
मन पाखी पिंजर छोड़ चला
मन पाखी पिंजर छोड़ चला।
तन से भी रिश्ता तोड़ चला ।।
जीवन की पटरी टूट गयी ।
माया की गठरी छूट गयी ।
अब रहा न कोई साथी है,
मंजिल पर मटकी फूट गयी।।
निष्ठुरता से मुँह मोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।
जीवन घट डूबा उतराया ।
माँझी कोई पार न पाया ।
शक्ति थी पँखों में जबतक,
भर उड़ान सबको भरमाया ।।
ईश्वर से नाता जोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।
लक्ष्य सदा ही पाना होगा ।
जाना है तो जाना होगा ।
कितने जन्मों का फेरा है,
पूछ लौटकर आना होगा ।।
दर्पण को दंभी फोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।
ऋता शेखर 'मधु'