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दोहों के प्रकार 2- सुभ्रमर दोहा

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दोहों के प्रकार पर कार्यशाला 2 - सुभ्रमर दोहा
दोहों के तेईस प्रकार होते है।
वैसे 13-11के शिल्प से दोहों की रचना हो जाती है जिनमें प्रथम और तृतीय चरण का अंत लघु गुरु(12) से तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण का अंत गुरु लघु(21) से होता है।दोहे में कुल 48 मात्राएँ होती हैं।
आंतरिक शिल्प की बात करें तो दोहे 23 प्रकार के होते हैं । हर शिल्प के लिए दोहों के अलग-अलग नाम हैं। ये सज्जा एवं नाम गुरु वर्णों के अवरोह क्रम में रखे गए हैं।मेरी कोशिश है कि हर प्रकार के कुछ दोहे लिख सकूँ तथा मित्रों को भी बता सकूँ। इसी कोशिश में दूसरा प्रकार आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।इन दोहों की समीक्षा प्रार्थित है। पिछली कार्यशाला में प्रकाशित भ्रमर दोहों का थोड़ा रूपांतरण करके सुभ्रमर बनाया है जिससे समझने में आसानी हो।यहाँ प्रथम चरण में चौथे गुरु को दो लघु किया गया है, बाकी सारे यथास्थान हैं।
सुभ्रमर दोहा-
21 गुरु 6 लघु=48
22211212,222221
2222212,222221

पानी भोजन श्वास में, है प्राणी का सार।
पौधों पेड़ों ने रचे, जीवन का आधार।।

काया दौलत के बिना, सूना है संसार।
वाणी योगी साधना, ले जाएँगे पार।।

झूमी गाकर जिंदगी, ले फूलों का साथ।
माथे माथे हों सजे, कान्हा जी के हाथ।।

ऊर्जा से भरपूर हैं, खाते-पीते लोग।
हीरे को हीरा मिले, हो ऐसा संजोग।।

फूलों से खुशबू मिली, खानों से सौगात।
चंदा से है चाँदनी, पेड़ों से हैं पात।।

--ऋता शेखर 'मधु'

दोहों के प्रकार3- शरभ छंद

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दोहों का सामान्य शिल्प 13-11 का होता है।
आंतरिक शिल्प के आधार पर दोहे 23 प्रकार के होते है।
यह है तीसरा प्रकार...छंद विशेषज्ञ नवीन सी चतुर्वेदी जी के दोहे उदाहरणस्वरूप दिए गए हैं।
उसी आधार पर मैंने भी कोशिश की है।
शरभ दोहा
20 गुरु और 8 लघु वर्ण
22 2 11 2 12, 22 2 2 21
2 2 2 221 2, 222 11 21
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में हो आनन्द तो, दीवाली दिन-रात।।
-- नवीन सी चतुर्वेदी

पानी भोजन श्वास में, है प्राणों का सार
पौधों पेड़ों ने रचे, ऊर्जा स्रोत अपार।।

माया कंचन कामना, हैं दुःखों के मूल।
माँगी थीं सारंग को, वैदेही छल भूल।।

पैसों को धन मानते, रिश्तों को व्यापार।
ऐसे लोगों में कहाँ, होता प्यार -दुलार।।

खेतों में सरसों खिली, जाड़े की है धूप।
भोली भाली कामना, माँगे रूप अनूप।।

पौधे और नदी मिले, बासंती है गान।
कान्हा ने जो भी दिया, मानो है वरदान।।
--ऋता शेखर 'मधु
सौजन्य: साहित्यम ब्लॉग से साभार

वक़्त-- कविता

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वक़्त
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ये वक़्त भी क्या शय है

कितना कुछ समेटती

कितना कुछ बिखेरती

जाने कितने वादे किए

सपनों की टेकरी में

जाने क्या क्या इरादे दिए

कहीं झंझावात देती

कहीं खुशियों को मात देती

वो मरज़ी रही उसी की

कुछ सुनहरे कुछ रुपहले

मित्रों से मुलाकात देती

इतिहास भी उसी से है

कई राज भी उसी में है

परत दर परत न उधेरो उसे

उसकी अपनी रफ़्तार है

कहीं मीठी कहीं खार है

कहीं किनारा या मझधार है

जरूरत है कि हमसब

उसी रफ़्तार में बढ़े चलें

हर पल बीतना ही है

हर दिन सूरज भी आएगा

इस सच के साथ

हम अंधेरों से न डरें

हम हारकर भी न रुकें

कहीं तो होगी ही

कालीन फूलों की

कदम उधर बढ़ते चलें

ये वक़्त है, वो वक़्त है

हर वक़्त की अपनी कहानी

कहीं लिखी गयी

कहीं है जबानी

वक़्त में सब कुछ समाया

कर्मों की पोटली हो

लगन की हो सजावट

शालीनता हो साथ

न जुबाँ में हो गिरावट

देखो ,सुनो

आने लगी है चौखटों पर

उमंगों की तेज आहट

----- ऋता शेखर 'मधु'

मैं वापस आऊँगा -- कहानी

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मैं वापस आऊँगा

     हवाई जहाज ने टेक ऑफ़ के बाद स्थिर रफ़्तार पकड़ ली थी| जल्द ही श्वेत बादलों को टक्कर देती हुई ऊँची उड़ान भरने लगी|पूरे आठ घंटे का सफर था|
     आज घर से निकलने के कुछ देर पहले पिता जी सीढ़ियों से गिर गये थे| कोई फ्रैक्चर तो नहीं हुआ था पर चोट अच्छी खासी आई थी| एक्स रे करवा लेना जरूरी था इसलिए उन्हें लेकर अस्पताल गया और समुचित इलाज करवाकर वापस आया| घर में पत्नी नेहा ने सब कुछ व्यवस्थित करके रखा हुआ था|

“पिता जी, मेरा मन अब जाने का नहीं हो रहा| जाने से मना कर दूँ क्या,” मैं चिंतित था||

“अरे नहीं बेटा, चोट लगी है तो धीरे धीरे ही ठीक होगी न| तू निश्चिंत हो कर जा| नेहा है न , वह सब संभाल लेगी|

मैंने नेहा की ओर देखा|

“पिता जी ठीक कह रहे रहे हैं, मैं उनकी देखभाल कर लूँगी| आप चिंता न करें|” नेहा ने भी स्वीकृति दे दी| नेहा के सेवा भाव और जिम्मेदार स्वभाव से मैं चार वर्षों में परिचित हो चुका था इसलिए नेहा पर पूरा विश्वास था|
     इसी भागदौड़ में मुझे थोड़ी थकावट हो गयी थी| हवाई ड्डे पर सभी औपचारिकताओं के समय भी मैं थका थका महसूस कर रहा था| हवाई जहाज में बैठकर स्थिरता आते ही मैंने आँखें बन्द कर लीं| मेरा ख्याल था कि मुझे नींद आ जाएगी|पर मन के भीतर का संसार इतना विशाल होता है कि पलक बन्द करते ही मनुष्य वहाँ विचरण करने लगता है| कम्पनी की ओर से वह लंदन जा रहा था| वहाँ मेरे मित्र नें अपने घर आने का न्योता दे रखा था| आँखें बंद करते ही मुझे वह दिन याद आ गया जब उसने आई आई टी कम्पीट करने के बाद काउंसेलिंग के लिए कॉलेज परिसर में कदम रखा था| सबने अपने अपने ब्रांच का चयन किया| उसके बाद बारी थी हॉस्टल में रूममेट चुनने की| लगभग सबने अपनी जोड़ी ढूँढ ली थी| मेरे पिता निर्णय नहीं ले पा रहे थे| कुछ लड़के दिग्गज लग रहे थै, कुछ के माता पिता की अकड़ देखने लायक थी| तभी एक सीधा सा लड़का अपने माता पिता के साथ वहाँ पर आया|

“क्या आप मेरे बेटे ऋषि के साथ अपने बेटे को रखना चाहेंगे| ये बहुत ही सीधा है| आपका बेटा भी मासूम लग रहा|”

मेरे पिता ने झट से हामी भर दी| वहीं से सफर शुरू हुआ हमारे साथ का| हमारी जोड़ी खूब जमने लगी| चार वर्षों तक हमने अपनी सभी बातें शेयर करना सीख लिया| यह भी संयोग ही था कि कैंपस सेलेक्शन में नौकरी भी हमें एक ही कंपनी में लगी|

     हमने मुंबई में साथ ही एक फ्लैट किराये पर लिया और रहने लगे| फ्लैट में अक्सर उसके पिता आकर रहते थे| कानपुर में उनका बिज़नेस था| ऋषि उनका इकलौता पुत्र था|

एक दिन उन्होंने बातों ही बातों में बताया कि वे अब ऋषि की शादी करना चाह रहे|

“अंकल ,आपने लड़की पसंद कर ली क्या?”

