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माँ की माँ

 एक  माँ

जो बन चुकी होती है

माँ की भी माँ

मतलब

माँ बन चुकी बहू बेटी की माँ

जी लेती है 

अपने बच्चों का बचपन

अक्सर मिलाती है 

उस समय को इस समय से

जब आज की माएँ

कड़ी आवाज में भी

बच्चों को कुछ नहीं कहतीं

उसे याद आता है

अपना उठा हुआ हाथ

जो उठते थे देर तक सोने के लिए

समय पर पढ़ाई के लिए नहीं बैठने पर

जब वह देखती है 

नाती पोतों के नखरे 

उसे याद आती है

दूध रोटी

या लौकी पालक

जिसे खिलाकर ही छोड़ती थी

जब वह देखती है

बस एक डिमांड पर

नई कॉपी 

नए जिओमेट्री बॉक्स आते

उसे याद आता है

एक ही किताब को सम्भालना

जो काम आते थे छोटे को

दो या चार बार पहने गए

बच्चों के नए कपड़े

जब किनारे धर देती हैं बेटियाँ

तब माँ की माँ याद करती है

होली के कपड़े

दशहरे तक चलते हुए

पैसे तब भी थे

किन्तु साथ ही होते थे 

संयुक्त परिवार

नए बनाने हों तो

सभी के बनेंगे

यह अवधारणा जोड़ती थी

रिश्तों को, परिवार को

वह माँ की माँ

आंखों पर हाथ धरे आज भी

जाने क्या क्या ढूँढती है

उसके अनुभव

या तो हँसकर टाल दिए जाते

या शिकार हो जाते उपेक्षा के

वह माँ की माँ

आज भी समझौते कर लेती है

नए जमाने की माँ से

लेती नहीं है पंगा

उसकी हाँ में हाँ मिलाती

चुपके से देती है अपने सुझाव

बाद में जब मिलती है शाबासी

वह देती है एक सहज मुस्कान

मन ही मन बोलती हुई

ओल्ड इज गोल्ड बेटा 😊

ऋता.....


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