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Channel: मधुर गुँजन
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रसोईघर-3-पतोड़

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रविवारी डिश...
अरवी लीव्स विथ ग्रेवी - पतोड़
अरवी के 10 साबूत पत्ते धोकर रख लें।
अब एक कटोरे में 1 कप सूजी, 1 कप बेसन, 1 चम्मच हल्दी,अंदाज़ से नमक,2 चम्मच सब्जी मसाला, 3 चम्मच अमचूर या 2 नीम्बुओं का रस मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बनायें। गैस पर बड़े बर्तन में पूरा से पानी चढ़ा दें।
अब अरवी के सीधे पत्ते पर पेस्ट फैला दें। उसके ऊपर दूसरा पत्ता रखें और उसपर भी पेस्ट फैला दें। इस तरह से 5 पत्ते एक पर एक जमा लें। उसे सावधानी से रोल करें और धीरे से खौलते पानी में डाल दें ताकि पत्ते खुलें नहीं। रोल बनाकर धागा से बाँध भी सकती हैं।
खौलते पानी में 10 मिनट उबाल ले।
अब रोल को बाहर निकले। 5 मिनट ठंडा होने दें फिर टुकड़ों में काट लें। सभी टुकड़ों को डीप फ्राई कर लें।
इसे सूखा भी खा सकते है और चाहें तो मनचाही ग्रेवी बनाकर उसमें तले हुए टुकड़ों को डाल दें।
नोट-मसाले में कोई खट्टी चीज़ अवश्य डालें, क्योंकि इसमें थोडा गुण ओल के जैसा होता है जिसे देशज भाषा में मुँह काटना कहते है। ग्रेवी में नींबू का रास डाल सकते है।
ऋता शेखर 'मधु''s photo.
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सुप्रभाती दोहे - 4

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आनत लतिका गुच्छ से, छनकर आती घूप
ज्यों पातें हैं डोलतीं, छाँह बदलती रूप 40

खग मानस अरु पौध को, खुशियाँ बाँटे नित्य
कर ले मेघ लाख जतन, चमकेगा आदित्य

दुग्ध दन्त की ओट से, आई है मुस्कान
प्राची ने झट रच दिया, लाली भरा विहान

लेकर गठरी आग की, वह चलता दिन रात
बदले में नभ दे रहा, तारों की सौगात

नित दिन ही चलता रहे, नियमित जीवन चक्र
बोली में जब व्यंग्य हो, ग्रहण सूर्य हो वक्र

सौरमंडल बना रहा, इक कर्मठ सरकार
सूरज तो सिरमौर है, मेघ खा रहे खार

ब्रम्हांड में गूँज रहा, कपालभाति का ओम्
बड़ी अनोखी है ख़ुशी, झूम रहा है व्योम

जब जब ये सूरज करे, तपते दिन का ज़िक्र
तब तब होती चाँद को, शीतलता की फ़िक्र

सूरज की हर इक किरण, रच देती है गीत
नारंगी में वीर रस, नील श्याम की प्रीत 

लेखन में लेकर चलें, सूरज जैसा ओज
शीतल मन की चाँदनी, पूर्ण करे हर खोज
-----ऋता....

शाकाहारी एग करी-रसोईघर-4

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भेज एग करी
माध्यम आकार के दो आलू लेकर उसके छिलके उतार लें।
बीच से दो टुकड़ों में काट लें। आलू के मध्य भाग में चाकू से कटोरी जैसा बना लें। इनमे हल्दी और नमक लगा दें और डीप फ्राई करके पका लें।
अब दो कप दूध को नींबू या सिरका से फाड़कर सारा पानी अलग कर दें और सूखा छेना बना लें। छेना में नमक , हरी मिर्च, किशमिश स्वादानुसार मिला लें। इसे पके आलू की कटोरी में भर दें।
करी बनाने के लिए एक कटा प्याज, कटा टमाटर, 5-6 कली लहसुन को मिक्सी में पीस लें। कड़ाही में एक चम्मच तेल में जीरा, एक सूखी लाल मिर्च, तेजपत्ता से छौंक लगाकर पिसा मसाला डाल दें।तेल छोड़ने तक धीमी आंच पर मसाले को भूनें। हल्दी ,नमक और एक चम्मच गरम मसाला डालकर कुछ देर चलाकर पानी डाल दें एक कप। 2 उबाल आने पर गैस बन्द कर दें।
परोसते समय प्लेट में छेना वाले आलू रखकर करी ऊपर से डालें। गर्म बिरियानी के साथ परोसें और तारीफ़ पाएं।
ऋता शेखर 'मधु''s photo.
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मुक्ति-लघुकथा