“हाँ बेटा, वह मेरे एक मित्र की लड़की है| बहुत ही शालीन , मृदुभाषी और मिलनसार लड़की है| बचपन से ही देखा है उसे| उन्हैं भी ऋषि पसंद है| हमारा फैमिली बिजनेस भी सँभल जाएगा|”

“अरे वाह अंकल, ये तो बहुत अच्छी बात है| अब देर किस बात की| फटाफट बहू लाइए|”

उसके एक महीने बाद ऋषि की शादी हो गयी|

     उसके बाद ऋषि ने अपना स्थानान्तरण कानपुर में ही करवा लिया| मुझे बहुत खुशी थी कि अंकल को सहारा मिल गया था बेटे- बहू का| चूंकि कंपनी एक ही थी तो अचानक एक दिन मेल पर पढ़ा कि ऋषि विदेश जा रहा| मैंने झट से उसे फोन लगाया|

“यार, सुना कि विदेश में बसने की तैयारी हो रही| अपना देश क्या बुरा है यार|”

‘बात अपने देश की नहीं साहिल, जाना है तो जाना है|”

“ऐसा भी क्या हो गया, अंकल के बारे में भी तो सोच|”

“पापा को हमदोनों से बहुत ज्यादा चाहतें है यार, इससे हमारे रिश्तों में दरार आने लगी है|मैं घर का बिजनेस नहीं सँभालना चाहता| बहुत मेहनत से पढाई की है तो नौकरी ही करूँगा| मेरी पत्नी भी नहीं चाहती कि टिपिकल भारतीय बहुओं की तरह घर के काम काज और माँ की सेवा में समय बिताए|”

“तब उसी शहर में अलग रह, भाभी को समझा| देश छोड़ कर भागने से क्या तू खुद को माफ कर पाएगा|”

इसका ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया|

अगले दस दिनों में ही वह पत्नी के साथ विदेश चला गया|

     वह सीधा सादा लड़का क्या सच में अन्दर से उतना ही सीधा था या फिर अंकल ने ही कुछ ज्यादा उम्मीदें पाल ली थीं, इसका उत्तर नहीं दे पाता था मन मेरा|

अब जब मुझे भी लंदन जाने का मौका मिला तो मैंने अंकल को फोन किया|

“अंकल, मैं लंदन जा रहा हूँ| क्या आप कुछ देना चाहेंगे ऋषि के लिए?”

“बेटा, मैं कुछ भी दूँगा तो वह लेगा या नहीं, यह तो नहीं मालूम| हाँ, उसके कुछ छोटे कपड़े हैं, वह ले जाओ उसके बेटे के लिए|”

“अरे वाह! आप दादा बन गये और ऋषि ने बताया भी नहीं| छोटे कपड़े दे दीजिए| और अंकल, आपके लिए क्या लाऊँ?”

“बस, अपने मोबाइल में कुछ फोटो ले आना जिसमें पोते को देखकर संतोष कर लूँगा|”

“जी,”कहते हुए मेरी आँख भर आई|

मैं पुराने दिनों की यादों में खोया हुआ था तभी जहाज लैंड करने की सूचना दी गयी| ओह! पिछले चार वर्षों को याद करते हुए पाँच घंटे बीत चुके थे|

लंदन पहुँचते ही सीधे ऋषि के घर गया| आवभगत की पूरी तैयारी थी| गपशप में समय निकल गया| रात का खाना खाकर ऋषि की पत्नी रसोई समेटने लगी| मैं ऋषि से अकेले में बात करना चाहता था इसलिए उसे लेकर बाहर निकल गया|

“अब बता ऋषि, क्या अंकल आंटी की याद नहीं आती?”

शायद ऋषि को भी इसी सवाल का इन्तेजार था| पर उसने कहा कुछ नहीं| बहाने से आँखों के पास हाथ ले जाकर उसने बूँदों को थाम लिया|

“ऋषि, अंकल ने तेरे लिए कुछ भेजा है| बिना पूछे देने की हिम्मत नहीं हुई| क्या देखना पसंद करेगा?”

“हाँ”, संक्षिप्त उत्तर देकर वह वापस घर की ओर मुड़ गया|

मैंने वह पैकेट ऋषि को थमा दिया| उसे देखते हुए फिर वह स्वयं को रोक नहीं पाया और फूटफूट कर रोने लगा| उसकी पत्नी भी शांत बैठी थी|

“अंकल के लिए कुछ देना चाहोगे ऋषि?”

“क्या दूँगा”

“मैं बताऊँ’, कहते हुए मैंने वीडियो कॉल लगा दिया|

दोनों एकटक एक दूसरे को देखते रहे| मैंने उसके बेटे को भी सामने कर दिया|

उस वक्त शब्द जरूरी न थे|

विडियो बंद करने से पहले मैंने पूछा,’कुछ कहना है?”

“मैं वापस आऊँगा पापा,” अचानक ऋषि ने कहा|

वीडियो कॉल बन्द करके मैं अपने बिस्तर पर चला गया| कभी कभी किसी रिश्ते को सुधारने के लिए किसी तीसरे का प्रवेश भी जरूरी हो जाता है, यह सोचते हुए धीरे धीरे मेरी पलकें मुँदने लगी थी|

मौलिक एवं अप्रकाशित

ऋता शेखर ‘मधु’

३१/०८/२०१९

दोहों के प्रकार

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दोहे तेइस प्रकार के होते हैं...पिछले पोस्ट में तीन प्रकार के दोहे प्रकाशित हैं|
4- श्येन दोहा
19 गुरु और 10 लघु वर्ण

22 2 11 2 12 ,22 2 2 21
2 2 12 121 2, 222 1121

भोले फूल समेटते, प्यारी- प्यारी गंध।
ज्यों ही हवा चली वहाँ, टूटे हैं अनुबंध।।1

यादों की परछाइयाँ, यादों की है धूप।
चाहे रहे स्वरूप जो, भाते हैं हर रूप।।2

अच्छे राजन का सदा, होता है सम्मान।
साथी रही प्रजा जहाँ,होता देश महान।।3

दोनों ही उलझे रहे, लम्बाई को तान।
क्यों एक से लगे हमें, धागे और जुबान।।4

चारों ओर चली हवा, बागों में है शोर।
देखो उन्हें लुभा रही, जो जागे अति भोर।।5

टूटे पात जुड़ें नहीं, ऐसी ही है रीत।
साथी कभी न तोड़ना, रिश्तों वाली प्रीत।।6
--ऋता शेखर मधु

5.मण्डूक दोहा-

18 गुरु 12 लघु=48

112112212,1212221
22112212, 222221

जग में अपना कौन है, हुआ पराया कौन।
काँधे रख दे हाथ जो, या हो जाए मौन।।

मन निश्छल निष्पाप हो, तभी झुकाओ शीश।
जैसी जिसकी सोच हो, वैसा देते ईश।।

गुलमोहर के फूल ने, सदा सिखाई बात।
जो भी सह ले धूप को, संजोता औकात।।

--ऋता शेखर 'मधु'

6.मर्कट दोहा

17 गुरु 14 लघु=48

112211212,222221
112121212,2221121

जल ही जीवन का सदा, होता है आधार।
हर बूँद जो सहेज लें, लौटेगी जलधार।।1

मन को भावन से लगे, बंजारों के गीत।
लगता उन्हें पुकारते, जो खोए घर मीत।।2

जग में सुन्दर नाम हैं, या कृष्णा या राम।
दृग ढूँढते रहे उन्हें, घूमे थे जब धाम।।3

रवि डूबे जब झील में, सोये सारी रात।
मिलती हमें निशा सखी, होती जी भर बात।।4

बगिया में कलियाँ खिलीं, बासंती है राग।
मन बावरा उड़ा फिरे, ढूँढे ढोलक फाग।।5

-ऋता शेखर 'मधु'

7.करभ दोहा-

16 गुरु 16 लघु=48

112211212,21121121
12122212,1212221

पथ आसान मिले किसे, कौन रहे निष्पात।
इसे लिखा है ईश ने, हमें कहाँ है ज्ञात।।

पुरवाई चलने लगी, शीतल है अहसास।
छुईमुई सी पाँखुड़ी, भरे अनोखी आस।।

मत काटो उस पंख को, जो लिखते अरमान।
जहाँ पली हैं बेटियाँ, वहाँ बढ़ी है शान।।

घर आये ऋतुराज हैं, लेकर पुष्प हजार।
रचो सदा माँ शारदे, सुज्ञान का संसार।।

तन पीले परिधान से, आज सजा लो मीत।
उड़े परागी रंग हैं, रिझा रही है प्रीत।।

-ऋता शेखर 'मधु'

