ठोस रिश्ता
“अब मैं रिया के साथ नहीं रह सकता| उसका रोज रोज देर से घर आना मुझे पसंद नहीं| नौकरी करने का मतलब यह नही कि घर को वह नेग्लेक्ट करे|”
“नहीं बेटा, ऐसा मत सोचो| रिया एक समझदार लड़की है| वह काम के प्रति वफादार है| जब हमने नौकरी वाली बहु लाई है तो हमें उसकी मजबूरी भी समझनी चाहिए| | एक तो उसे नौकरी का तनाव है , उसपर तुम्हारा यह रुख कहीं सब कुछ बिखरा न दे| इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, ”माँ ने बेटे अंशुल को समझाना चाहा|
“मगर माँ, अब मुझसे बिल्कुल बरदाश्त नहीं होता| रिश्तों में कड़वाहट आने लगे तो अलग हो जाना ही अच्छा है| मैं तलाक की अर्जी देने जा रहा हूँ|”
“तो ऐसा करो,तलाक का एक कागज मेरे लिए भी ले आना| मैं भी तुम्हारे पापा से तंग आ चुकी हूँ| उनका हर समय घर से बाहर रहना मेरे भी बरदाश्त से बाहर है| सारी गृहस्थी का बोझ मैं अकेले ही क्यों उठाऊँ|”
अंशुल के जाते हुए कदम थम गए| वह सीधे अपने कमरे में गया और पनी दो साल की बिटिया को प्यार करने लगा|
---ऋता शेखर ‘मधु’