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Channel: मधुर गुँजन
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तुम जिन्दा हो - लघुकथा

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 तुम जिन्दा हो 

आइने के सामने खड़ा होकर वह सोच रहा था, 

“वो कौन सी शक्ति थी जो बार बार उससे कह रही थी - कूद जाओ, तुम्हारी किसी को जरूरत नहीं|”

सेन फांसिसको के गोल्डन ब्रिज से वह प्रायः गुजरता था फिर उस दिन उसके मन में यह बात क्यों आई| क्या वाकई सागर की लहरों ने उसे बुलाया या वह मात्र वहम् था| प्यार में धोखा खाने के बाद खुद को खत्म कर लेने का विचार ही तो उन लहरों से नहीं गूँज रहा था|

“जिन्दगी से भागने वाले कायर होते हैं,” दृढ़तापूर्वक दोस्तों के बीच यह कहने वाला खुद जिन्दगी से भाग खड़ा होने को तैयार था|"

यह कुदरत का करिश्मा ही था कि उस दिन ब्रिज से बीच महासागर में छलांग लगाने के बाद वह सी- लायन की पीठ पर अटक गया था| बचाव दस्ता की नजर पड़ी और उसे बचा लिया गया|

आज आइने का अक्स कह रहा था, “जिन्दगी को तुम्हारी जरूरत थी इसलिए तुम जिन्दा हो| पर कायर भी हो, इसे स्वीकार कर लो|”

“ हाँ, हाँ मैं कायर हूँ और वह निर्णय मेरी सबसे बड़ी भूल थी,” उसका दिल चीख चीख कर कह रहा था|

--ऋता शेखर ‘मधु’

एक शपथ-स्वतंत्रता दिवस के लिए

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जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है
जन हित हो जीवन का मकसद
दुनिया में अलख जगाना है

साफ सुलभ रस्तों पर चलकर
बन्धु बान्धव घर को जाएँ
कहीं मिले न कूड़ा कचरा
प्रयत्न सदा यहीं कर आएँ
गली मुहल्ले मह मह महकें
फूलों के बीज लगाना है

जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है

अंधियारों में पथ रौशन हो
पोल पोल पर बल्ब जले
ठोकर खाकर गिरे न कोई
गढ्ढे सड़कों के भरे मिलें
समवेत प्रयासों से सबको
ऐसा ही नगर बसाना है

जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है

सड़कों पर नारी निडर रहे
बच्चों को मिल जाये पोषण
अमीर गरीब का भेद मिटे
मजदूरों का हो न शोषण
छोटे छोटे डग भर भर कर
हमे हिमालय पाना है

जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है
-ऋता शेखर मधु

धनवान-लघुकथा

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धनवान 
मुसलाधार बारिश में माया छतरी लेकर जल्दी जल्दी घर जा रही थी|
''अरे माया, गाड़ी में आ जा"अचानक माया के बगल में एक बड़ी सी कार रुकी और ऐश्वर्या ने दरवाजा खोला|
''मैं चली जाऊँगी''
''अब आ भी जा न|''
माया फिर ना नहीं कह सकी| छतरी बन्द करके अन्दर आ गई|
अन्दर बैठकर अपनी अमीर सहेली की साड़ी की कीमत आँकती हुई अपने कपड़े से उसकी तुलना करने लगी|
''माया, मेरे घर चल| आज बड़े दिनों बाद मिले हैं| गप्पें शप्पें लड़ाएँगे|''
गाड़ी एक आलीशान बँगले के सामने रुकी| गार्ड ने दरवाजा खोला| दोनो उतरीं और अन्दर गई| माया उसकी शान शौकत देखकर हीनता से ग्रसित हो रही थी| ऐश्वर्या के दोस्ताना व्यवहार में कमी नहीं थी| दोनो खूब बातें करती हुई ठहाके लगाने लगीं|
तभी गार्ड ने सूचना दी,''मेम साब, साहब आ गए|''
माया जाने के लिए उठ खड़ी हुई| तब तक ऐश्वर्या के पति अन्दर आ गए| चाल की लड़खड़ाहट और मुँह से आती तेज दुर्गंध से माया थोड़ा घबरा गई| उसने जल्दी से हाथ जोड़कर नमस्ते किया और बाहर आ गई| अन्दर से ऐश्वर्या के तेज तेज बोलने की आवाज आ रही थी| शायद वह इस स्थिति का विरोध कर रही थी| फिर तेज थप्पड़ की आवाज सुनाई दी जिसकी गूँज माया को घर पहुँचने तक सुनाई देती रही|
घर पहुँच कर माया ने देखा, उसके पति गर्मागरम चाय के साथ उसका इन्तेजार कर रहे थे| माया ने धीमे से कहा,''मैं बहुत धनवान हूँ|"
-ऋता शेखर 'मधु'

कोरे विचार-लघुकथा

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कोरे विचार
अनन्या और तुषार दोनो मल्टीनेशनल कम्पनी में इंजीनियर थे| एक प्रेजेंटेशन के दौरान दोनो एक दूसरे से मिले| तुषार को अनन्या अच्छी लगी तो उसने अपने माता पिता को बताया|
आज तुषार के घरवालों ने अनन्या के माता-पिता को बुलाया था|
“हमने अनन्या को अच्छी शिक्षा दी है| अच्छे पैकेज वाली नौकरी भी लगी है उसकी| हमें लगता है लेन देन जैसी कोई बात न होगी| लड़का लड़की ने एक दूसरे को पसंद कर लिया है| हमें पंडित जी से शुभ मुहुर्त निकलवा कर ही जाना चाहिए,” रास्ते में अनन्या की मम्मी बोले जा रही थीं|
तुषार के घर उनके स्वागत में कोई कमी नहीं की गई| बातों का क्रम आगे बढ़ा|
“देखिए, हम लेन देन की बात नहीं कर रहे| दोनों खुश रहें इससे बढ़कर हमें क्या चाहिए| बाकी लड़की को कपड़े, गहने, गाड़ी जो कुछ भी दें उससे हमें कोई मतलब नहीं| बस इंगेजमेंट, शादी और रिसेप्शन टॉप होटल में करें और वह खर्च उठा लें| शादी बार बार नहीं होती तो यह सब यादगार होना चाहिए| वो क्या है न कि तुषार की अच्छी शिक्षा में हमारा बैंक बैलेंस... ”
“बैंक बैलेंस तो हमारा भी...” सोचती हुई बिना दहेज की शादी के कोरे विचार पर हँस दी अनन्या की मम्मी|
--ऋता शेखर ‘मधु’

आज मैं...सबका दुलारा कृष्ण हूँ

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आज मैं....

