ऋतुराज की आहट हुई है, माघ का विस्तार है|
माँ शारदे ! घर में पधारो, पंचमी त्योहार है||१||
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है राह भीषण ज़िन्दगी की, पग कहाँ पर हम धरें|
मझधार में नौका फँसी है, पार कैसे हम करें ||
तूफ़ान में पर्वत बनें हम, शक्ति इतनी दो हमें |
बन कर चरण-सेवी रहें हम, भक्ति भी दे दो हमें ||
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देवी ! हमारी वंदना में, पुष्प का गलहार है |
माँ शारदे ! घर में पधारो, पंचमी त्योहार है||२||
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जब राग सारे टूटते हों, या सघन अवरोध हो |
दे दो हमें वरदान जिससे, आत्मबल का बोध हो ||
हम हैं अधूरे बिन तुम्हारे, यह हमें अनुबोध है |
गंगा बहाओ ज्ञान की तुम, यह सरल अनुरोध है||
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फैला तिमिर चहुँ ओर है माँ, दृष्टि की मनुहार है|
माँ शारदे ! घर में पधारो, पंचमी त्योहार है||३
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माँ ! दूर कर दो भाव सारे, जो जगत को पीर दे|
उस ज्ञान-रथ के सारथी हों, जो विकल को धीर दे|
इस आस में दर पर खड़े हम, कर रहे अनुराधना |
माता करो उपकार हमपर, पूर्ण कर दो साधना ||
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सद्भाव ही तो इस जगत में, प्रेम का आधार है|
माँ शारदे ! घर में पधारो, पंचमी त्योहार है||४
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संदेश अपना शांति का हो, दो हमें यह भावना |
भारत वतन में हर जगह हो, प्रीत की सद्भावना ||
साकार हों सपने सभी के, हो न तम से सामना |
आसक्त विद्या में रहें हम, बस यही है कामना ||
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जब तुम करो हम पर कृपा तो, स्वप्न भी साकार है|
माँ शारदे ! घर में पधारो, पंचमी त्योहार है||५