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मुक्ति-

कंपकंपाते हाथो से मकान के लोन की अंतिम किश्त पर हस्ताक्षर करते हुए सुरेश बाबू की आँखों से दो बूँद आँसू टपक पड़े।
"यह क्या, आज तो आपको खुश होना चाहिए कि आप कर्ज से मुक्त हो गए।"बैंक मैनेजर ने आत्मीयता से सुरेश बाबू से हाथ मिलते हुए कहा।
"जी, मैं बहुत खुश हूँ कि जिंदगी ने यह मौका दिया कि मैं बेटे पर कर्ज का भार छोड़कर नहीं जा रहा।"
घर लौटते हुए पत्नी के लिए चूड़ियाँ लेते हुए उन बंधनमुक्त कलाइयों पर खनकती चूड़ियों की कल्पना कर बरबस मुस्कुरा उठे सुरेश बाबू।
-ऋता

नया दरवाजा-लघुकथा

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 नया दरवाजा--

तिरंगे में लिपटे शहीद पति के शव के पास वह पथराई आँखों से खड़ी थी|
''अभी हाथों की मेंहदी भी न छूटी और ये दिन देखने पड़े|''
''पहाड़ सी जिन्दगी अकेले कैसे काटेगी |''
''इसका दूसरा ब्याह कर देना चाहिए|''
''देखो तो, एक बूँद आँसू भी नहीं है आँखों में|''
''किस्मत की बुलंद होती तो यूँ न विधवा हो जाती|''
''अब सासरे में खटते हुए जीवन काटेगी बेचारी|''
''मायके चले जाना चाहिए|''
''नहीं, चार दिनों की आवभगत के बाद बोझ लगेगी|''
यह सब बातें उसे कहीं दूर से आती महसूस हो रही थीं क्योंकि उस वक्त उसका मस्तिष्क चुपचाप कुछ निर्णय ले रहा था| 
अग्नि संस्कार के बाद वह धीरे धीरे चलकर सेना के उच्च पदाधिकारी के पास अपने चूड़ी विहीन हाथों को जोड़कर खड़ी हो गई|
''सर, मुझे फौज में भरती होना है|''
उस सख्त जाँबाज ऑफिसर की नम आँखें उसके सम्मान में झुक गईं|
एक क्षण को नवविवाहिता विधवा ने महसूस किया कि उसका बहादुर पति कानों में कह रहा था - 
''समाज द्वारा तय किए गए सारे दरवाजे को बंद करके नया दरवाजा खोला है तुमने| मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं|''
ऋता शेखर 'मधु'

काला तोहफा-लघुकथा

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काला तोहफा
"देखो निम्मी, आज मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ|''
''क्या,''प्रश्न भरी निगाहों से निर्मला ने अंकित को देखा|
अंकित ने बिस्तर पर हल्के नीले रंग की काँजीवरम की साड़ी फैला दी और उसपर एक नेकलेस रख दिया जिसके लॉकेट पर हीरे का सुन्दर सा नग चमक रहा था|
निर्मला की आँखें खुशी से दमक गईं| उसने टैग पर कीमत देखी और अगले ही पल बुझ सी गई|
''क्या हुआ निम्मी,''अंकित ने उसके चेहरे के उतार चढ़ाव को भाँपते हुए कहा|
''मैंने कब कहा कि मुझे यह सब चाहिए| बचपन से मैंने सीखा है कि पाँव उतना ही पसारो जितनी बड़ी चादर हो| मैं यह जानती हूँ कि घर चलाने के लिए तुम कितनी मेहनत करते हो| मैं और बच्चे तुम्हारी आमदनी से बिल्कुल संतुष्ट हैं|''निम्मी ने बड़े ही सहज ढ़ग से कहा|
''जब भी मैं तुम्हें साड़ी या जेवर के दुकान में हसरत से इन चीजों को देखते हुए देखता था तो न दिला पाने की ग्लानि होती थी मुझे|''- शांत स्वर में अंकित बोल रहा था|
''तो क्या हुआ, चीजें तो दुकान में ही देखी जाती हैं| इसका अर्थ यह नहीं कि हम उन्हें खरीद ही लें|'' 
उसने ध्यान से निर्मला को देखा| उसके मुखमण्डल पर सिंदूरी आभा गहराती जा रही थी|
अंकित ने सामान समेटते हुए सोचा कि जमीर बेचकर खरीदे गए काले तोहफे से वह इस दिव्यता को धूमिल नहीं कर सकता|
-ऋता शेखर 'मधु' 