आज मैं
देवकी का दर्द
यशोदा का वात्सल्य
राधिके का प्रेम
रुक्मिणी का खास हूँ

आज मै
वासुदेव की चिंता
नंद का उल्लास
गोपियों का माखनचोर
पनघट का रास हूँ

आज मैं
कंस का संहारक
कालिया का काल
सुदामा का सखा
योगमाया का विश्वास हूँ

आज मैं
द्रौपदी का भ्राता
पार्थ का सारथी
गीता का प्रणेता
युग युग की आस हूँ

आज मैं
सम्पूर्ण ब्रह्मांड लिए
जग का पालनहार
सोलह कलाओं से युक्त
नीला आकाश हूँ

हाँ, मैं सबका प्यारा, दुलारा कृष्ण हूँ|

--ऋता शेखर 'मधु'

अँकुर-लघुकथा

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1.बीज का अँकुर
पन्द्रह दिन पहले सोनाली की शादी हुई थी| सोनाली के मम्मी-पापा बेटी से मिलने ससुराल आए थे| सोनाली के सास, ससुर, ननद, देवर सबने दिल खोलकर स्वागत किया|
थोड़ी देर बाद ससुर जी ने कहा,”बहु, अपने मम्मी-पापा को अपने कमरे में ले जाओ|”जी पापा जी,’कहकर सोनाली माता पिता को अपने कमरे में ले गई|
बेटा, यहाँ सब ठीक तो है न|तुम्हारा मान सम्मान कैसा है| दामाद जी का व्यवहार कैसा है,’पिता की चिन्ता वाजिब थी|
जी पापा, सब ठीक है| बस मुझे एक ही बात अच्छी नहीं लगती कि सवेरे सवेरे उठकर ननद, देवर के लिए नाश्ता बनाना पड़ता है| ससुर जी के लिए चाय, सासु माँ के लिए पूजा की तयारी, साथ ही आपकेदामाद जी की फरमाइशें| दो घंटे चकरघिन्नी की तरह नाचने के बाद ही मैं अपना काम कर पातीहूँ|’और दिन भर’, पापा ने सवाल किया|
फिर दिन भर आराम है| टीवी देखती हूँ| इनके साथ घूमने जाने पर कोई रोक टोक नहीं|’
कोई तुमसे सख्त आवाज में बात भी करता है क्या,’
नहीं तो,’ सोनाली ने सच बताया|
फिर बेटा, ये शिकायत कैसी! क्या वहाँ तुम मेरा और अपनी माँ का ख्याल नहीं रखती थी? छोटे भाई बहन को खाना भी देती थी| वहाँ तो तुम्हें कोई शिकायत न थी|’
जीसोनाली ने सर झुकाकर कहा|
तभी सोनाली को उसकी सासू माँ नेआवाज दी| सोनाली चली गई तो उसकी माँ ने कहा, ‘बेचारी बच्ची ने अपने दिल की बातबताई और आपने उसे ही समझा दिया|’
नहीं सोनाली की माँ, उसे यहाँ कोई तकलीफ नहीं| जिम्मेदारियाँ निभाना हर बहु को आना चाहिए| यदि आज हम उसकी शिकायत सुन लेंगे, मतलब इस घर में विष का बीज बो देंगे| उसके विषैले अँकुर में पनपी परिस्थितियाँ सबके लिए भयावह हो जाएँगी|’
दरवाजे पर खड़ी सोनाली ने मुस्कुराकर कहा,’ मेरे पापा दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं|’
--ऋता शेखर मधु

सोई आत्मा-लघुकथा

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सोई आत्मा

एम्बुलेंस तेज हॉर्न बजाती अस्पताल के दरवाजे पर लग चुकी थी| स्ट्रेचर को भीतर ले जाने के लिए कर्मचारियों के दल के साथ डॉक्टर भी आया| डॉक्टर ने मरीज को आई सी यू में भरती किया और जाँच में लग गया| मरणासन्न मरीज ने तब तक अन्तिम साँस ली| डॉक्टर के कदम बाहर की ओर बढ़े|

“ डॉक्टर वाडेकर, आप कहाँ जा रहे हैं”, साथ वाले डॉक्टर ओबेरॉय ने पूछा|

“पेशेंट की डेथ हो चुकी है| बाहर उनकी फैमिली को बताने जा रहा हूँ|”

“नहीं, पेशेंट को ऑक्सीजन लगाइए, वेंटिलेटर पर रखिए, उसके शरीर में कुछ मशीन फिट कीजिए  ताकि लगे कि इलाज शुरु हो चुका है| मरीज को इस स्थिति में दो दिनों तक रखिए फिर डेथ डिक्लेयर कीजिए|”

“मगर क्यों?”