उसे क्यों नहीं- लघुकथा

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शीर्षक: उसे क्यों नहीं
     एक ही महानगर में दोनों भाई-बहन अलग अलग घरों में रहते हुए अपनी अपनी नौकरियों में व्यस्त थे। भाई के पास माँ कुछ दिनों के लिए आई थी। वीकेंड में माँ ने बेटी के यहाँ जाने का मन बनाया था। सरप्राइज़ देने के ख्याल से वह बेटे के साथ सुबह सुबह पहुँचीं। घर की एक चाबी भाई के पास भी रहती थी। बिना डोर बेल बजाए वे दरवाजा खोलकर अन्दर घुसे। अन्दर आते ही सिगरेट की तेज गन्ध नाक में प्रवेश कर गयी।
यहाँ कौन सिगरेट पीता होगा, यह सोचती हुई वह और अंदर गयीं तो देखते ही उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। बालकनी में खड़ी बिटिया धकाधक सिगरेट के धुएँ के छल्ले उड़ा रही थी। महानगर में रहने वाली लड़कियाँ सिगरेट पीने से परहेज नहीं करतीं यह सुना तो था पर अपनी ही बेटी को यह करते देखने की कल्पना भी न की थी माँ ने।
"यह क्या, तुम सिगरेट पीती हो?"अचानक ही बोल पड़ीं।
"अरे माँ,आप कब आईं? और आने से पहले बताया भी नहीं।"
"बता कर आते तो तुम्हारा यह रूप कैसे देखते?"
"कौन सा रूप भाई?"
"यही, जो तुम कर रही थी।"
"अच्छा भैया, क्या तुम सिगरेट नहीं पीते। हमने तो कभी मना नहीं किया।"
"चुप रह, यह क्या लड़कियों को शोभा देता है।"अब माँ बोल पड़ी।
"माँ, आप कब से लड़का लड़की में भेद करने लगीं। भाई को तो कभी मना नहीं किया, मुझे क्यों...लड़की हूँ इसलिए न।"
निरुत्तर सी खड़ी माँ को देखकर भाई ने सिगरेट का डब्बा निकाला और माँ के हाथों में रखते हुए बोला,"बहन सच कह रही माँ। जो वर्जना लड़की के लिए है वह लड़कों के लिए भी तो होनी चाहिए।आज से मैं इसे छोड़ता हूँ।"
"मैं भी,"कहते हुए बहन ने भी अपना डब्बा माँ को दे दिया।
दोनों बच्चों को गले से लगाकर माँ कुछ देर खड़ी रही।
अब भी कुछ तो शेष था जिसके कारण दोनों ने पालन पोषण का मान रख लिया था।
@ऋता शेखर 'मधु'

तटस्थ-लघुकथा

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शीर्षक : तटस्थ
रमा को अपना तटस्थ व्यवहार बहुत पसंद था। बड़ी से बड़ी बहस में भी वह अपना कोई मत प्रकट न करती और चुप्पी साध लेती। इसलिए वह सबकी प्रिय बनी रहती।

आज फिर से एक नई बहस छिड़ी थी। कॉलेज में कमिटी के प्रेसिडेंट का चुनाव होना था। इस चुनाव में दोनों प्रतिद्वंदी , रूही और सुरभि उसकी सहेलियाँ ही थीं। इसी बात को लेकर कॉमन रूम में बातें हो रही थीं। जाहिर है कोई रूही की ओर से बोल रही थीं और कुछ सुरभि के पक्ष में थीं।

थोड़ी देर बाद सबको यह कहा गया कि जो रूही के पक्ष में हैं वे अपने हाथ उठाएँ। कुछ ने हाथ उठाये जिनकी गिनती कर ली गयी। उसके बाद सुरभि के लिए हाथ उठाने को कहा गया।

यह संयोग ही था कि दोनों के लिए बराबर हाथ उठाये गए। वोट देने वाली छात्राओं की कुल संख्या विषम थी तो यह स्पष्ट हो गया था कि कोई तो ऐसा है जिसने अपने हाथ नहीं उठाए थे।

अचानक आवाज आई,"रमा ने अपने हाथ नहीं उठाए ।"

सबकी निगाह रमा की ओर मुड़ गयी। उसने वास्तव में अपना मत नहीं दिया था। अपना मन्तव्य कभी स्पष्ट न करने वाली रमा दुविधा में पड़ गयी।

उसने कहा,"मैं इन सब चीजों से दूर रहना चाहती हूँ।"

"किन्तु तुम्हारे मत पर ही किसी एक को जीत हासिल होगी। आज यह प्रक्रिया पूरी न हुई तो फिर से सारा आयोजन करना होगा।"

उसने सोचा कि जिसके लिए भी वह हाथ उठाएगी तो दूसरी सहेली नाराज हो जाएगी। वह यह भूल गयी थी वहाँ सब सहेलियाँ ही थीं। मत देना एक अलग बात थी, वहाँ योग्यता का चुनाव होना था। उससे कोई खुश या नाराज नहीं होता है।

उसने हाथ जोड़ दिया,"मैं इस आयोजन से खुद को अलग करती हूँ।"

अब रूही, सुरभि और सारी सहेलियों की आँखों में नाराजगी उतर आई थी।
@ ऋता शेखर 'मधु'

दोहों के प्रकार - 8 - नर दोहा।

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दोहों के प्रकार - 8 - नर दोहा।
दोहों के तेईस प्रकार होते है।

वैसे 13-11के शिल्प से दोहों की रचना हो जाती है जिनमें प्रथम और तृतीय चरण का अंत लघु गुरु(12) से तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण का अंत गुरु लघु(21) से होता है।दोहे में कुल 48 मात्राएँ होती हैं।

आंतरिक शिल्प की बात करें तो दोहे 23 प्रकार के होते हैं ।
८...नर दोहा-
15 गुरु 18 लघु=48
222112111,11221121
112221112,2221121

स्याही में नव प्रीत भर, लिख दो आज उमंग।
नव गीतों में उड़ चली, प्यारी पीत पतंग।।1

जो देखो लिख दो मनुज, सच होता इतिहास।
उसकी है कीमत बड़ी, त्यागे जो उपहास।।2

प्रीती प्रेम गुलाब बन, बिखरा है चहुँ ओर।
खुशबू फैली उर खिले, पाए आज न छोर।।3
-ऋता शेखर 'मधु'

हंस एवं गयंद दोहा

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हंस दोहा

14 गुरु और 20 लघु वर्ण
112 112 2 12 11 22 1121
211 11 2 21 2 112 11 2 21

बगिया इतराती फिरी, चहकी आज उमंग।
भावन लगते हैं सभी, जब हों अपने संग।।

इहलौकिक होने लगे, परिजाती मकरंद।
आखर पुखराजी हुए, रचते ग़ज़लें छंद।।

पद पाकर जो नम्र हैं, उन सा कौन महान।
लो अनुभव की खान से, मनु, कंचन सा ज्ञान।।
10
गयंद दोहा

13 गुरु और 22 लघु वर्ण
2121 112 12, 2121 11 21
11 1111 2 21 2, 2 121 11 21

प्रेम से हृदय जो भरे , बाँट दो सरस बात।
महक सहज ही दे रहे, स्वर्ग -पुष्प परिजात।।

बेटियाँ सफल हो रहीं, गर्व से पँख पसार।
धरम भरम से मुक्त हैं, सोच लेख सुविचार।।

रौंदते पग सहे सदा, की न दर्द पर आह।
गणपति उसको धार लें, दूब की सरल चाह।।

लोभ मोह पद से परे, हो विनम्र व्यवहार।
सरल सहज मुस्कान से, जीत लें हृदय हार।।

झूमते हरित पात हैं, हो बयार जब मंद।
सुमन सुरभि निःस्वार्थ है, स्वार्थ में मनुज फंद।।

-ऋता शेखर 'मधु'

देसी आम - लघुकथा

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देसी आम

"आज मन बहुत उदास है प्रिया| अपना देश छोड़ तो आए, पर लग रहा कि कितना कुछ पीछे छूट गया, "प्रियम ने कोरों पर छलक आए आँसुओं को छुपाने का असफल प्रयास करते हुए कहा|


"देखो भाई, इतने दुखी मत हो| जीवन हमें गति का पाठ पढ़ाती है| गतिशिलता में कुछ पाते हैं और कुछ खोते भी हैं| जब तुम अपने पूरे परिवार के साथ आए हो, पापा मम्मी भी साथ हैं तो फिर क्या छूट गया,"प्रिया ने भाई को सहज करने का प्रयास करते हुए कहा|

"सिर्फ अपना परिवार ही सब कुछ नहीं होता प्रिया| हम अपनी उस मिट्टी को छोड़ कर आए है जिसने हमारा पालन पोषण किया| उन साथियों को छोड़ आए हैं जो हमारी खुशी में खुश होते थे और जरूरत पड़ने पर हमारे आसपास होते थे| हम उस देश को छोड़ आए हैं जिसने हमें बेहतर जीवनयापन की डिग्रियाँ दीं|"

"भाई, हम अब भी जुड़े हैं|"

"वह कैसे|"

"बस देखते जाओ हमारा कमाल", कहती हुई प्रिया चली गई|

थोडी देर बाद फेसबुक पर एक नया समूह अवतरित हुआ|

"'धरती विदेश की- भाषा स्वदेश की', मित्रों , यह एक साहित्यिक समूह है| यहाँ आप हिन्दी में अपने विचार प्रकट कर सकते हैं| विधा आपके पसंद की, जुड़ाव हमारे दिलों का|'"

देखते ही देखते सैकड़ों लोग जुड़ गये|

"कैसा लग रहा भाई"

