जंग लड़ी और जनमानस के जीवन में छाए तम को हटाकर सूर्य की उज्जवलता भर दी| सूली पर कीलों से ठोके गए पर उफ्फ न की|
निश्चित समय पर गिरजाघर के पादरी ने अतिथियों को सम्बोधित कर बधाइयाँ देते हुए कहा-
‘ धरती पर आने वाले हर नवजात में यीशु है| उनका दिल से स्वागत करो| कौन हमारी मुश्किलों से हमें निकालने वाला है यह भविष्य की तिजोरी में कैद है| हम नन्हें यीशु का स्वागत करेंगे तो माँ मरियम की ममता का अस्तित्व रहेगा|’
पादरी के सम्भाषण के बाद लोग कतारों में आकर मरियम और यीशु मूर्ति को देखते और सम्मान में सिर झुकाते| इसके बाद देर रात तक पार्टी चलती रही| नाच गाना से हॉल थिरक रहा था|
उसी हॉल में एक कोने में टेबल पर बैठी स्टेला गोद में एक शिशु को लिए बार बार ढक कर उसे कड़ाके की ठंड से बचाने की कोशिश कर रही थी| उसकी आँखें किसी को ढूँढ रही थीं| पादरी भी इधर उधर घूमते हुए कई बार स्टेला के पास से गुजरे, ठिठके, फिर बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए| स्टेला निर्विकार आँखों से उन्हें ताकती रही|
धीरे धीरे रात गहराने लगी| माहौल थमने लगा| अचानक एक बड़ी सी गाड़ी गिरजाघर के सामने आकर रुकी| पादरी के साथ साथ स्टेला की नजर भी उठी| गाड़ी से शहर के बड़े उद्योगपियों में एक मिस्टर अल्वा अपने बेटे जॉन के साथ उतरे|उन्होंने सीधे जाकर मरियम-यीशु के पास जाकर सिर झुकाया फिर पादरी के पास गए| पादरी ने देखा कि स्टेला भी धीरे धीरे चलकर उधर ही आ रही थी|
‘जॉन ये देखो, हमारा बेटा’ स्टेला ने रुक रुक कर कहा|
‘व्हाट रबिश, ये क्या कह रही,’ हड़बड़ा गया था जॉन| पादरी और मिस्टर अल्वा चौंक गए|

‘मैं चाहती तो दुनिया में इसे नहीं लाती, मगर मैंने ऐसा नहीं किया| फ़ादर हमेशा कहते हैं कि हर नवजात में यीशु है| मैं यीशु को आने से कैसे रोक सकती थी| इसे अपना लो जॉन|’ स्टेला के स्वर में आग्रह था|
‘नही लड़की, इस बात का जिक्र कहीं नहीं करना| तुम भी चाहो तो अनाथालय में इसे रखकर आजाद हो सकती हो|’ मिस्तर अल्वा ने कड़े स्वर में कहा|
‘नहीं, मैं भी मरियम हूँ| यह शिशु मेरा यीशु है| मैं पालूँगी इसे|’ पादरी पर गहरी नजर डालते हुए स्टेला ने कहा|
धीरे धीरे स्टेला के कदम गिरजाघर से बाहर निकल रहे थे| पादरी कभी मरियम की मूर्ति को देखते और कभी स्टेला को, परन्तु वे स्टेला को आगे बढ़कर रोक न सके| उन्होंने मिस्टर अल्वा के सामने हाथ जोड़ दिया-
‘ मरियम तो चली गई, अब कैसा क्रिसमस !! गिरजाघर बन्द करना चाहता हूँ| इजाजत दीजिए|’
---ऋता शेखर ‘मधु’

प्रैक्टिकल नॉलेज

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प्रैक्टिकल नॉलेज

'अरे, आज ये महाशय ऑटो में', मन ही मन आश्चर्यचकित होते हुए मैं भी उसी ऑटो में बैठ गई|

वो सज्जन मेरी कॉलनी के थे| रइसों में गिनती होती थी उनकी| काम पर जाने का उनका समय भी सुबह नौ बजे ही होगा तभी लगभग हर दिन रास्ते में बड़े गेट से निकलती बड़ी सी गाड़ी में उन्हें देख देखकर पहचान गई थी| वे मुझे नहीं जानते थे|


