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Channel: मधुर गुँजन
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मेरे हाइकु-जोशीले पग

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इसमे एक हाइकु की अंतिम पंक्ति दूसरे हाइकु की प्रथम पंक्ति है

१.

जोशीले पग
वतन के रक्षक
रुकें न कभी|


२.

रुकें न कभी

धड़कन दिलों की

सूर्य का रथ|

३.
सूर्य का रथ
उजालों की सवारी
धरा की आस|

४.
धरा की आस
नभ से मिली नमी
उर्वर हुई|

५.
उर्वर हुई
सुनहरी बालियाँ
स्वर्ण जेवर|

६.
स्वर्ण जेवर
झनके झन झन
वधु-कंगना|

७.
वधु कंगना
झूम उठे अँगना
घर की शोभा|

८.
घर की शोभा
मर्यादा का बंधन
गृह रक्षित|

९.
गृह रक्षित
देहरी पर दादा
अनुशासन|

१०.
अनुशासन
घर का आभूषण
घर चमके|

११.
घर चमके
अमृत वाणी बूँद
सदा अमर|
.......ऋता शेखर 'मधु'

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