"प्रिया! मेरी साहित्यकार बहन, ऐसा लग रहा जैसे हम हिन्दी की कश्ती पर सवार वापस अपनी माटी का तिलक लगा रहे|"

उस दिना डाइनिंग टेबल पर बैठा प्रियम देसी अंदाज में आम खा रहा था...अँगुलियों और होंठों के किनारों पर आम का रस लपेटे हुए|


ऋता शेखर 'मधु'

ओ मधुरमास

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ओ मधुरमास
आओ ढूँढने चलें
प्यारे बसंत को

पवन सुहानी मन भायी
मिली नहीं फूलों की बगिया
स्वर कोयल के कर्ण बसे
छुपी रही खटमिट्ठी अमिया
यादों के पट खोल सखे
ले उतार खुशियाँ अनंत को

ओ कृष्ण-रास
ता-थइया करवाओ
नर्तक बसंत को

मन देहरी पर जा सजी
भरी अँजुरी प्रीत रंगोली
मिलन विरह की तान लिए
प्रिय गीत में बसी है होली
कह सरसों से ले आएँ
तप में बैठे पीत संत को

ओ फाग- मास
सुर-सरित में बहाओ
गायक बसंत को

अँगना में जब दीप जले
पायल छनकाती भोर जगे
हँसी पाश में लिपट गयी
बोल भी बने हैं प्रेम पगे
कँगन परदे की ओट से
पुकार उठी है प्रिय कंत को

ओ नेह- आस
चतुर्दिक सुषमा भरो
प्रेमिल बसंत को

न तो बैर की झाड़ बढ़े
न नागफनी के अहाते हों
टपके छत रामदीन की
दूजे कर उसको छाते हों
रोप बीज सुविचारों के
करो सुवासित दिग्दिगंत को

ओ आम- खास
भरपूर रस से भरो
मीठे बसंत को
ऋता शेखर 'मधु'
यह रचना ख्यातिप्राप्त ई-पत्रिका अनुभूति पर प्रकाशित है|
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क्या जाता है- होलियाना मूड

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आशावादी बात लिखो
लिखने में क्या जाता है

सुन्दर सेल्फ़ी चेंप दो
दिखने में क्या जाता है

गेहूँ की एक घून ही है
पिसने में क्या जाता है

तवा चढ़ी जो रोटियाँ
सिंकने में क्या जाता है

जमीर जमीर मत करो
बिकने में क्या जाता है

बहती है जब गर्म हवा
तपने में क्या जाता है


अक्षर अक्षर मंजरी
छपने में क्या जाता है

चाहे हो घर किराये का
टिकने में क्या जाता है

वादा है पाषाण नहीं
डिगने में क्या जाता है

हर सूरत को सुन्दर बोलो
कहने में क्या जाता है

हम तो पीले पात हुए
झरने में क्या जाता है

बात उतरी नहीं गले से
पढ़ने में क्या जाता है

चुटकुले बेकार हों
हँसने में क्या जाता है

रोजी रोटी चलने दो
थकने में क्या जाता है

फल पर पड़े रसायन हैं
पकने में क्या जाता है

बुढ्ढे हैं पर आँख भी है
तकने में क्या जाता है

तरुवर पर हैं फल लदे
झुकने में क्या जाता है

मैं अदना से दीपक हूँ
बुझने में क्या जाता है

कदम कदम पर बाड़ है
रुकने में क्या जाता है

हर सु नई उमंग है
रमने में क्या जाता है

मोजे बहुत पुराने हैं
फटने में क्या जाता है

नफरत हो या प्यार हो
बसने में क्या जाता है

----ऋता

होलियाना मूड में पढ़िए और मुस्कुरा दीजिये 😄

लॉकडाउन १

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कोरोना- कोई रोड पर ना निकले- लॉकडाउन १

युग बीता सदियाँ बीतीं, इतिहास गवाह है कि जब जब प्रकृति और जीवों पर अत्याचार और भ्रष्टाचार की अति हुई, विधि के विधान ने विनाश की लीला रची और जाने कितनी सभ्यताएँ काल के गर्त में समा गईं| रामायण काल, महाभारत काल, सिंधु घाटी की सभ्यता, मिस्र की सभ्यता, हड़प्पा मोहनजोदाड़ों आदि ने स्वयं को प्राचीन इतिहास में कैद कर लिया|

आज का युग अति आधुनिक युग है| दुनिया ने विकास में बहुत तेजी दिखाई और पिछले डेढ़ सौ वर्षों में अकल्पनीय अनुसंधान एवं आविष्कार हुए| विज्ञान ने मानव सभ्यता को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया| सागर से लेकर आकाश तक मानव ने अपना अधिकार जमा लिया| रेलवे और हवाई जहाज तो पुरानी बात हो गई| प्रकृति पर कहर बनकर टूटा गगनचुम्बी इमारतों का बनना, मेट्रों का आन्| इसके लिए जाने कितने वृक्ष काट डाले गये| धरती धीरे धीरे ग्लोबल वार्मिंग की शिकार होने लगी| वायु हो या जल, सब मानव के अति महात्वाकांक्षा का शिकार होकर प्रदूषित हो गए|

अब हम बात करते हैं विश्व में विकसित देश की श्रेणी में आने वाले देश चीन की| यह तो पहले से सुनते आए थे कि वहाँ के लोग कीड़े मकोड़े, साँप बिच्छू , चमगादर वगैरह सब कुछ खा जाते हैं| अभी चूँकि व्हाट्सएप का जमाना है तो अचानक उनके बहुत सारे विडियो आने लगे जिसमें वे यह सब खाते हुए दिख रहे थे| ऐसा इसलिये हो रहा था कि दुनिया में एक नए वायरस का पदार्पण हो चुका था जो साँप और चमगादर के मेल से बने एन्जाइम के कारण बनने लगे थे| इस वायरस ने सबसे पहले चीन को अपने गिरफ्त में ले लिया| इस सूक्ष्म वायरस का नाम कोरोना था और डॉक्टर्स की भाषा में COVID 19 कहा गया| दिसम्बर में चीन में जब कोरोना के कारण प्रथम मौत हुई तो इसे छिपा लिया गया| चीन के वुहान शहर में विश्व के अन्य देशों के लोग भी थे जो संक्रमित होने लगे| जब वे वापस अपने देश लौटे तो वहाँ भी इस वायरस ने अपने पाँव फेलाने शुरू कर दिये| देखते ही देखते इटली , स्पेन, इंग्लैंड प्रभावित हो गया|इस अदृष्य महामारी से बचने के लिये उन देशों में छुट्टियाँ घोषित कर दी गईं| किंतु जागरुकता की कमी से लोग छुट्टियों का आनंद मनाने के लिये पिकनिक मनाने लगे या इधर उधर यात्रा में संलग्न हो गये जिस कारण संक्रमण बढ़ने लगा और यह बीमारी बहुत बड़ी आबादी में फैल गई| यह संक्रमण वायु से नहीं लगता, लगता है स्पर्श से| संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से , उसे छूने से हाथ संक्रमित हो जाता है| फिर वह हाथ यदि चेहरे पर लगता है तो कान, मुँह या आँख के कोनों से शरीर के अन्दर पहुँच कर गले में अटक जाता है| संक्रमण के बाद लक्षण प्रकट होने में एक से चौदह दिन लगते हैं| यह वायरस श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है| प्रथम लक्षण के तौर पर बुखार आता है और खाँसी होती है|

भारत में प्रथम रोगी केरल में ३० जनवरी को पाया गया| वह विदेश से आया था, इसलिए यह स्पष्ट है कि कोरोना वायरस हवाई जहाज के जरिए ही भारत में आया है| उसके बाद धीरे धीरे संक्रमण की संख्या बढ़ने लगी तो भारत सरकार ने इसके निवारण हेतु नियम बनाए| अब अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा करके आने वालों की जाँच हवाई अड्डा पर की जाने लगी किंतु तबतक थोड़ी देर हो चुकी थी| संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी थी| विदेश से आने वालों को आरम्भ में आइसोलेशन के लिये कहा गया|करीब दस मार्च से उन्हें कावरंटाइन में भेजा गया| वे घर तब तक नहीं जा सकते थे जब तक दस दिन पूरे नहीं हो जाते| भारत में तबतक संक्रमित व्यक्तियों की संख्या सैकड़े में चली गई थी|

COVID 19 से सुरक्षा के दौरान जो शब्द बहुतायत से प्रयोग किये गए वह हैं --

१) कोरोना- वायरस का नाम

२) हैंडवाश- हर आधे घंटे बाद हाथों को साबुन से बीस सेकेंड तक धोना

३) सेनेटाइजर- एक ऐसा तरल जो हाथों से विषाणु को खत्म करने में सहायक होता है|

४) मास्क- मुँह को ढकने वाला खास बनावट का कपड़ा

५) सोशल डिस्टेंसिंग--समाज के लोगों से दूरी बनाकर रहना

६) आइसोलेशन- विदेश से आए लोगों को अपनी जिम्मेदारी पर चौदह दिनों तक समाज से कटकर रहना

७) क्वारंटाइन- विदेश से आए लोगों को किसी सरकारी संस्था की निगरानी में चौदह दिनों तक समाज से कटकर रहना

८) कोरोना टेस्ट किट- ऐसी प्रक्रिया जिससे संक्रमण की जाँच हो सके

९) कोरोना पॉजिटिव- जिनमें संक्रमण साबित हो गया हो

१०) कोरोना नेगेटिव- जिनमें संक्रमण नहीं हो 

११) इम्युनिटी- रोग निरोधक क्षमता बढ़ाना

अब देखते हैं कि भारत में कबसे पूरी तत्परता से बचाव के कदम उठाए गये|
कोई रोड पर ना निकले'- पीएम मोदी ने ...