मोहपाश-लघुकथा

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 मोह पाश
आज घर में बहुत चहलपहल थी। विदेश से छोटा बेटा और बहु आ चुके थे। आवभगत में कोई कमी न रहे उसके लिए सासु माँ एक पैर पर खड़ी थी। बड़ी बहु और बेटा भी बड़े शौक से अगवानी कर रहे थे।
बुआ जी ने हँसते हँसते कहा- क्या बात है भाभी, बहु पर कितना प्यार लुटाओगी।
सासु माँ ने बड़े प्यार से कहा- यह बिचारी तो कभी कभी आती है। सालों भर तो यह प्यार बड़ी के हिस्से आता है।
मुस्कुरा कर बड़ी बहु ने सर हिलाया।
खा-पी कर सभी आराम करने चले गए।
तनिक देर बाद सासु माँ की आवाज आई-बहु , एक गिलास पानी देना जरा।
बिलकुल शांति छाई रही। सासु माँ ने दुबारे आवाज लगाई।

बड़ी पानी लेकर गई और प्यार से बोली- माँ जी, मैंने सोचा कि बिचारी कभी कभी आती है तो सास की सेवा का पुण्य उसे भी मिलना चाहिए, यह पुण्य तो मैं साल भर बटोरती ही रहती हूँ।
सासु माँ निःशब्द रह गई।
------ऋता शेखर मधु-------

पिता

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पिता.......गीत विधा में

उनके कदमों पर चलकर अब
उनकी ही भाषा बोल रहे
जिनकी बातें तब ना समझे
आदर्श वही अनमोल रहे

हाथ पकड़ हटिया में जाते
चनाचूर जी भर के खाते
रंग बिरंगी हवा मिठाई
हँसकर पापा हमें दिलाते

निर्मल मन की निर्मल थाती
नित नित जीवन में तोल रहे
आदर्श वही अनमोल रहे

क्रोध कभी ना करते देखा
झूठ कभी ना कहते देखा
विनीत सत्याग्रही पिता को
अन्याय भी न सहते देखा

दीवारों पर सजे चित्र को
धीरे धीरे हम खोल रहे
आदर्श वही अनमोल रहे

वे बरगद बनकर छाँव बने
शीतल मनहर सुख गाँव बने
ढक तपन चुभन के छालों को
टूटे सपनों के पाँव बने

इम्तेहान वाले विषयों के
इंग्लिश हिसाब भूगोल रहे
आदर्श वही अनमोल रहे
-----ऋता शेखर 'मधु'.....

पत्थर की खुशबू - लघुकथा

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पत्थर की खुशबू-
''मैं नन बनना चाहती हूँ|''नैन्सी ने ट्विट किया था|
यह पढ़ते ही थॉमस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई|
मैनेजमेंट की पढ़ाई साथ साथ करते हुए नैन्सी का भावहीन चेहरा क्यों उसे आकर्षित करता था, वह नहीं समझ पाता|
''ओ गॉड, मैं उसे खोना नहीं चाहता|''थॉमस बुदबुदाया| 
थॉमस ने नैन्सी को फोन करके अपने घर बुलाया| नैन्सी जाने से पहले अपने दोस्त को दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए वह तैयार हो गई|
घर में थॉमस ने उसका परिचय अपनी बहन जूली से करवाया| वह व्हील चेयर पर बैठी थी| थॉमस नाश्ता और कॉफी का इन्तेजाम करने बाहर चला गया| 
''भाई हमेशा तुम्हारी बातें करता है नैन्सी| वह तुम्हें चाहता है पर कह नहीं पाता|''
''नहीं, मैं नन बनना चाहती हूँ,''नैन्सी एकाएक कठोर हो गई|
''पर क्यों''
''मैं जब पाँच साल की थी तभी मेरे पिता मेरे लिए ढेर सारे खिलौने लाने का वादा करके विदेश चले गए| मुझे बड़ा करने के लिए माँ ने बहुत मेहनत किया| उनका छुपछुप कर आँसू बहाना मैं देख लेती थी| हमें आज भी उनका इन्तेजार बना रहता यदि मैं फेसबुक पर उन्हें न देख लेती| वे अपनी दूसरी पत्नी और बेटी के साथ बहुत खुश नजर आ रहे थे| मैं नफरत करती हूँ पुरुष जाति से...'' 
भावना का सैलाब उमड़ने ही वाला था कि एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने कमरे में प्रवेश किया|
''जूली, माई बेबी, देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आया|''
''क्या पापा''
''लैपटॉप, अब मेरा बेबी सारी दुनिया से जुड़कर रहेगा| है न !''
जूली के चेहरे पर मुस्कान आ गई- ''पापा, यही नैन्सी है|''
जूली ने इस अंदाज से कहा जैसे उसके पापा जूली को अच्छी तरह से जानते हों|
''कैसे हो बेटी''स्नेह से नैन्सी के सिर पर हाथ फेरते हुए वे बाहर चले गए|
''मैं भी जाती हूँ''कहकर नैन्सी ज्योंहि जाने के लिए मुड़ी, जूली ने उसका हाथ थाम लिया| जाने कैसा आग्रह था उसकी नजरों में कि वह सामना नहीं कर पाई| धीरे से हाथ छुड़ाकर मंद चाल से बाहर चली गई|
आधे घंटे बाद नैन्सी ने ट्विटर पर लिखा,''पिता अपनी बेटियों से बहुत प्यार करते हैं|''
पत्थर की खुशबू महसूस करते ही जूली ने नैन्सी को विडियो चैट के लिए आमंत्रित किया|
विडियो चलाते ही सामने थॉमस खड़ा था कॉफी की मग लेकर|
''तुम कॉफी पिए बिना चली गई नैन्सी, यह तुमने अच्छा नहीं किया|''
नैन्सी के गुलाबी पड़ गए चेहरे को देखकर थॉमस और जूली, दोनों के चेहरे खिल गए|
--ऋता शेखर 'मधु'

