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Channel: मधुर गुँजन
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हम की महती भावना, मानव की पहचान

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१.

मैं मैं मैं करते रहे, रखकर अहमी क्षोभ

स्वार्थ सिद्धि की कामना , भरती मन में लोभ

भरती मन में लोभ, शोध कर लीजे मन का

मिले ज्ञान सा रत्न, मान कर लें इस धन का

करम बने जब भाव, धरम बन जाता है मैं

जग की माया जान, परम बन जाता है मैं

२.

तुम ही मेरे राम हो, तुम ही हो घनश्याम

ओ मेरे अंतःकरण, तुम ही तीरथ धाम

तुम ही तीरथ धाम, भक्ति की राह दिखाते

बुझे अगर मन-ज्योत, हृदय में दीप जलाते

थक जाते जब पाँव, समीर बहाते हो तुम

पथ जाऊँ गर भूल, राह दिखलाते हो तुम

३.

हम की महती भावना, मानव की पहचान

हम ही विमल वितान है, तज दें यदि अभिमान

तज दें यदि अभिमान, बने यह पर उपकारी

दीन दुखी सब लोग सहज होवें बलिहारी

कड़ुवाहट को त्याग, मृदुल आलोकित है हम

अपनाकर बन्धुत्व, वृहद परिभाषित है हम

ऋता शेखर 'मधु'

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