19 मार्च को माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की रात 8 बजे जनता से सीधी बात।

22 मार्च को कर्फ्यू घोषित किया गया। उसी दिन 5 बजे शाम को मोदी जी ने जनता से आग्रह किया कि कोरोना के विरुद्ध लड़ाई के मोर्चे पर जूट डॉक्टर्स,नर्स, सफाई कर्मचारी, दैनिक सहायक एवम पुलिस का आभार प्रकट करने के लिए शाम 5 बजे देश के सारे लो एक साथ अपने घरों की बालकोनी, दरवाजे, खिड़की, छत पर खड़े होकर ताली, थाली, घंटी, शंख बजायें और उस दिन वह अद्भुत नजारा अविस्मरणीय बन गया। सरकार विरोधी तत्वों ने यहाँ भी खिलवाड़ कर दिया और समूह में इकठ्ठे होकर ताली थाली बजाने लगे।

अगले दिन अर्थात 23 मार्च को लोग सड़कों पर निकल पड़े। कोरोना जैसे जानलेवा वायरस के प्रति सामाजिक दूरी बरतने में लोगों की कोताही देख मोदी जी व्यथित हो गए। कई राज्यों ने उसी दिन लॉक डाउन कर दिया पर लोगों को बाहर निकलने से रोक न सके।

24 मार्च को पुनः जनता के सामने 8 बजे रु ब रु होकर प्रधानमंत्री महोदय ने रात 12 बजे से 21 दिनों के लिए पूर्ण लॉक डाउन की घोषणा कर दी। रेल सेवायें बन्द की गईं। हवाई यात्रा पर रोक लग गई। पूरे देश से मोदी जी ने करबद्ध प्रार्थना की कि लोग घरों से न निकलें और कोरोना को थर्ड स्टेज पर जाने से रोकें।

चारों ओर किराना का सामान और सब्जियां लेने की होड़ लग गयी जैसे नोटबन्दी के समय नोट बदलने की होड़ लगी थी।

25 मार्च की सुबह वातावरण में पूर्ण शांति थी। चिड़ियों का चहकना सुनाई पड़ रहा था। घरों में बाइयों के प्रवेश पर भी पाबन्दी लगी। नतीजा....

तभी 26 मार्च एक अनहोनी हो गयी...दिल्ली में रहने वाले विभिन्न प्रदेशों के मजदूर वर्ग अचानक बस अड्डों पर जमा होने लगे। इस तरह की भीड़ देखकर सबकी रूह काँप गयी। एक दूसरे के पास खड़े लोग न जाने कितनों को बीमार करेंगे। सब अपने घरों को लौटना चाहते थे क्योंकि कहीं मकान का किराया समस्या बन गयी और कहीं खाने के सामान का अभाव था। ये दिहाड़ी मजदूर अचानक एक जगह कैसे इकठ्ठे हो गए यह सोचने का विषय है जिसपर यहाँ चर्चा करना उचित नहीं।

किसी तरह इस समस्या को निपटाया गया और उन्हें घर तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई।

फिर तीन दिन थोड़ी शांति रही। संक्रमित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई। किन्तु सब कुछ इतना आसान नहीं होता है। 31 को पता चला कि मरकज़ में हजार से ऊपर लोग छुपे हुए थे जिसमें दो सौ लोगों के करीब संक्रमित थे। अब कोरोना को थर्ड स्टेज पर जाने का खतरा बढ़ गया क्योंकि बाकी लोग भारतीय ही थे और अपने प्रदेश लौटकर जाने कितनों को संक्रमित करने वाले थे। सारे लोगों को क्वारंटाइन अर्थात निगरानी के तहत रखा गया है।

--ऋता शेखर मधु

अगली पोस्ट में इस वायरस से बचने के लिए कारगर उपाय, लॉकडाउन में घरों में क्या हो रहा और इस वायरस को लेकर तरह तरह के चुटकुले

ध्वजा उठी हनुमान की

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Dharm News In Hindi : Ram Navami 2020 Date Time | Lord Ram Janm ...

अवतरण दिवस है राम का
ध्वजा उठी हनुमान की
वाल्मीकि ने कथा कही
जग में भक्तों के मान की

कठिन थे दिन वनवास के
सघन खिंची थी लक्षमण रेखा
सरल सिया न समझ सकी
पूर्वनियोजित विधि का लेखा
याचक को लौटा न सकी
सोच बढ़ी थी स्वाभिमान की

हरी गई सिय लोप हुई
बिलख पड़े रघुनंदन भाई
जाने कौन दिशा में ढूँढे?
पवनपुत्र ने की अगुआई
अवनि अम्बर एक हुए
विस्तार बढ़ी उनके उड़ान की

विघ्न की सुरसा मुँह फाड़े थी
चतुर भक्त ने दे दी मात
उपवन उपवन घूम घूम कर
सिय माता से कर ली बात
धू धू कर लंका जली
राख उड़ी दसमुख के शान की

श्रीराम सिय और लखन संग
लौट अवधपुरी को आए
अंजनिपुत्र चरण में बैठ
रामभक्त हनुमान कहाए
युग बीता सदियाँ बीतीण
गूँज उठी है राम गान की

युग आए सतजुग के जैसा
दृग दृग में यह स्वप्न दिखे
गणपति बन कर अर्धदंत से
ग्रंथ कहो अब कौन लिखे
कहाँ भक्त हनुमान सरीखा
टाले जो विपदा विधान की

अवतरण दिवस है राम का
ध्वजा उठी हनुमान की
--ऋता शेखर 'मधु'

लॉकडाउन २- एक दीया अखंड एकता के नाम

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पूरे विश्व के लिए अभी बहुत कठिन दौर है| हमारा देश कोरोना वायरस के चपेट में आकर लॉकडाउन में चल रहा है| कोरोना वायरस श्वसन तंत्रिका संबंधी रोग है| यह लाइलाज तो नहीं पर बहुत ही खतरनाक है| इसका संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा कि महामारी का रूप धारण कर चुका है| हर तरह की यात्रा सेवा रोक दी गई है| ये संपूर्ण लॉलडाउन २४ तारीख की र्त्रि में बारह बजे से लागू किया गया है| इससे संक्रमित व्यक्ति जिस किसी के संपर्क में आता है वह संक्रमित हो जाता है| वह संक्रमित फिर जिसके संपर्क में आता है वह संक्रमित हो जाता है और पता भी नहीं चलता| लक्षण पता चलने में एक सप्ताह लगता है और ञिर पूरी तरह से ठीख हो जाने में चौदह दिन से ऊपर लग जाते हैं|
यह भारत का सौभाग्य है कि उसे प्रधानमंत्री के रूप में माननीय नरेंद्र मोदी जैसा नेता मिला है| उनके दृढ़ निर्णय से संपूर्ण देश को स्थिर कर दिया| सब घरों में कैद हो गये| किंतु सिर्फ घर में ही रहना काफी नहीं...हर आधे घंटे पर साबुन से बीस सेकेंड तक हाथों को अच्छे से धोना है| बाहर से आए दूध के पैकेट, सब्जियाँ वगैरह धोने का काम बढ़ गया| यदि बाहर लिफ्ट का इस्तेमाल करते हैं तो उस हाथ से मुँह, आँख और कान न छूएँ क्योंकि कोरोना इन्हीं रास्तों से शरीर में प्रवेश करता है|
सरकार के प्रयासों से भारत संक्रमण के तीसरे स्टेज में जाने से बच गया| इस बीच बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर का मामला भी सामने आया | कनिका विदेश से लौटी थीं और उन्हें चौदह दिनों तक आइसोलेशन में रहना था| उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और कई जगहों पर म्युजिक शो किए| उनकी इस लापरवाही की वजह से बहुत सारे लोग शक के घेरे में आ गए| यह पोस्ट लिखे जाने तक कनिका ठीक होकर अस्पताल से डिसचार्ज हो चुकी हैं|
 आज ६ अप्रैल तक में संक्रमित लोगों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाने के कारण देश में कई हॉट स्पॉट बन गये||
हॉट स्पॉट-- वैसे स्थानों को चिन्हित करना जहाँ एक भी कोरोना पॉजिटिव मरीज पाए गए हों|