ऑटो तेजी से गंतव्य की ओर बढ़ रहा था| जगह पर पहुँच कर वे उतरे और ड्राइवर की ओर पाँच सौ का नोट बढ़ाया|

'साहब जी, आपको सिर्फ आठ रुपए देने हैं| इतनी सुबह मैं पाँच सौ के छुट्टे न दे पाऊँगा|'

'आज ऐन वक्त पर मेरी गाड़ी खराब हो गई| समय नहीं था तो ऑटो पर आ गया|छुट्टे रखने की आदत नहीं और वॉलेट में सारे नोट पाँच सौ के ही हैं', उन्होंने ऑटो से आने की मजबूरी बताई|

'जाइए साहब जी, कोई बात नहीं| कभी कभी आम पब्लिक की तरह सफर करेंगे तभी प्रैक्टिकल नॉलेज होगी न| हर तरह की सवारी के अपने कायदे होते हैं,'मुस्कुराते हुए ड्राइवर ने कहा|

वे बेबस से खड़े थे|

'सर, वो नोट इधर दीजिए', तब तक मैं सौ सौ के पाँच नोट निकाल चुकी थी|
उन्होंने धन्यवाद कहते हुए सारे नोट लिए और एक नोट ऑटो वाले को दिया|
वापसी में पचास , बीस और दस के नोट के साथ दो का सिक्का भी था|

सिक्के ने अपना महत्व बताते हुए अमीर वॉलेट में जगह बना लिया|

--ऋता शेखर 'मधु'

नया साल आया है

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नया साल ले आ गया
धवल सलोना प्रात
गया वर्ष लिखता रहा
अनुभव के अनुपात

चल कमली कोहरे के पार
वहाँ सजा है अपना खेत
खुद से खुद ही आगे बढ़ जा
झँझवाती से अब तो चेत

भोर किरण देने लगी
खुशियों की सौगात

हम ऐसे मजबूर हुए
कुछ अपने भी दूर हुए
गम की काली चादर फेंक
रमिया अब तू रोटी सेंक

जीवन में करना सदा
उम्मीदों की बात

करो प्रदीप्त प्रेम की ज्वाला
मुँह में सबके पड़े निवाला
सुनो सुहासी तोड़ो फूल
परे हटाओ निर्मम शूल

पलकों पर जाकर रुके
सपनों की बारात

मन का संबल मन की जीत
मन हरसे तो रच दे गीत
ओ जमनी, बन मीठी धारा
घुट घुट कर क्यों होना खारा

आँचल में अधिकार मिले
अटल रहे अहिवात

- ऋता शेखर ‘मधु’

उत्तरायण हुए भास्कर

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उत्तरायण हुए भास्कर
भक्त नहाए गंग
उम्मीदों की डोर से
उड़ा लो आज पतंग

रग रग में जागी है ऊर्जा
शिशिर गया है खिल
एहसासों के गुड़ में लिपटे
सोंधे सोंधे तिल
थक्के थक्के में दही जमे

लिए गुलाबी रंग
किसका माँझा किससे तेज
आसमान में ठनी लड़ाई
इसका पेंच या उसका पेंच
बढ़ी काटने की चतुराई
पोहा खिचड़ी तिलछड़ी में
उमग रही उमंग

मौसम बदला रिश्ते बदले
ग्राह पकड़ता गज के पैर
पलक झपकते किसी बात पर
अपने भी हो जाते गैर
फन काढ़ता लोभ मोह का
सोया हुआ भुजंग

रामखिलावन बुधिया के घर
लेकर जाता कड़क रेवड़ी
सासू माँ बिटिया रानी की
दिखा रही है अजब हेकड़ी
मकर काल में सूर्य भ्रमण
फड़काता है अंग

खरमास का अवसान हो रहा
अब शुभ मुहुर्त आने को है
दिन बढ़ना रातों का घटना
राग फाग का छाने को है
देख थाल में शगुन का कँगन
कम्मो होती दंग