“जाने वाली की आत्मा सो चुकी है| उसके शरीर से हम जो कमा सकते हैं उसे कमा लेने में हर्ज क्या है|”

“आत्मा तो आपकी सो चुकी है डॉक्टर ओबेरॉय और मर गया है आपका जमीर|”

थोड़ी देर बाद डॉक्टर वाडेकर के हाथ में एक पन्ना फड़फड़ा रहा था|
“आई सी यू में त्वरित इलाज में अक्षमता के कारण आपको दूसरे विभाग में शिफ्ट किया जाता है|”
--ऋता शेखर ‘मधु’

युग का दास - लघुकथा

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युग का दास 


“ये लीजिए जजमान सामान की लिस्ट| प्राणी की अत्मा को तभी शान्ति मिलेगी जब ये सारी वस्तुएँ दान करेंगे| दान की गई सारी वस्तुएँ सीधे स्वर्ग जाएँगी जहाँ आपके पिता इनका उपयोग करेंगे,” पंडित जी ने हरीश बाबू को लिस्ट थमाया|

पलंग , टीवी, कूलर, रसोई के ब्रांडेड बर्तन ,पूरे साल भर का अनाज, स्वर्ण के विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमाऔर भी बहुत कुछ था लिस्ट में|
“तब तो इन्हें ले जाने के लिए ट्रक की व्यवस्था भी करनी होगी|”

“आप जजमान लोग गंभीर बातों को नहीं समझते| युगों से चली आ रही परम्परा को कोई नहीं बदल सकता|” पंडित जी ने कहा|

कैंसर की असाध्य बीमारी से जूझ रहे पिता के इलाज में ही लाखों रुपये खर्च हो चुके थे| अब तक ऋणों के बोझ से दबे हरीश बाबू सोच में डूबे थे|

माँ सबकुछ देख सुन रही थीं| उन्होंने पंडित जी से कहा, “पंडित जी, मेरे श्रवण कुमार पुत्र द्वारा मुझे जो भी सुख सुविधाएँ दी जाएँगी वह सीधे स्वर्ग में उसके पिता के पास पहुँचेंगी क्योंकि मैं उनकी अर्धांगिनी हूँ| आप सिर्फ श्राद्धकर्म करवाएँ , आपको यथोचित पारिश्रमिक मिल जाएगा| युगों से चली आ रही परम्परा बदलना भी हमारा ही काम है|”

“नालायक जजमान,” बुदबुदाते हुए पंडित जी निकल गए|


--ऋता शेखर ‘मधु’

बेपेंदी का लोटा-लघुकथा

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बेपेंदी का लोटा


“वेतनमान के लिए जबरदस्त रैली है| हम सभी कर्मचारियों को उसमें अवश्य भाग लेना चाहिए|”मुकेश वर्मा ने जोशीले स्वर में कार्यालय में सभी कर्मचारियों का आह्वान किया|

“बिल्कुल भाग लेना चाहिए| किन्तु हमलोग काम पर आ चुके हैं और रजिस्टर में उपस्थिति भी दर्ज कर चुके हैं| ऐसे में हमें अपने पदाधिकारी से पूछकर जाना चाहिए| यदि न जाने दें तो सामूहिक अवकाश ठीक रहेगा| हम अवश्य जाएँगे| हमारे अधिकारों का सवाल है,”दिनकर बाबू ने भी ओजपूर्ण शब्दों में हामी भरी|

सभी पन्द्रह कर्मचारी अपने पदाधिकारी के पास पहुँचे और जाने की इजाजत माँगी|
‘नहीं, मैं जाने की इजाजत नहीं दे सकता| जब जाना ही था तो पहले से अवकाश लेना चाहिए था| अब जाने पर मैं कार्यवाई करूँगा,” पदाधिकारी ने कहा|

“सच कहते हैं सर, जब उपस्थिति बन चुकी है तो जाने देना उचित नहीं| आप नियमानुसार ही काम करें,” दिनकर बाबू की यह बदली बदली भाषा देखकर सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे|

जाते जाते सबने सुना,” पेंदी को जाँचे बिना विरोध...हहहहहह”

--ऋता शेखर ‘मधु’

हर भूले को राह दिखाना बनकर दीपक बाती--ललित छंद

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सार/ललित छंद-- 16-12
१.
टिक टिक करती घड़ियाँ बोलीं, साथ समय के चलना
सोने से सो जाते अवसर, मिलता कोई हल ना
नींद देश की सुखद छाँव में,बतियाते हैंसपने
श्रम का सूरज साथ चले तो, हो जाते हैं अपने
२.
अँधियारी रातों में पथ पर, दीपक एक जलाएँ
बन जाए दीपों की माला, ऐसी अलख जगाएँ
हरसिंगार झरे मन आँगन, नभ में बिखरे तारे
चमक रहे बागों में जुगनू, तम दीपक से हारे
३.
दुख के सीले गलियारे से, सुख की गठरी छाँटो
राहों में जो फूल खिले हैं, हँसकर उनको बाँटो
जगत के छल से वह बेखबर,  चुगती रहती दाने
नन्ही सी बुलबुल आँगन में, आती गाना गाने
४.
साँझ ढले पुस्तक पढ़ पढ़ कर, मुनिया राग सुनाती
हर भूले को राह दिखाना, बनकर दीपक बाती
माँ की चुनरी सिर पर डाले, छमछम करती आती
तुतले तुतले बोल बोलकर, बिटिया नाच दिखाती
५.
पावस के पावन मौसम में, जमकर बरसी बूँदें
सूँघ रही माटी की खुश्बू, धरती आँखें मूँदे
वृक्ष विहीन सृष्टि से सुन लो, उसकी करुण कहानी
नीर पेड़ की बरबादी से, छाएगी वीरानी
--ऋता शेखर 'मधु'

