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Channel: मधुर गुँजन
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क्षणिकाएँ

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क्षणिकाएँ

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१.

आँधियाँ चलीं

दो पँखुरी गुलाब की

बिखर गईं टूटकर

मन पूरे गुलाब की जगह

उन पँखुरियों पर 

अटका रहा|

2

रेगिस्तान में

आँधियों ने मस्ती की

रेत से भर गई थीं आँखें

आँखों पर 

होने चाहिये थे

चश्मे


3

हवा स्थिर थी

जब रौशन किया था 

एक दीया

मचल गई ईर्ष्यालु आँधी

और 

लौ को हाथों की ओट

दे दिया हमने 

--ऋता


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