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192..कसीदाकारी












आज दर्द का इक टुकड़ा 
फ़लक में उड़ा दिया हमने
चंद ख्वाबों से हँसकर
पीछा छुड़ा हमने
चाँद से चुराकर एक किरन
जीवन की चादर पर
कसीदाकारी की है
बड़े जतन से
समेटकर शबनम
यादों की रुनझुन पायल पर
मीनाकारी की है
होठों पर सजाकर
मुसकान की कलियाँ
खुश्बुओं को ओढ़ने की
अदाकारी की है
ऐ जिन्दगी,
तुम भी तो हम इंसानों के संग
तरह तरह की बाजीगरी दिखाती हो
तुम्हारी प्रतिद्वंदि बन कर
तुमसे टक्कर लेने को
फिर क्यूँ न हम भी कारीगरी कर जाएँ|

.........................ऋता

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