गोलट - लघुकथा

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गोलट



पूरे परिवार के लोग घर की बैठक में इकट्ठे हो चुके थे| एक निर्णय होना था जो राशिदा की जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख देता|

राशिदा और दानिश बहन भाई थे| उनकी गोलट शादी रौनक और इमरान के साथ हुई थी| समय के साथ राशिदा के दो बच्चे हुए किन्तु रौनक माँ न बन सकी| इसी कारण दानिश ने रौनक को तलाक दे दिया था और वह मायके आ गई थी| भाई दानिश के इस कदम से राशिदा पर आफत आ गई| घरवालों ने इमरान पर दबाव बनाना शुरु कर दिया था कि वह भी राशिदा को तलाक दे दे|

इमरान क्या फैसला लेगा इसका इल्म किसी को नहीं था| बैठक में राशिदा बदहवाश सी दोनों बच्चों को कलेजे से लगाए बैठी थी|
बस इमरान के आने का इन्तेजार था|
----ऋता शेखर ‘मधु’----

निर्जला - लघुकथा

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निर्जला ...
निर्जला व्रत करने की घोषणा की थी घर में कल्याणी देवी ने।
"मगर यह गलत बात है। आपको ब्लड प्रेशर और थाइराइड की समस्या है जिसकी दवा सवेरे खाली पेट में लेनी होती है। तबियत बिगड़ गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे।"कल्याणी देवी के पति महेश बाबू ने समझाने की कोशिश की।
"नहीं जी, मैं कर लूँगी।"सीनियर सिटीजन पत्नी के दृढ निश्चय के सामने उनकी एक न चली।
महेश बाबू का डर निराधार नहीं था। भीषण गर्मी और भीमसेनी एकादशी का निर्जला व्रत, दिन भर एक बूँद जल भी न लेने के कारण कल्याणी देवी परेशानी महसूस कर रही थीं। मन में शांति न थी पर अपनी बात से डिगना भी नहीं चाहती थीं।
वे चुपचाप सोने चली गईं। कुछ देर बाद महेश बाबू ने आवाज़ लगाई तो कोई उत्तर न मिला। घबड़ाकर उन्होंने डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर ने पानी चढ़वाने की व्यवस्था की।
कुछ देर में कल्याणी देवी को होश आ गया।
होश में आते ही उन्होंने पूछा- "किसी ने मेरे मुँह में जल डालकर मेंरा व्रत तो भंग नहीं किया।
डॉक्टर ने मुस्कुराकर कहा-"पानी तो मैंने बाहर से चढ़ाया।"
"तब ठीक है।"निश्चिन्त होकर कल्याणी देवी ने आँखे बंद कर लीं।
-----------ऋता शेखर "मधु"----------

पक्की छत - लघुकथा

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पक्की  छत
आने वाले बरसात के लिए हरिया परिवार के साथ मिलकर नई छप्पर बना रहा था। सब आपस में बोलते बतियाते काम पर लगे थे।

हरिया की पत्नी ने पूछा- "गोलू के बापू, सहर में तो बड़ी ऊँच ऊँच इमारत बनत रहे। तुहनी सब मिलके हुआँ भी काम करत रहन। एक बार पक्का छत बन जाए से बार बार के मुसीबत खतम हो जा ला। उ घर में रहे वाला आदमियन के कोनो परेसानी न लगत होइ, चाहे कोई मौसम आये जाए।"