उम्मीदों की डोर से
उड़ा लो आज पतंग

--ऋता शेखर ‘मधु’

सरजमीं पर वक्त की तू इम्तिहाँ की बात कर

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चाँद वाली रौशनी में आसमाँ की बात कर
ऐ मुहब्बत अब सितारों के जहाँ की बात कर

मुफलिसी में भी रहे आबाद रिश्तों का जहाँ
हो मुरव्वत हर किसी से उस मकाँ की बात कर

जो तस्सव्वुर में दिखे वो सच सदा होते नहीं
सरजमीं पर वक्त की तू इम्तिहाँ की बात कर

ओ मुसाफिर आज तू जाता कहाँ यह बोल दे
हो सके रहकर यहीं पर आशियाँ की बात कर

अजनबी से रास्ते अनजान सी वो मंजिलें
वस्ल की हो रात जब तो ना ख़िजाँ की बात कर

रेत पर आती लहर वापस गुजर कर जा रही
है दिलेरी गर बशर में तो निशाँ की बात कर
--ऋता शेखर ‘मधु’
2122  2122  2122  212

फेसबुकिया स्टेटस-2

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इतनी तेजी से Whatsapp पर हम सुविचारों को forward करते हैं कि...
उसपर विचार करने का अवसर ही नहीं मिलता
यदि उतनी ही तेजी से परोसी हुई थाली को जरूरतमंदों की ओर खिसका सकें तो.......छोड़िये, यह फालतू बात लगेगी|22/01/17

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नशा करना छोड़ दो
दारु की बोतल तोड़ दो

जो पीयेगा दारू
भाग जायेगी उसकी मेहरारू

मद्य का हो बहिष्कार
खुशहाल हो घर परिवार

एक घंटे तक लगता रहा ये नारा...
पूरी तरह सफल रहा आयोजन
परिणाम अच्छा ही रहना चाहिए।

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कहते हैं किसी भी परिवार, राज्य या देश को सुरक्षित और अनुशासित रखने के लिए एक अकाट्य श्रृंखला की आवश्यकता होती है...श्रृंखला की एक कड़ी भी कमजोर पड़े तो उधर से घुसपैठियों को आते देर नहीं लगती।
आज ऐसी ही एक मानव श्रृंखला का निर्माण होने जा रहा है बिहार राज्य के चारो ओर... उद्देश्य है मद्य निषेध को पूरी तरह कायम रखना...मद्य का हो बहिष्कार खुशहाल हो घर परिवार...घिरे हुए क्षेत्र में पूरी तरह से शराबबंदी होगी...इस श्रृंखला की एक कड़ी बनते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है...बस, मुख्यमंत्री जी का यह कार्यक्रम सफल हो जाए यह दिली कामना है।
जय बिहार
जय भारत21/01/17

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सब तरह का काम शिक्षक के जिम्मे...अब एक झाड़ू भी पकड़ा दो...यह काम भी कर ही देंगे आज्ञाकारी शिक्षकगण।
साथ ही designation भी बदल देना चाहिए।
M P W---Multipurpose Worker
शिक्षा का स्तर शिक्षक ही सुधारेंगे, तब न जब सिर्फ पढ़ाने का ही काम दिया जाये। 20/01/17

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एक तांका...

कद का क्या है
कही वह ऊँचा है
कहीं है नीचा
अभिमान ये कैसा
शबनम के जैसा
ऋता19/01/17

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लड़कर मिल जाती है सायकिल
मना कर मिलता आशीर्वाद
पिता पुत्र के प्रेम में
फिर कैसा था वाद विवाद ?
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बॉयोमेट्रिक लग जाने के बाद भी होड़ खत्म न होगी...पहले देर से आने की थी अब सवेरे आने की...
:D :D
यह विचारणीय है...बिना भय के सही काम करवाना मुश्किल है।
अँगूठा छाप बनते ही सारी लेट लतीफी फुर्र हो गई ।18/01/17