पिछले पोस्ट में हमने मरकज के बारे में लिखा था| पन्द्रह मार्च को मरकज निजामुद्दीन में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे| वहाँ से कई भारत के अन्य राज्यों में चले गये और बड़ी तादाद वहीं पर छुपी रह गयी| चूँकि उनकी पहचान हो गई इसलिए भारत तीसरे स्टेज में जाने से बच गया| मकरज में जुटी तब्लीगी जमात में काफी लोग संक्रमित पाए गए| उन सबको क्वरंटाइन किया गया| जो अन्य राज्यों में गये हैं उनमें कुछ की पहचान होना बाकी है| किंतु संख्या का चार हजार से ऊपर पहुँच जाना चिन्ता का विषय है|

इस बीच चार अप्रैल को मोदी जी ने एक विडियो जारी किया | उसमें उन्होंने विनती की कि देश के सभी लोग छह अप्रैल को नौ बजे रात में नौ मिनट के लिए अपने घरों के दरवाजे पर या बालकनी से प्रकाश की एकजुटता से देश में सकात्मक ऊर्जा का संचार करें| इसके लिए वे दीया, टॉर्च, मोबाइल की फ्लैश या मोमबत्ती...कुछ भी ले सकते हैं| यह दीया देश सेवा में जुटे देश सेवकों के लिए आभार होगा| यह दीया संदेश होगा कि सारे देशवासी साथ साथ हैं| प्रकाश से निराशा का तम दूर हटेगा|

Image may contain: one or more people, night and fire

इस आहवान पर पूरा भारत दीपावली की तरह जगमगा उठा|
एकजुटता का सुन्दर समागम प्रदर्शित हुआ| कई दिनों से बंद देशवासियों के चेहरों पर मुस्कान आ गई|
ईश्वर करे कि जल्द से जल्द इस आपात स्थिति से हम बाहर निकल सकें|

इस बीच दूरदर्शन ने पुराने लोकप्रिय धारावाहिक रामायण , महाभारत, व्योमकेश बख्शी , शक्तिमान, बुनियाद, देख भाई देख का पुनः प्रसारण शुरु कर दिया है जिससे समय बिताना आसान हो गया| सूचना एवं प्रसारण मंत्री का यह कदम सराहनीय है|

कोरोना काल-१ सखी आस दीपक जलाना है

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Coronavirus End one day But will change the world in many ways ...

घरों में रहें, ये बताना है
हमें वायरस को हराना है

कहें लोग, है जीव बाहर का
नहीं यान से घर बुलाना है

विषाणु खतरनाक हैं देखो

उसे तो सभी को मिटाना है

बिना हाथ धोए न छूना तन
वहीं पर उसका ठिकाना है

घुसे कंठ में आँख कानों से
इसी रास्ते को छुपाना है

करे जो ख़ुराफ़ात कोरोना
गरम नीर पीकर डुबाना है

न नजदीक जाएँ किसी के भी
सभी को नियम यह निभाना है

करें सैनिटाइज हरिक चीजें

उसे इस तरह से भगाना है

वहीं आततायी बना कोविड
बना फेफड़ों का दिवाना है

हुए संक्रमित धैर्य रखना प्रिय
समय से उसे भाग जाना है

नहीं शर्म की बात है इसमें
समाधान से ही हटाना है

हुए लॉकडाउन प्रदेशों में
दवा खाद्य फिर भी जुटाना है

घरों से करें काम दफ़्तर के
हुआ आज कैसा जमाना है

मदद कर सकें हम गरीबों की
यही भाव मन में बिठाना है

यदि आस या पास हो कोई
बुलाकर उसे भी जिमाना है

भयंकर हुआ मौत का तांडव
सतर्क रह उसे भी घटाना है

ढकें मास्क से चेहरा अपना
हमें तो उसे बस छकाना है

लड़ाई चलेगी अभी लम्बी
सखी आस दीपक जलाना है 

जहर जो भरे जा रहे हैं मनु
अमृत से उसे भी हटाना है

नहीं प्रेम का काट दुनिया में
मिलेगी सफलता, दिखाना है

122 122 122 2
@ऋता शेखर 'मधु'

लॉकडाउन - मोदी जी की सप्तपदी

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     आज 14 अप्रैल 2020 को लॉक डाउन के 21 दिन पूरे हो चुके हैं। देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इस भयावह कोरोना काल में हरसम्भव जनता के सम्पर्क में रहे। आज सुबह 10 बजे उन्होंने तीसरी बार जनता को सम्बोधित किया। लॉक डाउन की अवधि 3 मई तक के लिए बढ़ा दी गयी है। नियम तोड़ने वालों के लिए आगामी 20 अप्रैल तक प्रशासन बहुत सख्त रहेगा।
मोदी जी का सम्बोधन जनता में नई ऊर्जा नई शक्ति का संचार करता है इसमें कोई शक नहीं। किन्तु एक बात और भी रहती है कि जनता उनके संबोधन में हमेशा एक धमाके जैसा कुछ होने का इंतेज़ार करती है ।यह नोटबन्दी धमाका का आफ्टर इफेक्ट जैसा लगता है। इस कोरोना काल में उन्होंने ताली बजाकर सब कोरोना योद्धाओं के लिए आभार प्रकट करवाया। दूसरी बार एक दिया जलाने को कहा। जनता का भरपूर समर्थन मिला।
आज उन्होंने बहुत पते की बात कही है।
चिकित्सा क्षेत्र में भारत से कई गुना आगे रहने वाले देश भी कोरोना को काबू में न कर सके जैसा भारत ने कर दिखाया। वे सभी देश भारत सरकार की कार्यकुशलता की दाद दे रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत से हैड्रोक्लोरोक्वीन दवा निर्यात करने की मदद मांगी और भारत यहाँ भी पीछे न रहा।
भारत विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला दूसरा देश है। 130 करोड़ आबादी वाले देश में सरकार के उचित निर्णय ने कोरोना को फैलने से रोक दिया, यह वाकई विशिष्ट कार्य है।
हालांकि यह दुख की बात है कि कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा कोरोना को फैलाने का दुष्कृत्य सोचनीय रहा। इस कारण से कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर सैकड़ा से हजार और अब 10 हजार से ऊपर चली गयी।
सरकार के सामने वायरस के साथ साथ तब्लीगी जमात के लोगों से निपटने की चुनौती भी आ गयी। चार दिन पहले निहंग समूह के एक व्यक्ति ने एक पुलिस अधिकारी का हाथ काट दिया जिसे साढ़े सात घण्टों की कठिन ऑपेरशन से जोड़ दिया गया। यहाँ पर एक अच्छी बात यह रही कि सिख समुदाय ने निहंगों के कुकृत्य के लिए सोशल मीडिया पर उनकी भर्त्सना की जो तब्लीगी जमात से संबंधित समुदाय अपने समुदाय के लिए न कर सकी।
देश पर आए संकटकाल में खाद्य दवा की दुकानीं खुली रहीं। रोजमर्रा की वस्तुएं मिलती रहीं।
अब बात करते हैं आज की घोषणा के बारे में। आज मोदी जी ने सात बातें कहीं और जनता से निवेदन किया कि वे उन सबका पालन करें। इसे सप्तपदी का नाम दिया गया।ये रहे वे सप्तपदी...
मोदी जी की सप्तपदी...3 मई तक के लिए
1 बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें
2 लक्ष्मण रेखा का पालन हो
3 इम्युनिटी के लिए आयुष मंत्रालय
4 आरोग्य सेतु app रखें
5 गरीब परिवार की देखरेख
6 सहकर्मी के प्रति संवेदना
7 कोरोना योद्धाओं का सम्मान
जनता से निवेदन किया गया कि आरोग्य सेतुनामक ऐप डाउनलोड करें। जब सब लोग इस ऐप को रखेंगे तो आसपास के कोरोना संक्रमित व्यक्ति की सूचना मिल जाएगी। इससे सावधानी बरतने में आसानी हो जाएगी।
        अभी हम सभी को ३ मई तक घर में रहना है और कोरोना को मात देना है। घर में रहिये, कहानियां पढ़िए, बच्चों के साथ खेलिए, नई नई डिशेज आजमाइए। टेलिविज़न पर रामायण, महाभारत ,व्योमकेश बख़्शी ,बुनियाद, शक्तिमान, श्रीमानजी श्रीमती जी, सर्कस जैसे धारावाहिकों का पुनरप्रसारण देखिए।
आशा है की लॉक डाउन की दूसरी पारी में कोरोना पर नियंत्रण करने में सरकार के साथ जनता सफल हो जाएगी और सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा।
कुछ जिलों के प्रयास सराहनीय रहे हैं।
@ऋता शेखर मधु