"अरी ना री, ओहि से तो उ लोग आपस में परिवारो से नहीं मिलते हैं। छप्पर चुएगा तबहिये तो छप्पर छाने के लिए सब एकजुट होएँगे। सब मसीन जइसन लगते हैं वहाँ। न कोनो हंसी मजाक, न चेहरा पर कोई हंसी मुस्कान। अइसे कहो तो इहाँ भी पक्का छत बना दें"- मुस्कुराते हुए हरिया ने कहा।

"न बाबा, ई फूस के छप्पर ठीक हई। सब आदमियन जिन्दा जइसन तो लग अ हई।- कहकर खिलखिला उठी रामकली।
-----ऋता शेखर मधु--------

सफेद झूठ - लघुकथा

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सफेद झूठ

कम्पनी की ओर से आशु को दो वर्षों के लिए विदेश भेजा गया था| पिता अनिकेत और पुत्र आशु विडियो कॉल से ही बातें करते|

इधर कई दिनों से अनिकेत की बात बेटे आशु से नहीं हो पा रही थीं| फोन पर भी एक दो शब्दों में आशु का जवाब देना अनिकेत को सशंकित कर रहा था| 
आज अनिकेत से नहीं रहा गया तो उसने विडियो कॉल पर आशु को बुलाया| रात के आठ बज रहे थे और सोफे पर पसरा आशु पेट पर ही लैपटॉप रखकर बातें करने लगा| 

कुशलक्षेम पूछने के बाद अचानक अनिकेत ने कहा,''बेटे, नौकरी करते हुए तुम्हें पाँच वर्ष हो गए| अब विवाह कर लेना चाहिए तुम्हें| कोई लड़की पसन्द है तो बता दो , या हम यहाँ लड़की देखें|''

''पापा, मैं आपलोगों की पसन्द की लड़की से ही शादी करूँगा| पर जब मैं वापस आऊँ तभी बात बढ़ाना|''आशु हड़बड़ी में बोल गया| 

आशु को दादी माँ की हिदायत याद आ गई थी कि शादी के लिए उन्होंने लड़की देख रखी है |

अनिकेत ने यह कहकर कॉल समाप्त कर दिया,''बेटा, वापस लौटना तो बहु को साथ लेकर आना|''

पापा ने ऐसा क्यों कहा, यह सोचते हुए आशु उठा तो पीछे की मेज पर सजी उसकी और माही की युगल फोटो पर उसका ध्यान गया|

'सॉरी पापा', आशु ने तुरंत अनिकेत को फोन लगाया| 

''किसलिए'', अनिकेत ने जानबूझ कर अनजान बनने का नाटक किया|

''आपने मेरी और माही की पेअर फोटो देख ली न| मैं बताने ही वाला था...''

''एक मधुर सच पर तुम्हारे झूठ ने अविश्वास की चादर डाल दी''आशु जबतक कुछ बोलता, फोन कट चुका था|
--ऋता शेखर 'मधु'

