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Channel: मधुर गुँजन
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मन वैरागी

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दस तांका --- ऋता शेखर 'मधु'
१.
हृदय गंगोत्री
प्रेम की गंगा बही
धारा पावन 
समेट रही छल
जीत रही है बल|
२.
मन वैरागी
स्मृतियों का कानन
करे मगन
चुनो सुहाने पल
महकेगा आँचल|
३.
लेखनी हंस
मन मानसरोवर
शब्दों के मोती
चुगता निरंतर
खोल रहा अंतस|
४.
सूरज हँसा
धरा गई निखर
जागा जीवन
खुशी गई बिखर
दिन लागे प्रखर|
५.
धरा की नमी
नभ दृग में बसी
छेड़ो न उसे
वो बरस जो जाए
भीगे दिल सभी का|
६.
जागे अम्बर
चाँद चाँदनी संग
पल शीतल
सूरज से छुपाये
राग मधुर गाए|
७.
तेज आँधी थी
बुझा पाई न दिया
ऐसा लगा है
दुआ सच्चे दिल की
रब ने कुबूल की|
८.
चमकी लाली
प्राची ने माँग भरी
ले अँगड़ाई 
अरुण वर उठा
कौंधा नव जीवन|
९.
क्या करे कोई
एक ओर हो खाई
दूजी में कुआँ
बढ़ाना पग-नाप
पार हो जाना भाई|
१०.
जीवन रेल
भागती सरपट
कई पड़ाव
साथ हैं मुसाफिर
अलग हैं मंजिलें|

...........ऋता शेखर 'मधु'


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