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चले थे कहाँ से कहाँ जा रहे हैंशजर काट कैसी हवा पा रहे हैं
न दिन है सुहाना न रातें सुहानी
ख़बर में कहर हर तरफ़ छा रहे हैं
मुहब्बत की बातों को दे दो रवानी
न जाने ग़दर गीत क्यों गा रहे हैं
है रंगीन दुनिया सभी को बताना
ये सिर फाँसियों पर बहुत आ रहे हैं
विरासत में हमने बहुत कुछ था पाया
क्यों माटी में घुलता ज़हर खा रहे हैं
@ऋता शेखर 'मधु'