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Channel: मधुर गुँजन
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मन सबका है एक सा- दोहा गीतिका

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दोहा गीतिका

रंग बिरंगे पुष्प हैं, बगिया के आधार।

मिलजुल कर मानव रहें, सुन्दर हो संसार।।


तरह तरह की बोलियाँ, तरह तरह के लोग।

मन सबका है एक सा, सुखद यही है सार।।


मंदिर में हैं घण्टियाँ, पड़ता कहीं अजान।

धर्म मज़हब कभी कहाँ, बना यहाँ दीवार।।


दान पुण्य  से है धनी, अपना भारत देश।

वीर दे रहे जान भी, जब जब लगी पुकार।।


यहाँ कृष्ण का प्रेम है, यहीं राम का धैर्य।

जगपालक जगदीश हैं, शिव करते संहार।।


चैती से ही चैत्र है , होली से है फाग।

आल्हा ऊदल ने कभी, भरी यहाँ हुंकार।।


अतिथि यहाँ पर देव हैं, पितरन पाते मान।

कोविड औषध बाँटकर, बना वतन दिलदार।।

----ऋता शेखर 'मधु'


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