विमाता-लघुकथा

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विमाता
करीब एक साल पहले माँ न बनने की शर्त पर तीन सयाने बच्चों की माँ बन कर रेवा इस घर में आई थी| बच्चे सगी माँ का स्थान किसी अन्य को देने को तैयार न थे| बच्चों ने एक दूरी बना रखी थी जिसे रेवा पार नहीं कर पाती| रेवा बड़े जतन से रोज सवेरे बच्चों के इस्तरी किए कपड़े, सबकी पसंद का नाश्ता, लंच पैक, रात का दूध सब कुछ पूरा करने का हर संभव प्रयास करती, जो एक माँ करती है| रात का खाना सब इकट्ठे खाते| बच्चे पिता की बातों का जवाब देते किन्तु रेवा कुछ बोलती तो चुप्पी मार जाते| रेवा का दिल आहत हो जाता|
बारिश में भीग जाने की वजह से आज रेवा का बदन बुरी तरह से टूट रहा था| पति ऑफिस जा चुके थे| वह पलंग पर लेटी कराह रही थी| अचानक रेवा को माथे पर शीतल स्पर्श का अनुभव हुआ| रेवा ने आँखें खोलीं| मोहित ने झट से हाथ हटाया और बाहर चला गया| रेवा ने पूर्ववत आँखें बन्द कर लीं|
“माँ,” एक आवाज आई| रेवा के कान यह शब्द सुनने को अभ्यस्त न थे| उसने भ्रम समझ कर आँखें न खोलीं|
“माँ, दवा खा लीजिए| आपको तेज बुखार है|”
अब शक की गुंजाइश न थी| रेवा ने आँखें खोलीं| मोहित ने दवा और पानी का ग्लास आगे बढ़ाया| दवा खाते हुए रेवा के आँसुओं को मोहित ने दिल से महसूस किया| दवा खाकर वह सो गई |
नींद में ही उसने महसूस किया कि कोई धीरे धीरे उसके पैर दबा रहा है| रेवा ने आखें खोलीं तो जया थी|
“माँ, रात का खाना मैं बनाऊँगी,” बगल में खड़ी नेहा ने रेवा का हाथ पकड़ कर कहा|
तब तक रेवा के पति आ गए|
“मैं अभी डॉक्टर को फोन करता हूँ| रमिया को भी बुला लेता हूँ, खाना बना देगी”
“ नहीं जी, जिस माँ के बच्चे इतने प्यारे और केयरिंग हों उसे किसी की जरूरत नहीं|” लाड भरे स्वर में रेवा ने कहा और जो खिलखिलाहट गूँजी उसे द्विगुणित करने में घर की दीवारों ने कमी न की|
--मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित
---ऋता शेखर ‘मधु’

लघुकथा- चिपको

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लघुकथा- चिपको

नन्हें अतुल का घर बहुत बड़ा था| उस घर में उसके पापा- मम्मी, दादा- दादी और चाचा रहते थे| बड़े घर का आँगन भी बहुत बड़ा था|

“क्यों न आँगन वाली जमीन में दो कमरे बना दें और किराए पर दे दें| बेकार ही वहाँ इतनी सारी जमीन पड़ी है,”दादा जी ने सबके सामने यह प्रस्ताव रखा|

“मगर दादा जी, वहाँ जो अमरूद का पेड़ है उसका क्या करेंगे,” छठी कक्षा में पढ़ने वाले अतुल ने जिज्ञासा प्रकट की|

“ उसे कटवा देंगे और क्या” अतुल के पापा ने कहा|

“लेकिन पापा, पेड़ नहीं काटना चाहिए| पेड़ हमारे पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं|”

“बड़ा आया पाठ पढ़ाने वाला, काम है तो पेड़ काटना ही पड़ेगा| तुम अभी बच्चे हो, बाहर जाकर खेलो और हमें अपना काम करने दो,”चाचा ने अतुल को डाँट दिया|

“जाकर पेड़ काटने के लिए एक मजदूर को बुलाकर ले आओ,” दादा जी ने बेटे को कहा|
“जी” कहकर अतुल के चाचा बाहर चले गए|

अतुल कमरे में बैठकर सोचने लगा| अचानक क्लास में पढ़ाई गई गौरा देवी की कहानी उसे याद आ गई| वन में पेड़ों की कटाई रोकने के लिए गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो जाती थीं| उनका कहना था कि पहले उन्हें काटा जाए फिर पेड़ को काटें|चिपको आन्दोलन के बाद सरकार ने पेडों की कटाई पर रोक लगा दी थी|
आँगन में हलचल बढ़ चुकी थी| पेड़ काटने के लिए शायद मजदूर आ चुका था| अतुल बाहर निकला और अमरूद के पेड़ से चिपक कर खड़ा हो गया|

“ अरे, यह क्या कर रहे हो अतुल| हटो वहाँ से, पेड़ काटने दो,” समवेत स्वर में पापा, दादा और चाचा ने कहा|
“नहीं, पेड़ काटने वाले अंकल को बोलिए पहले मुझपर कुल्हाड़ी चलाएँ,”अतुल ने अडिग स्वर में कहा|

सब खामोश खड़े थे| अतुल की मम्मी जो दूर खड़ी थीं, ने समर्थन में अतुल को अँगूठा दिखाया|

“पेड़ के दो फीट दूर से नींव की जमीन खोदो”, अचानक दादा जी ने मजदूर को आदेश दिया|

--ऋता शेखर ‘मधु’

हम भारत की बेटियाँ, देंगे अरि को मात

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वीरों को नमन...

हँसते हँसते देश पर, जो होते कुर्बान
भारत को आज भी, उनपर है अभिमान

शोकाकुल सरिता थमी, थमे पवन के पाँव
गम में डूबा है नगर, ठिठक रही है छाँव

लोहित होता है गगन, सिसक रहे हैं प्राण
इधर बजी है शोक धुन, उधर मचलते बाण

होती है खामोश जब, चूड़ी की झनकार
विधवा सूनी माथ पर, लिखती है ललकार

सिर से साया उठ गया, छूट गया है साथ
आज सलामी दे रहे, नन्हे नन्हे हाथ

लिखें शहीद समर सफर, परिणीता के नाम
पग पग पर हैं ठोकरें, लेना खुद को थाम

वीर पिता की राख से, कहतीं मन की बात
हम भारत की बेटियाँ, देंगे अरि को मात

आततायियों से कहो, कब तक रहें विनीत
भरना है हुँकार अब, निभा युद्ध की रीत
--ऋता शेखर 'मधु'