नेग - लघुकथा

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नेग
ड्राइंगरूम मिडिया वालों से भरा था। प्रसिद्ध समाजसेविका सुषमा जी एवम् उनकी नवविवाहिता बहु को रु ब रु होना था।
पन्द्रह दिन पहले ही सुषमा जी का पुत्र निचली जाति की लड़की को ब्याह लाया था। सुषमा जी ने दिल पर पत्थर रखकर बहु का स्वागत किया। सुखी संपन्न घर में बहु को सुख सुविधा की कोई कमी नहीं थी। घर के लोग भी नई बहु के साथ सहज थे। नई बहु की चुल्हा छुलाई की रस्म भी हो चुकी थी। उस दिन सबने बहु के हाथ की बनी खीर खाई किन्तु सुषमा जी ने तबियत खराब का बहाना बना कर खीर नहीं खाई। बिना खाये ही वह गले से चेन उतारकर बहु को नेग देने लगीं।
"मम्मी जी, मैं यह नेग बाद में लूँगी,"कहकर बहु ने आदर के साथ चेन लौट दिया।
उस दिन के बाद भी जब वह कुछ भी अपने हाथों से बनाकर लाती, सुषमा जी किसी न किसी बहाने टाल जातीं ।
निचली जाति की बहु को अपनाने का आदर्श समाज में स्थापित हो चुका था। मीडिया वाले समाज को अच्छा सन्देश देना चाहते थे इसलिए वे दोनों साक्षात्कार देने वाली थीं।
सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ।
"जब आप ब्याहकर आईं तो घरवालों का व्यवहार कैसा था।"
"जी, बहुत अच्छा। सबने बहुत प्यार से अपनाया मुझे। "
"जाति को लेकर किसी तरह का भेदभाव महसूस किया आपने।"
"बिल्कुल नहीं।"
"सुषमा जी आपके हाथों का बना खाना कहती है।"
जिस सवाल का डर था वह सामने आ चुका था। सुषमा जी के माथे पर पसीना चुहचुहा गया।
"जी, बिलकुल खाती हैं। माँ अपनी बेटी के हाथों का खाना क्यों न खायेंगी भला।"सुनकर सुषमा देवी की आँखें भर आयीं।
मीडिया वाले ख़ुशी ख़ुशी चले गए।
"बहु, तुमने आज जो सेवइयां बनाई है, लाकर देना जरा।"
कमरे की और जाती बहु ठिठक गई।
सुषमा जी के पति ने चुहल किया,"तुम्हारी जात भ्रष्ट हो जायेगी।"
तब तक बहु कटोरा लिए आ चुकी थी और चुपचाप खड़ी थी।
"दो बेटी", सुषमा जी ने हाथ बढ़ाया।
"मम्मी जी, पहले नेग।"
ठहाकों की गर्मी से जाति रुपी बर्फ की परत पिघल रही थी।
---ऋता शेखर मधु

झूठ...

वजन - लघुकथा

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वजन
पुलिस ने धर्मेश जी को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया।
पत्नी और बेटा सामने ही खड़े थे किन्तु उनकी आँखों में कोई सहानुभूति न थी।
धर्मेश बाबू को अपने वृद्ध पिता की बात याद आ गई।

"बेटे, सरकारी नौकरी में सावधानी की बहुत जरूरत होती है। बिना वजन के सरकारी कागज को निपटाना सीखो। आज जिनकी सुख सुविधा के लिए वजन रखवाते हो, क्या पकडे जाने पर वे तुम्हारा साथ देंगे।"

"पिता जी, आप तो बस शुरू हो जाते हैं। बहती गंगा में हाथ धोने में क्या बुराई है।"

"बुराई है बेटा, इज्जत खो जाये तो फिर से वापस नहीं मिलती।  उस निर्जन राह का साथी कोई नहीं होता।"

जाते जाते पत्नी को कहते सुना धर्मेश जी ने, "इज्जत मिटटी में मिला दी इन्होंने, सहेलियो को क्या मुँह दिखाऊँगी।"

सरकारी फाइलों पर रखे वजन का बोझ सीने पर महसूस करते हुए धर्मेश जी मायूस और थके कदमों से पुलिस की गाड़ी में बैठ गए।
-----ऋता शेखर -----

देवदूत - लघुकथा

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देवदूत 


ऑपरेशन थियेटर में कल्याणी देवी की बहु गंभीर अवस्था में जा चुकी थी| डेलिवरी के लिए सबकुछ सामान्य था कि अचानक बच्चे की पोजीशन गड़बड़ हो गई| शिशु का हृदय स्पंदन मंद पड़ने लगा और माँ की स्थिति भी बिगड़ने लगी| थियेटर में जाते वक्त लेडी डॉक्टर क्षण भर के लिए कल्याणी देवी के सामने रुकी फिर अन्दर चली गई|
करीब एक घंटे बाद डॉक्टर अपने हाथों में नवजात को लेकर आई| 
''आंटी, मैं आयुषी'', शिशु को दादी के हाथों में देकर उसने कल्याणी देवी के पैर छूते हुए कहा|
''आयुषी बेटा,''भावातिरेक में कल्याणी देवी कुछ कह नहीं पाई| पच्चीस साल पहले की वह घटना उनकी आँखों के सामने चलचित्र की भाँति घूम गई|