सेल्फ़ डिपेंडेंट

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सेल्फ़ डिपेंडेंट...अर्थात आत्मनिर्भर होना|
परावलंबन का संबंध अधिकतर स्त्रियों और सेवक वर्ग से जुड़ा होता है|
इस सेल्फ़ डिपेंडेंट की रेंज क्या है, इसे कोरोना काल ने सुस्पष्ट कर दिया है| 
सेल्फ़ डिपेंडेंट...कब कब ?
१.शारीरिक रूप से
२.आर्थिक रूप से
३.मानसिक रूप से 
४.सामाजिक रूप से
५...................
१.शारीरिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट रहने की कामना बुजुर्गों में होती हैं| वे चाहते हैं कि अपनी रोजमर्रा का काम वे खुद कर पाएँ| उनको किसी को आवाज न लगानी पड़े|| उन्हें अक्सर यह बोलते हुए सुना जा सकता , "भगवान हमें चलते फिरते उठा लेना|" 
शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति भी अपना काम खुद करना पसंद करते हैं और किसी की मदद कम से कम लेना चाहते हैं|
२.आर्थिक रूप से सेल्फ़ डिपेंडेंट होने की कामना युवा वर्ग को  होती है| एक निश्चित उम्र के बाद आर्थिक डिपेंडेंसी उन्हें खलने लगती है| इसे लड़कियों के मामले में भी खूब प्रयोग में लाया जाता है| पहले लड़कियों के लिए सिर्फ़ पढ़ना लिखना जरूरी समझा जाता था| किन्तु उनकी दुर्दशा देखकर धीरे धीरे किसी नौकरी या व्यवसाय से जुड़कर उन्होंने  आर्थिक रूप से खुद को सेल्फ़ डिपेंडेंट बनाया| हालांकि अभी भी प्रतिशत बहुत अधिक नहीं है फिर भी कोशिशें निरंतर जारी हैं|
वृद्धों को पेंशन मिलना भीआर्थिक सेल्फ डिपेंडेंट होना है|
३. मानसिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट होने का अर्थ है निर्णय लेने की क्षमता होना|पर किसी कारण से यह डिपेंडेंसी भी झेलनी पड़ती है|
४. सामाजिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट होने में आप सामाजिक कार्यों में बिना किसी हस्तक्षेप के अपना योगदान दे सकते हैं| यह सोचने और अवलोकन की बात है कि क्या हम सभी इस मामले में स्वतंत्र हैं|

अब बात करते हैं कोरोना काल की जिसने नए सेल्फ डिपेंडेंट को जन्म दिया है|...उसके पहले सामाजिक सोच के कुछ उदाहरण देती हूँ|
दृष्य १
"किरण, लड़का बाहर जा रहा, उसे कुछ सिखा दे ताकि वक्त बेवक्त खुद बना कर खा सके"
अरे क्या बुआ, मैं तो कुछ नहीं सीखने वाला| अब किस चीज की कमी है बाजार में, ऑनलाइन मँगाओ और खाओ|""
"हाँ दीदी, ये ठीक कह रहा| यहाँ तो कभी किसी ने खाना भी खुद निकाल कर न खाया है|"
दृष्य २
"बिटिया, पढ़ाई लिखाई के कारण रसोई का काम नहीं सीख सकी| अब नौकरी पर जा रही| कुछ तो पकाना सीख ले|"
"क्या चाची, कमाएँगे, कुक रखेंगे और मस्ती से रहेंगे|"
"बिटिया, बेला बखत कोई नहीं जानता| कभी खुद बनाना पड़े तो| "

कहने का अर्थ यह रहा कि रसोई युवा पीढ़ी के लिए कोई आवश्यक जगह नहीं जबकि रसोई न हो तो दुनिया टिकेगी कैसे|
कल दिल्ली में एक पिज्जा डिलिवरी बॉय का कोरोना पॉजिटिव पाया जाना दिल्ली में हड़कंप मचा गया| उसने सत्तर घरों में पिज्ज़ा दिया था| 
अब सोचने वाली बात यह है कि लोग इतने लापरवाह कैसे हो गये| जब पूरी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग की बात हो रही, बाहर से सामान लेने पर भी पाबंदी है| बाहर से आने वाले पैकेट और सब्जियाँ सभी एहतियात से धोकर प्रयोग कर रहे, ऐसे समय में यह ऑर्डर कैसे प्लेस किया गया और लोग भी किस प्रकार हिम्मत कर पाए|
कल फेसबुक पर एक पोस्ट में मैंने यही बात पूछी तो यह बात सामने आई कि जो बच्चे घर नहीं जा पाए ्उन्होंने मजबूरी में पिज्जा मँगवाया होगा| इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता | 
तो क्या वे बच्चे सेल्फ डिपेंडेंट नहीं थे|
जवाब यही हो सकता है ...कि नहीं थे| उन्होंने कभी यह विचार भी नहीं किया होगा कि कभी इस तरह की नौबत आ सकती है वरना  इंडक्शन या बॉयलर तो रख ही सकते थे| पिज्जा मँगवाने वाले इन सब चीजों को एफोर्ड भी कर सकते हैं|
सेल्फ डिपेंडेंसी में यहीं पर मात खा जाएँगे बच्चे यदि आरम्भ से ही पढ़ाई के साथ साथ उनसे रसोई के हल्के फुल्के काम करवाने की ट्रेनिंग न दी जाए| कोरोना ने बता दिया कि अब वैसी रईसी का महत्व नहीं जो काम न करना जाने| साधारण सी खिचड़ी न बना सकें, एक रोटी न बना सकें|
वो माएँ जो बेटे-बेटी से थोड़ा भी काम करने को प्रेरित नहीं कर पातीं उनको भी सोचना होगा|
५ अब सेल्फ डिपेंडेंट होना है रसोई में...कोरोना हमेशा नहीं रहने वाला...पर जब भी माँ न हों घर में, पत्नी मायके गई हो तो बाहर का खाना न खाएँ| खुद बनाएँ और खाएँ|
बाहर का खाना बहुत खास समय के लिए रखें...सेल्फ डिपेंडेंट बनें|
@ऋता शेखर 'मधु'

वह एक रात-कहानी

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भुतिया हवेली की दास्ताँ - Horror Stories

मित्रों, एक प्रयास हॉरर कहानियाँ लिखने का...त्रुटियाँ अवशाय बताएँ जिससे आगे सुधार कर सकूँ| अच्छी लगे वह भी बताएँ उत्साहवर्धन हेतु|

वह एक रात

( भुतही हवेली पर आधारित)

नेहा को अपने गाँव पहुँचने में देर हो गई थी | ट्रेन पाँच घंटे देर थी जिस कारण से जो ट्रेन शाम सात बजे पहुँचने वाली थी वह रात के ग्यारह बजे पहुँची थी| नेहा ने घर में बताया नहीं था कि वह आ रही है| बताती तो बुआ परेशान हो जाती| नेहा शहर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी| जब भी तीन या चार दिनों की छुट्टी मिलती वह अपनी बुआ के पास गाँव चली आती थी| बचपन में ही माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी, बुआ ने ही उसे रखकर पाला था| बुआ के दो बच्चे थे| उनके साथ ही रहती हुई, लड़ती झगड़ती, लाड़ लगाती बड़ी हुई थी| दोनों भाई- बहन बाहर के शहरों में नौकरी करते थे | फूफा जी नहीं थै| बुआ गाँव छोड़कर जाना नहीं चाहती थीं| नेहा पूरे गाँव की लाडली थी | सबके घरों में उसका आना जाना लगा रहता था | उसका विनोदी स्वभाव सभी को पसंद था|

ऐसी ही छुट्टी में वह गाँव आई थी रात के ग्यारह बजे चारो और सन्नाटा हो चुका था| नेहा बहुत सामान लेकर नहीं आती थी | पीठ पर एक बैग होता जिसमें ट्रेन में पढ़ने के लिए दो चार किताबें होतीं, पानी की बॉटल होती और रास्ते के लिए कुछ स्नैक्स होते थे| कपड़े तो लेती नहीं थी | बुआ के घर कपड़े लेकर जाने की आवश्यकता नहीं होती थी|

रेलवे स्टेशन से घर नजदीक ही था तो पीठ पर बैग लादे वह पैदल ही घर की ओर आने लगी| गाँव में प्रवेश करते ही उसे लगा कि कोई उसके पीछे- पीछे चल रहा है पलटकर देखी तो गाँव में सेठ की हवेली में रहने वाली उनकी बहु जैसी लगी|

“अरे भाभी आप! इतनी रात को बाहर क्या कर रही हो|”

उसने नेहा का हाथ पकड़ लिया और बोली,”हवेली चलो”

“पर क्यों, बुआ के घर जाऊँगी न|”

“नहीं, इतनी रात लड़कियों का बाहर चलना ठीक नहीं | हवेली में रात बिता लो, सवेरे चली जाना|”

“ठीक है भाभी ”, कहकर वह साथ साथ चलने लगी| रास्ते भर दोनों चुप रहे| नेहा ने कुछ बातें करने की कोशिश की तो भाभी ने उत्तर नहीं दिया|

हवेली पहुँच कर भाभी ने कहा कि नेहा हाथ मुँह धो ले उसके बाद वह खाना लगाती है| नेहा वॉशरूम चली गई| सब कुछ करीने से रखा हुआ था| नेहा ने ठंडे पानी से हाथ पैर धोया, चेहरे पर छींटे मारे और बाहर आ गई| तब तक भाभी ने डायनिंग टेबल पर खाना लगा दिया था| खकाना में बहुत सारी डिशेज बनी हुई थीं| नेहा ने सबसे पहले गाजर के हलवे पर हाथ साफ किया| फिर अन्य चीज़ें खाने लगी| भाभी लगातार वहीं पर हल्के घूँघट में बैठी रही| नेहा ने जब खाना खा लिया तो उसकी फेवरिट आइसक्रीम भी आई| उसे भी नेहा ने खाया | उस दौरान दोनों ही चुप रहे| अचानक नेहा ने पूछा, “भैया कहाँ हैं भाभी, और अंकल जी भी नहीं दिख रहे|”

