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Channel: मधुर गुँजन
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लघुकथा- भविष्यतकाल

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भविष्यतकाल


'वाह ममा, आज तो आपने कमाल की पेंटिंग बनाई है,'अपनी चित्रकार माँ की प्रशंसा करते हुए तुलिका बोल पड़ी|
'अच्छा बेटा, इसमे कमाल की बात क्या लगी तुम्हें यह भी तो बताओ,' 

ममा ने बिटिया की आँखों में देखते हुए पूछा|
'देखिए ममा, ये जो प्यारी सी लड़की बनाई है न आपने, वह तो मैं ही हूँ| उसके सामने इतनी सारी सीढ़ियाँ जो हैं वे हमारे सपने हैं जो हम दोनों को मिलकर तय करने हैं, ठीक कहा न ममा'तुलिका ने मुस्कुराते हुए कहा|
'बिल्कुल ठीक कहा बेटे, अब इन सीढ़ियों की अंतिम पायदान को देख पा रही हो क्या'ममा ने पूछा|
'नहीं ममा, क्या है वहाँ?'
'वहाँ पर तुम्हारे सपनों का राजकुमार है जो तभी नजर आएगा जब तुम पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाओगी'ममा ने हल्के अ़दाज़ में कह दिया|
'ममा, जब मैं घोड़े पर चली जाऊँगी तब भी तुम ये सीढ़ियाँ मत हटाना,'एकाएक थोड़े उदास स्वर में तुलिका कह उठी|
'ऐसा क्यों कह रही बेटा,'ममा भी थोड़ी मायूस हो गई|
'यदि मैं खुद गिर गई, या उस राजकुमार ने धक्का देकर गिरा दिया तो मैं इन्हीं सीढ़ियों से वापस लौट सकूँगी, इन्हें हटाओगी तो नहीं न ममा', तुलिका सुबक उठी|
'नहीं बेटा, नहीं हटाऊँगी,'ममा ने तुलिका को गले लगाते हुए कहा|
ऋता शेखर 'मधु'

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