ठोस रिश्ता-लघुकथा

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ठोस रिश्ता

“अब मैं रिया के साथ नहीं रह सकता| उसका रोज रोज देर से घर आना मुझे पसंद नहीं| नौकरी करने का मतलब यह नही कि घर को वह नेग्लेक्ट करे|”

“नहीं बेटा, ऐसा मत सोचो| रिया एक समझदार लड़की है| वह काम के प्रति वफादार है| जब हमने नौकरी वाली बहु लाई है तो हमें उसकी मजबूरी भी समझनी चाहिए| | एक तो उसे नौकरी का तनाव है , उसपर तुम्हारा यह रुख कहीं सब कुछ बिखरा न दे| इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, ”माँ ने बेटे अंशुल को समझाना चाहा|

“मगर माँ, अब मुझसे बिल्कुल बरदाश्त नहीं होता| रिश्तों में कड़वाहट आने लगे तो अलग हो जाना ही अच्छा है| मैं तलाक की अर्जी देने जा रहा हूँ|”

“तो ऐसा करो,तलाक का एक कागज मेरे लिए भी ले आना| मैं भी तुम्हारे पापा से तंग आ चुकी हूँ| उनका हर समय घर से बाहर रहना मेरे भी बरदाश्त से बाहर है| सारी गृहस्थी का बोझ मैं अकेले ही क्यों उठाऊँ|”

अंशुल के जाते हुए कदम थम गए| वह सीधे अपने कमरे में गया और पनी दो साल की बिटिया को प्यार करने लगा|

---ऋता शेखर ‘मधु’ 

कुछ नया-लघुकथा

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कुछ नया
‘हरिहर प्राथमिक विद्यालय’ के उद्घाटन समारोह में नरेन भी आया था| वहाँ कई अवकाशप्राप्त वरिष्ठ  योगदान देने को इच्छुक थे|
नरेन को एक साल पहले की बात याद आ गई|
‘पापा, आपको रिटायरमेंट के जो पैसे मिले हैं उससे तीन बेडरूम का फ्लैट ले लेते हैं|’ नरेन की आवाज में परामर्श से अधिक आदेश झलक रहा था|
‘और इस घर का क्या करेंगे,’ थोड़े अचम्भे से हरि बाबू ने पूछा|
‘इसे किराया पर लगा देंगे’
‘मतलब मेरे पैसों का हिसाब किताब तुम लगाओगे,’ हरि बाबू ने थोड़ी तल्ख़ी से कहा|
‘आप उस पैसे का क्या करेंगे’ छुपाते छुपाते भी नाराजगी उजागर हो गई नरेन की|
‘बेटे, मैंने अपनी कमाई का उपयोग कभी खुद के लिए नहीं किया| तुम्हे उच्च स्तर का लालन पालन दिया| मँहगे स्कूल से लेकर अच्छी फीस वाली यूनिवर्सिटी में पढ़ाया| पाई पाई बचाकर घर और गाड़ी खरीदी ताकि बीबी बच्चे शान से रह सकें|’
‘अपने परिवार के लिए सभी यह करते हैं| आपने नया क्या किया,’ नरेन की बातें नश्तर की तरह चुभ गई हरि बाबू को|
‘तो बेटे, अब नया करूँगा| मैं जा रहा हूँ अपना सपना पूरा करने|’
आज पापा के साकार स्वप्न को देख नरेनडबडबाई आँखों से देख रहा था और उनकी व्था का अनुभव भी कर रहा था|

--ऋता शेखर ‘मधु’

पागल-लघुकथा

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पागल
नये साल की वह पहली किरण धरती पर आने को कसमसा रही थी|बर्फीली हवा के बीच सूर्यदेव अब तक धुंध का धवल कंबल ओढ़े आराम फरमा रहे थे । सुबह के नौ बज चुके थे| अनुराधा ने पूजा की थाली तैयार की और ननद के कमरे में झांक कर कहा,"मोनिका! गोलू सो रहा है ,उसका ध्यान रखना प्लीज़।मैं मंदिर जा कर आती हूँ ।"
शीत लहर के तमाचे खाते और ठिठुरते हुए उसने मंदिर वाले पथ पर कदम बढ़ाए ही थे कि उसके पैरों को जैसे जकड़ लिया एक बेतरतीब कपड़े एवं बालों वाले पागल ने|
‘ नहीं , आज उस तरफ मत जाओ’ वह रास्ता रोककर खड़ा था|
एकबारगी सिहर उठी अनुराधा|
“यह तो वही पागल है जो रोज मुझे आते जाते देखता है, फिर नजरें फेर लेता है| आज इसका इरादा क्या है| इस धुँधलके में कहीं मेरे साथ...नहीं नहीं ”
 आगे की सोचकर वह घबरा गई|
“वापस जाओ” उसने सख्ती से घरघराती आवाज में कहा|
कहीं कुछ ऐसा वैसा न कर बैठे, यह सोच वह वापस आ गई| घर की पूजा में भी उसका मन न लगा| सारे काम निपटाते हुए अनमयस्क सी रही| फिर टीवी खोलकर बैठ गई| अपनी आदत के मुताबिक सबसे पहले समाचार चैनल लगाया|
“मंदिर पर आतंकवादियों का कब्जा, भीषण गोलाबारी में एक बच्चे की जान बचाते हुए मानसिक रूप से विक्षिप्त एक व्यक्ति की मौत| उस व्यक्ति के पास से एक झोला मिला है जिसमें एक डायरी थी| उस डायरी में उसने लिखा था कि आतंकी हमले में उसने अपनी पत्नी और मासूम बच्चे को खोया है और आतंक के खिलाफ लड़ना चाहता है| सब उसको पागल समझते हैं|” अपने शहर और मंदिर का नाम सुन अनुराधा ने देखा कि टीवी पर उसी पागल व्यक्ति की फोटो दिख रही थी|
एकाएक उसके प्रति सहानुभूति उपज आई |
उसने नहीं कहा होता वापस जाने को तो गोलू बिन माँ का....इसके आगे वह सोंचकर काँप उठी और गोलू को बाहों में भींचकर प्यार करने लगी|

