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कुछ नया-लघुकथा

कुछ नया
‘हरिहर प्राथमिक विद्यालय’ के उद्घाटन समारोह में नरेन भी आया था| वहाँ कई अवकाशप्राप्त वरिष्ठ  योगदान देने को इच्छुक थे|
नरेन को एक साल पहले की बात याद आ गई|
‘पापा, आपको रिटायरमेंट के जो पैसे मिले हैं उससे तीन बेडरूम का फ्लैट ले लेते हैं|’ नरेन की आवाज में परामर्श से अधिक आदेश झलक रहा था|
‘और इस घर का क्या करेंगे,’ थोड़े अचम्भे से हरि बाबू ने पूछा|
‘इसे किराया पर लगा देंगे’
‘मतलब मेरे पैसों का हिसाब किताब तुम लगाओगे,’ हरि बाबू ने थोड़ी तल्ख़ी से कहा|
‘आप उस पैसे का क्या करेंगे’ छुपाते छुपाते भी नाराजगी उजागर हो गई नरेन की|
‘बेटे, मैंने अपनी कमाई का उपयोग कभी खुद के लिए नहीं किया| तुम्हे उच्च स्तर का लालन पालन दिया| मँहगे स्कूल से लेकर अच्छी फीस वाली यूनिवर्सिटी में पढ़ाया| पाई पाई बचाकर घर और गाड़ी खरीदी ताकि बीबी बच्चे शान से रह सकें|’
‘अपने परिवार के लिए सभी यह करते हैं| आपने नया क्या किया,’ नरेन की बातें नश्तर की तरह चुभ गई हरि बाबू को|
‘तो बेटे, अब नया करूँगा| मैं जा रहा हूँ अपना सपना पूरा करने|’
आज पापा के साकार स्वप्न को देख नरेनडबडबाई आँखों से देख रहा था और उनकी व्था का अनुभव भी कर रहा था|

--ऋता शेखर ‘मधु’

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