आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
नील मेघ सा रंग है तेरा गहरी झील सी आँखें
तेरे रक्त अधर पर मैं रहस्य मुस्कान निखार दूँ
आ तुझे मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
तेरे रक्त अधर पर मैं रहस्य मुस्कान निखार दूँ
आ तुझे मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
ओ नील गगन के टिमटिम तारे कौन सा रंग है तेरा
तेरे नटखट कौतुक किरणों में रंग रुपहले निखार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
तेरे नटखट कौतुक किरणों में रंग रुपहले निखार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
जित देखूँ तित ही बहार है अगनित रंग हैं तेरे
वसुधा के हरित आँचल में बहुरंगे कुसुम पसार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
वसुधा के हरित आँचल में बहुरंगे कुसुम पसार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
रंगों के मनभावन छिटकन से तितली के पंख सजे
कलियों के संग रंग राग भर उनमें मैं विस्तार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
कलियों के संग रंग राग भर उनमें मैं विस्तार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
जब जब रोता है अम्बर इक इंद्रधनुष उगता है
सात रंगों के दामन में मैं खुशियों को विस्तार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
सात रंगों के दामन में मैं खुशियों को विस्तार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
जितना ऊपर अम्बर है उतना ही गहरा है सागर
निस्सीम धरा पर सीप मंजरी का अतुल भंडार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
निस्सीम धरा पर सीप मंजरी का अतुल भंडार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
जब जब आती रात अमा की कोई रंग न सूझे
स्याह रंग की कालिख को जगजीवन से निसार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
.............ऋता शेखर 'मधु'
स्याह रंग की कालिख को जगजीवन से निसार दूँ
आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ
कान्हा तेरी प्रीत को मैं रंगों से सँवार दूँ
.............ऋता शेखर 'मधु'