--ऋता शेखर ‘मधु’

कृषक कवि घाघ की कहावतें

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भारत एक कृषि प्रधान देश है|
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। हिन्दी के लोक कवियों में कृषक कवि घाघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
बिहार व उत्तेरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्य साबित होती हैं।
घाघ का जीवन वृत्त
हिन्दी के लोक कवियों में घाघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। घाघ लोक जीवन में अपनी कहावतों के लिए प्रसिद्ध हैं। जिस प्रकार ग्राम्य समाज में इसुरीअपनी फागके लिए, विसराम अपने बिरहोंके लिए प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार घाघ अपनी कृषि संबंधी कहावतों के लिए विख्यात हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रंथों में घाघ के सम्बन्ध में सर्वप्रथम शिवसिंह सरोजमें उल्लेख मिलता है। इसमें कान्यकुब्ज अंतर्वेद वालेकवि के रूप में उनकी चर्चा है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने घाघ का केवल नामोल्लेख किया है।हिन्दी शब्द सागरके अनुसार घाघ गोंडे के रहने वाले एक बड़े चतुर और अनुभवी व्यक्ति का नाम है जिसकी कही हुई बहुत सी कहावतें उत्तरी भारत में प्रसिद्ध हैं। खेती-बारी, ऋतु-काल तथा लग्न-मुहूर्त आदि के सम्बन्ध में इनकी विलक्षण उक्तियाँ किसान तथा साधारण लोग बहुत कहते हैं।
श्रीयुत पीर मुहम्मद यूनिस ने घाघ की कहावतों की भाषा के आधार पर उन्हें चम्पारन (बिहार) और मुजफ्फरपुर जिले की उत्तरी सीमा पर स्थित औरेयागढ़ अथवा बैरगनिया अथवा कुड़वा चैनपुर के समीप के किसी गाँव में उत्पन्न माना है।
राय बहादुर मुकुन्द लाल गुप्त विशारदने कृषि रत्नावलीमें उन्हें कानपुर जिला अन्तर्गत किसी ग्राम का निवासी ठहराया है।
श्री दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह ने घाघ का जन्म छपरा जिले में माना है।
पं. राम नरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदीभाग एक और घाघ’ और ‘घाघ और भड्डरीनामक पुस्तक में उन्हें कन्नौज का निवासी माना है।
घाघ की अधिकांश कहावतों की भाषा भोजपुरी है। डॉ. ग्रियर्सन ने भी पीजेन्ट लाइफ आफ बिहारमें घाघ की कविताओं का भोजपुरी पाठ प्रस्तुत किया है। इस आधार पर इस धारणा को बल मिलता है कि घाघ का जन्म स्थान बिहार का छपरा था। ऐसा अनुमान है कि घाघ जीविकोपार्जन के लिए छपरा छोड़कर अपनी ससुराल कन्नौज गये होंगे और वहीं बस गये होंगे।
जन्म काल एवं निवास स्थान
घाघ का जन्मकाल भी निर्विवाद नहीं है। शिवसिंह सेंगर ने उनकी स्थिति सं. 1753 वि. के उपरान्त माना है। इसी आधार पर मिश्रबन्धुओं ने उनका जन्म सं. 1753 वि. और कविता काल सं. 1780 वि. माना है।भारतीय चरिताम्बुधिमें इनका जन्म सन् 1696 ई. बताया जाता है। पं. राम नरेश त्रिपाठी ने घाघ का जन्म सं. 1753 वि. माना है। यही मत आज सर्वाधिक मान्य है|
घाघ के नाम के विषय में भी निश्चित रूप से कुछ ज्ञात नहीं है। घाघ उनका मूल नाम था या उपनाम था इसका पता नहीं चलता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र-बिहार, बंगाल एवं असम प्रदेश में डाक नामक कवि की कृषि सम्बन्धी कहावतें मिलती हैं जिनके आधार पर विद्वानों का अनुमान है कि डाक और घाघ एक ही थे। घाघ की जाति के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। कतिपय विद्वानों ने इन्हें ग्वालामाना है। किन्तु श्री रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी खोज के आधार पर इन्हें ब्राह्मण (देवकली दुबे) माना है। उनके अनुसार घाघ कन्नौज के चौधरी सराय के निवासी थे। कहा जाता है कि घाघ हुमायूँ के दरबार में भी गये थे। हुमायूँ के बाद उनका सम्बन्ध अकबर से भी रहा। अकबर गुणज्ञ था और विभिन्न क्षेत्रों के लब्धप्रतिष्ठि विद्वानों का सम्मान करता था। घाघ की प्रतिभा से अकबर भी प्रभावित हुआ था और उपहार स्वरूप उसने उन्हें प्रचुर धनराशि और कन्नौज के पास की भूमि दी थी, जिस पर उन्होंने गाँव बसाया था जिसका नाम रखा अकबराबाद सराय घाघ। सरकारी कागजों में आज भी उस गाँव का नाम सराय घाघहै। यह कन्नौज स्टेशन से लगभग एक मील पश्चिम में है। अकबर ने घाघ को चौधरीकी भी उपाधि दी थी। इसीलिए घाघ के कुटुम्बी अभी तक अपने को चौधरी कहते हैं। सराय घाघका दूसरा नाम चौधरी सरायभी है।घाघ की पत्नी का नाम किसी भी स्रोत से ज्ञात नहीं है| किन्तु उनकी कविताओं में'कहै घाघ सुन घाघिनी'जैसे उल्‍लेख आए हैं।
प्राचीन महापुरूषों की भांति घाघ के सम्बन्ध में भी अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि घाघ बचपन से ही कृषि विषयकसमस्याओं के निदान में दक्ष थे। छोटी उम्र में ही उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गयी थी कि दूर-दूर से लोग अपनी खेती सम्बन्धी समस्याओं को लेकर उनका समाधान निकालने के लिए घाघ के पास आया करते थे। किंवदन्ती है कि एक व्यक्ति जिसके पास कृषि कार्य के लिए पर्याप्त भूमि थी किन्तु उसमें उपज इतनी कम होती थी कि उसका परिवार भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर रहता था, घाघ की गुणज्ञता को सुनकर वह उनके पास आया। उस समय घाघ हमउम्र के बच्चों के साथ खेल रहे थे। जब उस व्यक्ति ने अपनी समस्या सुनाई तो घाघ सहज ही बोल उठे-
आधा खेत बटैया देके, ऊँची दीह किआरी।
जो तोर लइका भूखे मरिहें, घघवे दीह गारी।।
कहा जाता है कि घाघ के कथनानुसार कार्य करने पर वह किसान धन-धान्य से पूर्ण हो गया।
घाघ कृषि पंडित एवं व्यावहारिक पुरुष थे। उनका नाम भारतवर्ष के, विशेषत: उत्तरी भारत के, कृषकों के जिह्वाग्र पर रहता है। चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ की कहावतें उनका पथ प्रदर्शन करती हैं। ये कहावतें मौखिक रूप में भारत भर में प्रचलित हैं।
घाघ और भड्डरी की कहावतें नामक पुस्‍तक में देवनारायण द्विवेदीलिखते हैं, ''कुछ लोगों का मत है कि घाघ का जन्म संवत् 1753में कानपुर जिले में हुआ था। मिश्रबंधु ने इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण माना है, पर यह बात केवल कल्पना-प्रसूत है। यह कब तक जीवित रहे, इसका ठीक-ठाक पता नहीं चलता।''
अभी तक घाघ की लिखी हुई कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं हुई।उनकी वाणी कहावतों के रूप में बिखरी हुई है, जिसे अनेक लोगों ने संग्रहीत किया है। इनमें रामनरेश त्रिपाठी कृत 'घाघ और भड्डरी' (हिंदुस्तानी एकेडेमी, 1931 ई.) अत्यंत महत्वपूर्ण संकलन है।
कवि घाघ की कहावतें एवं उनका वर्गीकरण