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एक दोहा
मैं सही और तुम गलत, समझाते हर बार
इससे ऊपर सोच हो, शान्त रहे घर द्वार
-ऋता
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संवेदनाओं के चाक पर
शब्दों की माटी को
मिल जाये जब
भाव की नमी
फिर होगी जो रचना तैयार
वो बेमिसाल होगी
कभी कुछ शब्द हो भी जाएँ
इधर उधर
वो तराश देता है
कुशल कुम्भकार की तरह
और
वो फनकार बसता है
हम सभी के भीतर
जरा तलाशिये तो 💐💐
--ऋता

17/01/17

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कॉमेडी शो में ताल ठोक ठोक कर हँसनेवाले ने ऐसा क्या किया कि लोग उनपर हँसने के लिए मजबूर हो गए 😊😊 बूझ सकें तो बूझ लें।15/01/17

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जिसने जिंदगी में कभी किसी को माफ़ न किया हो वह माफ़ी का हक़दार नहीं हो सकता।14/01/17

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अब आती नहीं है बेला गोधूलि की
न झुण्ड में गउएँ चरने जाती हैं
न तो लौटते हुए धूलि उड़ाती हैं
वे बन्द रहती हैं चारदीवारी में
मिल जाता है वहीं खाना पानी
बड़े बड़े नाद में पड़ी रहती सानी

अब हो जाती है शाम
नहीं होती गोधूलि बेला 12/01/17

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हिंदी में ही सोचते, अपने मन की बात
जिह्वा पर क्यों थोपते, रोमन का उत्पात
रोमन का उत्पात, बिगाड़े अपनी भाषा
देवनागरी शब्द, निखारे निज परिभाषा
बने श्लोक जब मन्त्र, सजे पूजन में बिंदी
घर है हिन्दुस्तान, बोलते क्यों ना हिंदी

विश्व हिंदी दिवस पर
-ऋता 10/01/17

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एक दोहा
पतझर में झरते रहे, यत्र तत्र सर्वत्र
पत्ते पत्ते ने लिखे,ऋतु बसंत को पत्र
--ऋता10/01/17

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बैंक बैलेंस, मकान, जमीन...अर्थात् इस तरह की संपत्ति सँभालने वाले सब है...
लिखित साहित्यिक संपत्ति संभालेगा कौन ?09/01/17

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योग्यता हमेशा वरदान ही साबित हो...यह सच नहीं। 08/01/17

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स्त्रियाँ पब्लिक स्पॉट पर भी आराम से फैमिली प्रॉब्लम डिस्कस कर लेती है।
.....सच , स्त्रियां बहुत बोलती हैं ☺0

07/01/17

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अच्छा लग रहा...एक राह भूला दोस्त पुनः दोस्त को पहचान रहा।
बिहार को प्रकाशोत्सव की सबसे बड़ी देन... मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री...दोनों ने एक ही मंच पर एक दूसरे की भरपूर सराहना की।06/01/17

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बदबस्तगी का आलम सड़कों पे यूँ दिखा
उड़ते रहे हिजाब तमाशबीनों की भीड़ में
---बेंगलुरु में 31 दिसम्बर की रात 06/01/17

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बेटा और बेटी...उच्च या मध्य वर्ग में कमोबेश बराबरी का दर्जा पा चुके है तभी तो देर रात में दोनों ही सड़कों पर पाये जाते है। सावधानी बुद्धिमानी की निशानी है...बुजुर्ग कह गए इसे..जिसे दोनों को समझना होगा।

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बाहर से आये सिक्ख भाइयों के सुन्दर सुन्दर उदगार...
सच पटना की शोभा देखते ही बन रही...लोगो की कई गलतफहमियां मिट गईं यहाँ आने के बाद...सब कह रहे...बिहार आने के बाद विचार ही बदल गए ...बिहार और पटना के बारे में बहुत बुरा सुना था पर यहां सब उल्टा दिख रहा...सब लोग बहुत सहयोगी हैं...गुरुघर की व्यवस्था पंजाब से कम नहीं...सच, बहुत अच्छा लग रहा।
पटना किन्ना सोणा शहर है...यह हम नहीं कह रहे, हमारे सिक्ख अतिथि कह रहे।