इस शहर से उस शहर का फासला ट्रेन से चार घंटे का था| मेडिकल की प्रवेश परीक्षा देने के लिए परीक्षार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी| एक छोटी कमसिन सुन्दर लड़की अपने वृद्ध पिता के साथ कल्याणी देवी के कम्पार्टमेंट में आकर बैठी| कुछ देर बाद  ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी| पीने का पानी घर में ही छूट गया था और लड़की को प्यास लगी थी| वहाँ ट्रेन को कुछ देर रुकना था सो वह वृद्ध पानी लाने स्टेशन पर उतरे| पानी का नल उस डिब्बे से थोड़ी दूरी पर था| पानी लेकर लौटते तबतक इंजन ने सीटी दे दिया और ट्रेन धीरे धीरे सरकने लगी| लड़की हड़बड़ाई सी गेट पर गई| अभी उसके पिता कुछ दूरी पर ही थे कि ट्रेन ने पूरी रफ़्तार पकड़ ली| लड़की वापस अपनी सीट पर आकर बैठी और रोने लगी| मनचलों की  फब्तियों का दौर शुरु हो गया|
''बेटी, कहाँ जाना है,''कल्याणी देवी ने पूछा|
''मैं मेडिकल की परीक्षा देने जा रही हूँ| उस शहर तक पिता जी अगली ट्रेन पकड़कर आ जाएँगे| लेकिन आंटी, मेरी परीक्षा छूट जाएगी| मैं वहाँ किसी को नहीं जानती| परीक्षा केंद्र भी कहाँ है , नहीं जानती| ''सुबकते हुए लड़की ने बताया|
''अजी हम जानते हैं परीक्षा केंद्र, हमारे साथ चलना, पहुँचा देंगे,'' मनचलों के ठहाकों के बीच से यह आवाज आई|
लड़की थरथर काँपने लगी|
कल्याणी देवी ने एडमिट कार्ड देखा| लड़की का नाम आयुषी था|
''बेटी, हम उसी शहर के हैं|  तुम्हें ले चलेंगे,''मनचलों की भीड़ को घूरते हुए कल्याणी देवी ने कहा|
ट्रेन रुकी| कल्याणी देवी सीधे केंद्र पर पहुँचीं| आयुषी को अन्दर भेज उन्होंने राहत की साँस ली| तीन घंटे की परीक्षा थी|
''निकलकर कहाँ जाएगी आयुषी,''यह सोचकर केंद्र पर ही बैठ गईं| दो घंटे बाद अचानक किसी ने पूछा,''आपने देखा है मेरी आयुषी को''
मुड़कर कल्याणी देवी ने देखा| वही वृद्ध आँखों में आँसू लिए खड़े थै|
''जी, वह परीक्षा देने अन्दर गई है''कल्याणी देवी ने मुस्कुराते हुए कहा|
वृद्ध के दोनों हाथ आसमान की ओर उठ गए और उनकी आँखों से आँसुओं की अविरल धार बही जा रही थी|
--ऋता शेखर 'मधु'

संवेदना-लघुकथा

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संवेदना
किरण और सुमन फेसबुक मित्र थीं| फेसबुक पर पोस्ट की गई किरण की कविताएँ सुमन को बहुत अच्छी लगती थीं | किरण की हर संवेदना पर लाइक की मुहर लगाने वाली वह प्रथम पाठक हुआ करती थी| इधर कई दिनों से किरण की कोई पोस्ट न देखकर सुमन ने इनबॉक्स में पूछा|
“अपने मित्रों की पोस्ट पर सैकड़ों लाइक और कमेंट देखकर मैं हीन भाव से ग्रसित हो जाती हूँ कि मैं वैसा क्यों नहीं लिख पाती’’, किरण ने रोने वाली स्माइली के साथ बताया| सुमन ने समझाने की कोशिश की पर वह समझने को तैयार नहीं थी|
आज एक बेबी शो में रु-ब-रु मिलने का मौका मिला था| गर्मजोशी से एक दूसरे से गले मिलकर दोनों बहुत खुश थीं|’बेबी शो’ की प्रतिस्पर्धा में किरण का आठ महीने का गुलथुल बेटा भी शामिल था| हर तरह के परीक्षणों के बाद परिणाम की बारी थी| जीत वाली लिस्ट में किरण के बेबी का नाम नहीं था मगर इससे बेखबर वह अपने बच्चे को प्यार किए जा रही थी|
‘ तुम्हारा बेटा नहीं जीत सका फिर भी तुम उससे प्यार क्यों किए जा रही हो”, सुमन ने तीखी बात कही|
“जीत से क्या मतलब, यह मेरा बच्चा है तो प्यार क्यों न करूँ,” किरण ने तल्खी से कहा|
“वही तो किरण, तुम्हारी कविताएँ तुम्हारी अपनी संवेदनाएँ हैं| उनसे प्यार करना क्यों छोड़ दिया,” सुमन ने कहा|
किरण के चेहरे की चमक बता रही थी कि हीनता का बदरंग आवरण गिर चुका था|
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
----ऋता शेखर ‘मधु’