घाघ के कृषिज्ञान का पूरा-पूरा परिचय उनकी कहावतों से मिलता है।
उनका यह ज्ञाननिम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया जा सकता है।
1.कृषि के लिए कवि घाघ का अभिमत
2.खादों के विभिन्न रूपों
3. गहरी जोत
4. मेंड़ बाँधना
5. फसलों को बोने के लिए बीज की मात्रा
6. बीजों के बीच की दूरी
7. दालों की खेती के महत्व
8.ज्योतिष ज्ञान
1.कृषि के लिए कवि घाघ का अभिमत
घाघ का अभिमत था कि कृषि सबसे उत्तम व्यवसाय है, जिसमें किसान भूमि को स्वयं जोतता है :
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान। 1
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै। 2
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा। 3
जो हल जोतै खेती वाकी और नहीं तो जाकी ताकी। 4
2.खादों के विभिन्न रूप
खादों के संबंध में घाघ के विचार अत्यंत पुष्ट थे। उन्होंने गोबर, कूड़ा, हड्डी, नील, सनई, आदि की खादों को कृषि में प्रयुक्त किए जाने के लिये वैसा ही सराहनीय प्रयास किया जैसा कि 1840ई. के आसपास जर्मनी के सप्रसिद्ध वैज्ञानिक लिबिग ने यूराप में कृत्रिम उर्वरकों के संबंध में किया था। घाघ की निम्नलिखित कहावतें अत्यंत सारगर्भित हैं,जैसे:-
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा।
3. गहरी जोत
घाघ ने गहरी जुताई को सर्वश्रेष्ठ जुताई बताया। यदि खाद छोड़कर गहरी जोत कर दी जाय तो खेती को बड़ा लाभ पहुँचता है :
छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई।
4. मेंड़ बाँधना
कवि घाघ का कहना है कि बांध न बाँधने से भूमि के आवश्यक तत्व घुल जाते और उपज घट जाती है। इसलिये किसानों को चाहिए कि खेतों में बाँध अथवा मेंड़ बाँधे
सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी
जो पचास का सौ न तुलै, देव घाघ को गारी।
5. फसलों के बोने के लिए बीज की मात्रा
घाघ ने फसलों के बोने का उचित काल एवं बीज की मात्रा का भी निर्देश किया है।
उनके अनुसार प्रति बीघे में---
पाँच पसेरी गेहूँ तथा जौ,
छ: पसेरी मटर,
तीन पसेरी चना,
दो सेर मोथी, अरहर और मास,
डेढ़ सेर कपास, बजरा बजरी, साँवाँ कोदों
अंजुली भर सरसों बोकर किसान दूना लाभ उठा सकते हैं।
6. बीजों के बीच की दूरी
यही नहीं, उन्होंने बीज बोते समय बीजों के बीच की दूरी का भी उल्लेख किया है, जैसे--
घना-घना सन,
मेंढ़क की छलांग पर ज्वार,
पग पग पर बाजरा और कपास,
हिरन की छलाँग पर ककड़ी और
पास पास ऊख को बोना चाहिए।
कच्चे खेत को नहीं जोतना चाहिए, नहीं तो बीज में अंकुर नहीं आते।
यदि खेत में ढेले हों, तो उन्हें तोड़ देना चाहिए।
7. दालों की खेती के महत्व
घाघ ने सनई, नील, उर्द, मोथी आदि द्विदलों को खेत में जोतकर खेतों की उर्वरता बढ़ाने का स्पष्ट उल्लेख किया है। खेतों की उचित समय पर सिंचाई की ओर भी उनका ध्यान था।
आजकल दालों की खेती पर विशेष बल दिया जाता है, क्योंकि उनसे खेतों में नाइट्रोजन की वृद्धि होती है।घाघ की जानकारी आज के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण मानी जा सकती है|
8.ज्योतिष ज्ञान
I.सुकाल और अकाल -
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
पूस मास दसमी अंधियारी।बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।
आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।
II.वर्षा
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।
खनिके काटै घनै मोरावै।
तव बरदा के दाम सुलावै।।
ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है।
हस्त बरस चित्रा मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।।
हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।
हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।।
यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।।
चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
जो बरसे पुनर्वसु स्वाती।
चरखा चलै न बोलै तांती।
पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।
जो कहुं मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।।
मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।
जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।।
यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय।
सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।।
यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा।
असाढ़ मास आठें अंधियारी।जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़।साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।
III.पैदावार
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा।
IV.जोत
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।।
गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूं भवा काहें।असाढ़ के दुइ बाहें।।
गेहूं भवा काहें।सोलह बाहें नौ गाहें।।
गेहूं भवा काहें। सोलह दायं बाहें।।
गेहूं भवा काहें। कातिक के चौबाहें।।
गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूं बाहें। धान बिदाहें।।
गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से,यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं) से अच्छी होती है।
गेहूं मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूं गाहा, धान विदाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूं बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।
पुरुवा में जिनि रोपो भैया।
एक धान में सोलह पैया।।
पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा।
V. बोवाई
कन्या धान मीनै जौ।
जहां चाहै तहंवै लौ।।
कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।
कुलिहर भदई बोओ यार।
तब चिउरा की होय बहार।।
कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है।
आंक से कोदो, नीम जवा।
गाड़र गेहूं बेर चना।।
यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस भी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
आद्रा बरसे पुनर्वसुजाय, दीन अन्न कोऊ न खाय।।
यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
आस-पास रबी बीच में खरीफ।
नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।।
खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।
निष्कर्ष
दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्‍कर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की निष्‍पत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।