04/01/17

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गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज के कवित्त
3
कोऊ भइओ मुंडिया कोऊ जोगी भइओ
कोऊ ब्रह्मचारी कोऊ जति अनुमानबो
हिन्दु तुरक कोऊ राफ़ज़ी इमाम साफ़ी
मानस के जात सबै एकै पहिचानबौ
अर्थ---
कोई सर मुड़ाकर बैरागी बन गया, कोई सन्यासी, कोई जोगी, कोई जति, कोई हिन्दू, कोई तुर्क, कोई शिया, कोई सुन्नी है, परंतु मैं सब मनुष्यों को एक जैसा समझता हूँ।03/01/17

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हमलोग कबीर और रहीम के लगभग सभी दोहों से वाकिफ हैं। मैं गुरु गोबिंद सिंघ के कुछ कवित्त अर्थ सहित देने जा रही हूँ।
अभी सिक्खों के दसवें गुरु के जन्मदिवस को 350वे प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है...तो जाहिर है पटना साहिब का माहौल बिलकुल मत्था टेकने वाला...और लंगर का हो गया है। जनता में भी गजब का उत्साह है।
अब कवित्त
1
खूक मलहारी गज गदहा बिभूतधारी
गिदुआ मसान बास करिओ ई करत हैं
अर्थ-
यदि शरीर पर मिट्टी लगाने से परमात्मा प्राप्त होते है तो हाथी और गधे सदा मिट्टी धारण किये रहते हैं। यदि प्रभु सदा श्मशान में रहने से मिलते हैं तो गिद्ध तो सदा श्मशान में ही रहते हैं।
2
घुघू मट बासी लगे डोलत उदासी मृग
तरवर सदीव मोन साधे ही मरत हैं
अर्थ-
यदि मठ में रहने से मुक्ति प्राप्त होती हो तो उल्लू सदा मठों में रहता है। उदास रहने से भी मुक्ति प्राप्त नहीं होती, देखो हिरण सदा उदास एक स्थान से दुसरे स्थान स्थान की ओर भागते रहर हैं। चुप्पी साधने से भी मुक्ति नहीं मिलती, वृक्ष भी सदा चुप ही खड़े रहते हैं।
02/01/17

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क्रिसमस ट्री के साथ तुलसी पूजन की बात हुई|
वैलेंनटाइन डे आएगा तो माता पिता को याद किया जाएगा|
अच्छा लगता है नकारात्मकता में सकारात्मकता देखना...
जो कैलेंडर पूरे विश्व में मान्य है उसके अनुसार शुभकामनाएँ देने में परहेज कैसा|
खुले दिल से स्वागत करें हर शुभ दिन का..
2017.शुभ ही शुभ हो सभी मित्रों के लिए|01/01/17

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मुझे नही पता
मैं बेहतरीन मित्र हूँ या नही,
लेकिन मेरी मित्र सूची में
सारे मित्र बहुत बेहतरीन हैं
नया साल ढेर सारी खुशियाँ लाये आपके जीवन में।
शुभकामनायें सभी को।३1/1२/16

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7:30 की इतनी उत्सुकता कभी न थी
खूब कयास लगाये जा रहे चैनलों पर...मोदी जी का राष्ट्र के नाम संदेश

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जॉनी जॉनी
यस पापा
ईटिंग शुगर
नो पापा
टेलिंग lie
नो पापा
ओपन योर माउथ
हा हा हा
...पप्पा- बेटे की यह राइम अच्छी है न।
मुलायम रिश्ते मुलायम बने रहें तो मन भाते हैं।
(बुद्धिमान सन्दर्भ ढूँढ ही लेंगे) उत्तर प्रदेश चुनाव के सन्दर्भ में

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पूरी सज धज ले साथ पटना का तख़्त हरमंदिर साहिब तैयार है...जी आयां नूँ... कहते हुए मत्था टेकने आना है।
सिख संप्रदाय के दसवें गुरु -गुरु गोविन्द सिंह जी का 350वां जन्मदिवस प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है जिसके लिए तीन दिनों की सार्वजानिक छुट्टी घोषित की गयी है। एक निश्चित दिशा में निश्चित दूरी के लिए मुफ़्त बस सेवा का प्रावधान है। कहीं कोई कचरा नहीं...गंभीरता से यातायात व्यवस्था देखी जा रही...चारो ओर पुलिस ही पुलिस ...प्रशासन की और से सुरक्षा का पुख्ता इंतेजाम....बिहार पटना पर गर्वानुभूति
प्रकाश पर्व की बहुत शुभकामनायें।30/12/16

