फागुन मास गुजर गया, आसमान है साफ|
धूप सुनहरी है सजी, अन्दर गए लिहाफ़|1|
सुरमई सहज सांध्य से, रातें बनीं उदार|
झिलमिल झिलमिल कर रहे, नव तारों के हार|2|
होली गई फाग गया, चैत बना अनुराग|
नव वर्ष अब आ गया, जाग मुसाफिर जाग|3|
आज खास श्रीखंड अरु, पूरणपोली, नीम|
करें निरोगी पत्तियाँ, ऐसा कहें हकीम|4|
बैठो मिल-जुल दो घड़ी, तुम अपनों के पास|
पल भर दुख-सुख बाँट लो, मन में घुलें मिठास|5|
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, मिले जगत को प्राण|
नवसंवत्सर आज है, हरषित हुए कृषाण|6|
जिमें केशरी भात अरु, बोलें मीठे बोल|
गुड़ी पड़वा कहे हमें, मिलें सदा दिल खोल|7|
गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र में, बिहार में नवरात्र|
नवसंवत्सर शुभ रहें, शुभ हों मंगल-पात्र|8|
ऋता शेखर 'मधु'