घाघ और भड्डरी की कहावतें लोक जीवन में प्रसिद्ध है। ग्राम्य अंचल में रोजमर्रा की खेती एवं सामाजिक समस्याओं का निदान व्यक्ति इन्हीं कहावतों के आधार पर कर लेता है। इनकी कहावतें किसानों के लिए गुरुमंत्र हैं। अवधी और भोजपुरी क्षेत्रों में इनका प्रचार-प्रसार कुछ अधिक ही दिखाई पड़ता है। घाघ और भड्डरी की कहावतें आज भी प्रासंगिक हैं। उनमें ज्ञान विज्ञान सम्बन्धी प्रचुर सामग्री है। आज शस्य विज्ञान, पादप प्रजनन, पर्यावरण विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान आदि की दृष्टि से इन कहावतों के अध्ययन की आवश्यकता है।
संदर्भ सूत्र--इंटरनेट, विकिपिडिया

भूख-लघुकथा

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“अरे ओ रामू, उठ रे, उत्तर से पानी बढ़ता ही जा रहा है| हमारी मकई खराब हो जाएगी रे| अब का होगा”
“चिन्ता ना कर कलुआ, जो भगवान पेट दिया है वोही अनाज भी देगा|”
“भगवान का करेगा| बाढ़ लाकर वोही तो तबाह करता है| हमरे माई बापू मेहरारु लइका सब का खाएँगे| चल, जो बोरी शहर भेजे खातिर रखे हैं वोही निकालते हैं| वैसे भी भीगी बोरी किस काम की|”
रामू और कलुआ ने बोरी खोली|थोड़ी सड़ाँध आ चुकी थी| कलुआ ने वही चावल पकाने के लिए ले लिया|
“ना रे कलुआ, हम तो इसका भात नाहिं खाएँगे|”
“तब इ का शहर वाले खाएँगे| वहाँ तो सब अच्छा अच्छा जाएगा| हमारा पेट सब पचा लेता है रे रामू|”

--ऋता

हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं-ग़ज़ल

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हम तो दिल की किताब कहते हैं
आप जिसको गुलाब कहते हैं

जो उलझते रहे अँधेरों से
हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं

धर्म के नाम पर मिटेंगे हम
उस गली के जनाब कहते हैं

हुक्म की फ़ेहरिस्त लम्बी है
शौहरों को नवाब कहते हैं

तोड़ दो नफरतों की दीवारें
उल्फतों का हिसाब कहते हैं

मुस्कुराके नजर मिलाते हैं
क्या इसी को नकाब कहते हैं

--ऋता शेखर ‘मधु’

जगमग दीप जले

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Image result for दीवाली 2016

नवगीत
नए नए दीपों की माला
पथ में रोज सजाना प्रियवर
अँधियारी रातों के साथी
जगमग कर बन जाना प्रियवर

जिनके दृग की ज्योति छिन गई
उनके मन को रौशन करना
द्वार रंगोली जहाँ मिटी है
तँह रंगों की छिटकन भरना

ख्वाबों से मोती चुन चुन कर
तोरण एक बनाना प्रियवर

तारों की अवली से अवनी
अपनी माँग सजाती जाती
गहन बादलों के पीछे से
चपल दामिनी रूप दिखाती

सूरज के तपते कदमों पर
शबनम बन झर जाना प्रियवर

निश्छल मन पर हुए वार से
जग में लाखों दर्पण टूटे
मंदिर की सीढ़ी पर चढ़कर
जाने कितने अर्पण छूटे

नन्हे दीपक की बाती में
आस बिम्ब लहराना प्रियवर

सबके चैन अमन की खातिर
ओढ़ तिरंगा सरहद से आये
कोमल मन की सूनी बगिया
पारिजात फिर कहाँ से पाये

मुर्छित होते घर के ऊपर
विटप वृक्ष बन जाना प्रियवर

--ऋता शेखर ‘मधु’
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