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नव वर्ष में एक शपथ
ले रहा जमाना

हम भी लेंगे नई शपथ
करेंगे ना बहाना

गुणों की अदला-बदली कर
मैं वक्ता तुम श्रोता बन जाना।
-ऋता

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बिछड़ने से पहले मिलन अवश्यम्भावी है।
जाने वाला 2016 और आने वाला 2017 पल भर के लिए अवश्य मिलेंगे...31 दिसम्बर की रात पक्का 12 बजे जब घड़ी की छोटी सूई और बड़ी सूई आपस में मिलेंगे...और उसके साक्षी होंगे हम सब... विदाई के लिए भी और स्वागत के लिए भी। जाने वाले को ख़ुशी से विदा करें और आने वाले का प्रेम से स्वागत हो।
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कभी किसी को अकेला रहना पड़ता है एक दो दिन के लिए...... तो अक्सर सुनने को मिलता है...कुछ भी खा लेंगे...ये "कुछ भी"कौन सी डिश है किसी को पता है क्या ?

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हम अपनी रचनाओं के फ्रेम में सुन्दर सुन्दर शब्दों को कितनी सुन्दरता से सजा पाने में सफल हो पाते हैं...यह शब्दों की अमीरी पर निर्भर है| कभी कभी बहुत गरीबी का अनुभव होता है|
जज्बात , एहसास और भावनाओं के करोड़पति सभी मनुष्य होते हैं|

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ये दुनिया ये समाज क्या है
भौतिकता का पर्याय
मैं इनकी परवाह नहीं करता

अच्छा जी, जब इतने ही निर्विकार हो तो तो तो
यहां से हमेशा के लिए deactivate होकर दिखाओ

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जो पुरुष अपने जीवन साथी या किसी भी महिला के लिए 'अनलकी'या कोई भी अपशब्द का इस्तेमाल करते हैं वे निश्चित रूप से दिमागी तौर पर अस्वस्थ होते हैं |............तीस वर्ष साथ रहने के बाद एक पत्नी जिसने कैंसर से पीड़ित पति की सेवा की ...और एक दिन अपने पति के साथ अपने कार्यस्थल पर आई तो उनके पति ने दस बार से भी ज्यादा उन्हें अनलकी कहा| उस वक्त उन महिला के चेहरे पर जो अपमान की रेखाएँ थीं उसने हम सभी महिलाओं को उद्वेलित कर दिया|-----------------------

जहाँ में कौन कितना आग या पानी रहा
न थी मर्जी बशर की वो ख़ुदा की नेमतें
-ऋता

मुकद्दर के भरोसे जिंदगी कटती नहीं
हुनर भी तो समर्पण त्याग का ही चाहिए
-ऋता
0☺



समस्या-लघुकथा

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समस्या

सुबह सुबह कमरे से आती खुसरफुसर की आवाज उनके कानों में पड़ रही थी|
''आज शाम को बॉस ने पार्टी में बुलाया है| जाना अत्यंत आवश्यक है| मैं तुम्हे बैंक से ही पिकअप कर लूँगा रमा| बॉस की बात है तो कुछ पहले जाना ही पड़ेगा ताकि उनकी मदद कर उनपर अपना इम्प्रेशन जमा सकूँ| अगले महीने ही प्रमोशन की लिस्ट निकलने वाली है|''


''किन्तु माँजी की व्यवस्था करनी होगी न संदीप| पार्टी से लौटते हुए देर भी हो सकती है| घर आकर खाना भी बनाना होगा माँजी के लिए|''

''अरे हाँ, ये तो सोचा ही नहीं| ठीक है मैं अकेले ही चला जाऊँगा| किन्तु तुम भी चलती तो...खैर जाने दो''