सुराख वाले छप्पर - लघुकथा

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सुराख वाले छप्पर 

कॉल बेल बजते ही मिसेज तनेजा दरवाजे पर पहुँचीं| बगल के फ्लैट की नई पड़ोसन मिसेज भल्ला थीं| हाथ जोड़कर नमस्ते बोलते हुए मिसेज तनेजा ने उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया और हँस हँस कर बातें करने लगीं| सौम्य मिसेज भल्ला सिर्फ मुस्कुराकर थोड़े शब्दों में जवाब दे रही थीं|

“ पता है मिसेज भल्ला, सामने वाली मिसेज वर्मा ने अपनी सास को वृद्धाश्रम में छोड़ रखा है| पति पत्नी दोनों सुबह काम पर निकल जाते हैं| उनका कहना है कि वे सास को किसपर छोड़ें| किसी कामवाली पर छोड़ने से अच्छा है वृद्धाश्रम में रखना| ये कोई बात हुई भला, क्या जमाना आ गया है”, मिसेज तनेजा बोले जा रही थीं|
मिसेज भल्ला ने धीरे धीरे कहना शुरु किया|

” मेरी सास नहीं हैं| मेरा छोटा सा बेटा दोस्तों से सुन सुन कर दादी को देखना चाहता था| कल मैं उसे वृद्धाश्रम लेकर गई| मेरे साथ मिसेज वर्मा भी थीं| उन्होंने सास के लिए बहुत सारा सामान ले रखा था| वृद्ध महिलाओं ने बेटे से खूब लाड़ लगाया| वहीं बिस्तर पर पड़ी एक वृद्धा ने बताया कि उनकी बहु घर में रहती है फिर भी मैं यहाँ रहती हूँ| मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वह हमेशा खुश रहे जिससे मेरा बेटा और पोता खुश रहें| उनके हाथों में एक फोटो ले रखा था जो वह था| ’’ शो केस में लगे मिसेज तनेजा के परिवार की फोटो की ओर इशारा किया मिसेज भल्ला ने|

मिसेज तनेजा के पीले पड़ते चेहरे को देखकर मिसेज भल्ला चुपचाप बाहर निकल गईं|

--ऋता शेखर ‘मधु’

गुलामों की भीड़ - लघुकथा

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गुलामों की भीड़

जिलाधिकारी महोदय के करीबी मित्र कवि थे और शहर में कविता पाठ करना चाहते थे। इसके तहत एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया और भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी जिलाधिकारी महोदय ने ली, आखिर मित्र जो थे।

एक मेसेज टाइप कर सबको S M S किया गया-
"सभी बी एल ओ को सूचित किया जाता है कि हिंदी भवन में आज शाम 4बजे मीटिंग है। सबको आना अनिवार्य है। न आने वालों को "कारण बताओ"नोटिस जारी किया जाएगा।"

खचाखच भरे हॉल में कविता पाठ सुन रही गुलामों की भीड़ "कारण बताओ (show cause)"से बच जाने के कारण खुश थी।

-ऋता शेखर 'मधु'

व्यवस्था का नकाब-लघुकथा

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.व्यवस्था का नकाब

व्यवस्था सभी काम सुव्यवस्थित तरीके से करना चाहती थी पर हो नहीं पाता था| इसी परेशानी में वह दफ़्तर की कुर्सी पर बैठी थी कि उसे सुखद आश्चर्य हुआ जब उसने सामने अपनी पुरानी सहेली नकाब को देखा|

‘’क्या बात है भई, बड़ी परेशान दिख रही हो,’’ नकाब ने हँसते हुए पूछा|

‘’ देखो न सखी, मैं चाहती हूँ कि सब कर्मचारी सही समय पर आएँ और पूरी लगन, इमानदारी और निष्ठा से काम करें| लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पाता| कोई देर से आता है और कोई समय से आकर भी गप्पें हाँकता रहता है|  मैं अपने से ऊपर वाले पदाधिकारी को क्या जवाब दूँगी,’’ माथे पर हाथ रखकर व्यवस्था कह रही थी|

‘’ क्या यहाँ कोई मेहनती और सत्यवादी नहीं|’’

‘’ हाँ, एक बेचारा भला आदमी है जो कर्तव्यनिष्ठ है|’’

‘’ फिर तो बात बन गई| जब कोई पदाधिकारी आए तो उसे सामने कर दे और वह सत्यनिष्ठ नकाब का काम करेगा और तेरी सारी अव्यवस्था को अपने भीतर छुपा लेगा,’’ मुस्कुराते हुए नकाब ने कहा|

व्यवस्था न चाहते हुए भी मान गई क्योंकि व्यवस्था ही कुछ ऐसी थी|


-ऋता शेखर ‘मधु’ 
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