
जली पतीली का दर्द
ये महिलाएँ भी न
पता नहीं
क्या समझती हैं खुद को,
कभी भी धैर्यपूर्वक
चुल्हे के पास खड़े होकर
दूध नहीं उबालतीं
उन्हें बड़ा नाज है
अपनी याददाश्त पर
पतीले में दूध डाला
उसे गैस पर चढ़ाया
पर वहाँ खड़े होकर
कौन बोर होने का सरदर्द ले
या तो तेज आँच पर ही
दूध को छोड़कर
गायब हो जाती हैं
यह सोचकर
‘बन्द कर दूँगी न’
इधर दूध बेचारा भी क्या करे
उसे आदत है
उबलकर बाहर निकल जाने की
और नतीजा बड़ा सुहाना
हँस-हँस कर गाइए
‘हम उस घर के वासी हैं
जहाँ दूध की नदिया बहती है’J
दूसरा विकल्प
गैस की आँच धीमी करो
फिर निकल जाओ गप्पें मारने
अब दूध बेचारा
उबलता रहा
उबलता रहा
आधा हुआ
उसका भी आधा हुआ
उफ! मालकिन अब भी गायब
पतीली ने सारा दूध पी लिया
अब क्या करे
उसने जले दूध की गंध
फ़िजाओं में घोल दिया
फिर रो-रो कर गाने लगी
‘मैं बैरन ऐसी जली
कोयला भई न राख’…J
.ऋता शेखर 'मधु'