“वो सहारनपुर गये हैं| कल ही उनकी वापसी है ट्रेन से| अच्छा, अब तुम कमरे में जाकर सो जाओ| मैं भी जाती हूँ| सवेरे अपने घर चली जाना|”

“ओके भाभी”, कहकर वह चली गई|

थोड़ी ही देर में वह गहरी निद्रा में थी| अचानक खटपट की आवाज से उसकी नींद खुल गई | उसे लगा जैसे किचेन का दरवाजा खुला और कोई वहाँ घुसा|

‘आधी रात को कौन हो सकता है, कहीं कोई चोर तो नहीं’, यह सोचकर वह धीरे से उठी और किचेन की ओर गई|

वहाँ कोई नहीं था, पर बेसिन का नल खुला था| कोई नजर नहीं आ रहा था किन्तु बरतन धोकर रैक पर रखे जा रहे था| नेहा बेआवाज खड़ी रही | उसके रोंगटे खड़े हो गए जब उसने देखा कि अचानक गैस स्टोव जला और किसी ने रोटियाँ सेंकनी शुरु कीं| बस इतना ही पता चल रहा था था कि रोटियाँ बेली जा रही थीं, तवे पर जा रही थीं और फिर कैसरोल में रखी जा रही थीं| वह भाभी के कमरे की ओर गई पर वह बंद था| उसने आवाज करना उचित नहीं समझा| वापस आकर बिस्तर पर सो गई| रसोई में खटपट जारी थी| कुछ देर बाद फिर से दरवाजा खुला और कोई चला गया| नेहा चुपके से उठी और किचेन में गई| सुबह के नाश्ते जैसा खाना करीने से रखा था| उसने सभी कैसरोल को ढक्कन उठा- उठाकर देखा| रोटियों के साथ पनीर की सब्जी, खीर, दही , रायता सब कुछ था| नेहा वापस कमरे में आ गई| थोड़ी देर में उसकी आँख लग गई| सुबह सुबह ही उसे घर जाना था किन्तु उसकी नींद नहीं खुली| कमरे में धूप आ चुकी थी| चिड़ियों की चहचहाहट मन को भा रही थी| उसने आँखें खोलीं| सामने दीवार घड़ी सुबह के आठ दिखा रही थी| अचानक नेहा को रात की घटना याद आ गई| उसके मस्तक पर पसीना चुहचुहा गया| बिना चप्पल पहने वह कमरे से बाहर झाँकने लगी| उसने देखा कि डायनिंग टेबल पर खाना लगा हुआ था| कुछ लोग खा भी रहे थे| पर कौन...कोई दिख नहीं रहा था और रोटियाँ प्लेट से घटती जा रही थीं| दस मिनट में सारी प्लेटें खाली थीं| लगता है खाने वाले तीन लोग थे क्योंकि तीन प्लेट ही खाली हुई थी| बाकी प्लेटें पलट कर रखी हुई थीं|

“आओ नेहा, तुम भी नाश्ता कर लो”, अचानक भाभी कहीं से प्रकट हो गईं

“भाभी, अब मैं घर जाना चाहती हूँ|”नेहा ने कँपकँपाती आवाज़ में कहा|

“नाश्ता कर लो फिर जाना,”लहजा थोड़ा आदेशात्मक था जिसे नेहा इंकार नहीं कर सकी| उसने खाना खाया पर आज उसे कुछ भी रुचिकर नहीं लग रहा था| किसी तरह पानी पीकर गटक गई और उठ खड़ी हुई| भाभी कहीं नहीं दिख रही थीं| उसने कहा, “भाभी जा रही हूँ”, पर किसी ने प्रत्उत्तर नहीं दिया| वह अपना बैग लेकर बाहर जाने लगी| बाहर का दरवाजा अपने आप ही खुल गया जैसे वहाँ पर कोई खड़ा था| उसने एक नजर ड्राइंग रूम पर डाली| सामने दीवार पर अंकल जी और भैया की बड़ी सी फोटो लगी थी और उनपर खुशबूदार चंदन की माला लटक रही थी| नेहा बेहोश होते होते बची| सारी शक्ति समेटकर वह बड़े बड़े डग भर दरवाजे से बाहर निकली | उसे लगा कि किसी ने दरवाजा बंद किया था| उसे पलटकर देखने की हिम्मत नेहा को न हुई|

वह तेजी से घर की ओर बढ़ी जा रही थी| उसने अहाते का गेट खोला और अन्दर घुसी| बुआ तुलसी को जल दे रही थीं| नेहा को देखते ही बुआ का चेहरा खिल गया|

“कब ई बेटी, आने से पहले बताना भी जरूरी नहीं समझती,” बुआ ने लाड़ लगाते हुए कहा|

“कल रात ही आई थी बुआ”,”बुझी हुई आवाज में नेहा ने कहा |

नेहा का चेहरा उड़ा हुआ था, बुआ को यह भाँपते देर न लगी |

“कल रात ही आई तो अब तक कहाँ थी”, किसी आशंका ने बुआ को घेर लिया|

“सामने अंकल जी की हवेली में थी, वहीं रात का खाना खाया| सुबह भी भाभी ने नाश्ता भी करवा दिया| किंतु भाभी ने यह क्यों कहा कि भैया और अंकल आज सहारनपुर से आने वाले हैं जबकि आते आते मैंने देखा कि भैया की फोटो पर माला लगी थी|”

“ओह, एक महीने पहले की बात है कि दोनों बाप बेटे ट्रेन से सहारनपुर से आ रहे थे| तेरी भाभी स्टेशन पर उनको लाने गई थी| अभी ट्रेन कुछ दूर पर थी खी एक तेज रफ्तार ट्रेन से उसकी टक्कर हो गई| उसी दुर्घटना में दोनों चल बसे| यह देखते ही भाभी का करुण क्रंदन गूँजा ‘मैं आपके बिना नहीं जी सकती” कहते हुए वह दूसरी पटरी पर आ रही ट्रेन के सामने आ गई और वह भी चली गई|”

“ओह”, झुरझुरी सी उठी नेहा के शरीर में|

“तब से वह हवेली भुतही हो गई| वहाँ कोई आता जाता नहीं|”

“लेकिन बुआ, वह हवेली अन्दर से साफ सुथरी है| वहाँ खाना भी पकता है तभी तो भाभी ने खिलाया|”

“भाभी ने खिलाया”, कहते हुए बुआ की तंद्रा टूटी ”सही सलामत आ गई मेरी बच्ची”कहते हुए बुआ ने नेहा को गले से लगा लिया|

भूत प्रेत पर विश्वास न करने वाली नेहा अब अविश्वास नहीं कर पा रही थी|

ऋता शेखर ‘मधु’

भीड़ का निर्माता-लघुकथा

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birds in the sky | Tumblr
भीड़-निर्माता

“रोहित! इधर आओ, ये देखो, आसमान में अचानक इतने सारे पक्षी उड़ने लगे| सब कितने परेशान दिख रहे न| लगता है किसी ने इनका ठिकाना ही उजाड़ दिया हो| और ये आवाज कैसी आ रही, सुनो तो,” पत्नी प्रिया ने रोहित को बालकनी में बुलाकर कहा|

“अरे , ये तो पेड़ पर पेड़ काटते जा रहे| वो देखो, सामने उस जंगल के बहुत सारे पेड़ काट दिये| बिजली से चलने वाली कुल्हाड़ी की आवाजं है यह”, चौदहवें तल्ले से ध्यान से जंगल को देखते और आवाजों को सुनते हुए रोहित ने कहा|

“ओह! अब ये कहाँ जाएँगे बेचारे| इतने पंछियों को बेघर करने का श्राप लगेगा उन्हें| रोहित कुछ करो न! किसी को तो फोन करो जो आकर रोके उन्हें,” बेचैन सी प्रिया इधर- उधर टहलने लगी|

“हाँ, अभी फोन करता हूँ,” कहकर रोहित कमरे में चला गया|

तभी कूकर ने सीटी मारी और प्रिया किचेन में गैस बन्द करने जा रही थी कि कमरे से आती रोहित की आवाज सुनकर रुक गई और सुनने लगी|

“रघुवीर, उस लिस्ट को रद्द कर दो जिसमें मिल के पाँच सौ मजदूरों को नौकरी से हटाने की बात कही गई है| ये लौकडाउन कभी न कभी तो खत्म होगा ही, हम उन्हें बिना काम के भी तनख्वाह देते रहेंगे |’

प्रिया गहरी साँस लेती किचेन की ओर चल दी| उसकी बेचैनी थम चुकी थी|

@ऋता शेखर ‘मधु’

२५/०५/२०२०
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