रसोई में बरतनों के खटपट की आवाज आने लगी| रमा चाय की कप लेकर सास के कमरे में पहुँची|
''बहू, आज मेरा व्रत है| मैं कुछ नहीं खाऊँगी| घर में जो फल है वही खा लूँगी|''
रमा के चेहरे पर की खुशी को उन्होंने भली भाँति महसूस किया|

''संदीप, समस्या खुद ही सुलझ गई| आज माँजी का व्रत है|''

संदीप ने हिंदी महीने का कैलेंडर देखा| माँ द्वारा किए जाने वाले सभी व्रत से वह वाकिफ़ था| फिर आज कौन सा व्रत है यह देखने गया| कोई व्रत नहीं था| रमा की खुशी देखकर वह कुछ कहने की हिम्मत न जुटा सका|
रसोई से आती आवाज सुनकर उन्होंने नमी को पलकों पर ही थाम लिया|
--ऋता शेखर 'मधु'

मुसीबत राह में आई मिले हमदर्द भी हरदम

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ग़ज़ल

जरा भर लो निगाहों में कि उल्फत और बढ़ती है
हया आए जो मुखड़े पर तो रंगत और बढ़ती है

निगहबानी खुदा की हो तो जीवन ये महक जाए
मुहब्बत हो बहारों से इबादत और बढ़ती है

मुसीबत राह में आई मिले हमदर्द भी हरदम
खिलाफ़त आँधियाँ करतीं तो हिम्मत और बढ़ती है

जमाने में शराफ़त की शिकायत भी लगी होने
जलालत की इसी हरकत से नफ़रत और बढ़ती है

फ़िजा महफ़ूज़ होगी तब कटे ना जब शज़र कोई
हवा में ताज़गी रहती तो सेहत और बढ़ती है
--ऋता शेखर 'मधु'
1222  1222  1222  1222

सरस्वती वंदना—हरिगीतिका छंद

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सरस्वती वंदना—हरिगीतिका छंद

 
यह शीश कदमों पर नवा करकर रहे हम वन्दना
माँ शारदे कर दो कृपा तुम ज्ञान की है कामना
संतान तेरी राह भूलीदृष्टि की मनुहार है
उर में हमारे तुम पधारोपंचमी त्यौहार है

धारण मधुर वीणा किया है  दे रही सरगम हमें
संगीत से ही तुम सिखाती  एकता हरदम हमें
पद्‌मासिनी कर दो कृपा अबहो सुवासित यह जहाँ
कुसुमित रहे बगिया हमारी चम्पई भर दो यहाँ

है ज़िन्दगी की राह भीषण पग कहाँ पर हम धरें
मझधार में कश्ती फँसी है पार हम कैसे करें
तूफ़ान में पर्वत बनें हमशक्ति इतनी दो हमें
तेरे चरण- सेवी रहें हम  भक्ति से भर दो हमें

तेरे बिना कुछ भी नहीं हम  सब जगह अवरोध है
हों ज्ञान-रथ के सारथी हम  यह सरल अनुरोध है
करते तुझे शत-शत नमन हम, हो न तम का सामना
आसक्त तुझमें ही रहें हम  बस यही है कामना

हो शांति ही संदेश अपना  दो हमें यह भावना
भारत वतन ऐसा बने  होसब जगह सद्‌भावना
साकार हों सपने सभी के  कर रहे आराधना
माता करो उपकार हमपर पूर्ण कर दो साधना

-ऋता शेखर ‘मधु’

स्वागत मधुमास का

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पुखराजी पुष्प करें
स्वागत मधुमास का

कोहरे को पार कर
अँखुआता घाम है
सरसो पिरिआ गई
महका जो आम है
झूम झूम डालियाँ
करती व्यायाम है

वीणा की रागिनी में
स्वागत है आस का

मन्द मन्द पवन की
शीतल छुअन है
महुआ के गीत में
कमली मगन है
फगुआ के राग की
लागी लगन है

पतंग के परवाज में
स्वागत उल्लास का

प्रेम गीत गाने को
कलियाँ बेताब हैं
मौसम के खाते में
कइयों के ख्वाब हैं
पुस्तक के बीच में
दब रहे गुलाब हैं

बासंती झकोरे में
स्वागत विश्वास का

---ऋता
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