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Channel: मधुर गुँजन
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मैं वापस आऊँगा -- कहानी

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मैं वापस आऊँगा

     हवाई जहाज ने टेक ऑफ़ के बाद स्थिर रफ़्तार पकड़ ली थी| जल्द ही श्वेत बादलों को टक्कर देती हुई ऊँची उड़ान भरने लगी|पूरे आठ घंटे का सफर था|
     आज घर से निकलने के कुछ देर पहले पिता जी सीढ़ियों से गिर गये थे| कोई फ्रैक्चर तो नहीं हुआ था पर चोट अच्छी खासी आई थी| एक्स रे करवा लेना जरूरी था इसलिए उन्हें लेकर अस्पताल गया और समुचित इलाज करवाकर वापस आया| घर में पत्नी नेहा ने सब कुछ व्यवस्थित करके रखा हुआ था|

“पिता जी, मेरा मन अब जाने का नहीं हो रहा| जाने से मना कर दूँ क्या,” मैं चिंतित था||

“अरे नहीं बेटा, चोट लगी है तो धीरे धीरे ही ठीक होगी न| तू निश्चिंत हो कर जा| नेहा है न , वह सब संभाल लेगी|

मैंने नेहा की ओर देखा|

“पिता जी ठीक कह रहे रहे हैं, मैं उनकी देखभाल कर लूँगी| आप चिंता न करें|” नेहा ने भी स्वीकृति दे दी| नेहा के सेवा भाव और जिम्मेदार स्वभाव से मैं चार वर्षों में परिचित हो चुका था इसलिए नेहा पर पूरा विश्वास था|
     इसी भागदौड़ में मुझे थोड़ी थकावट हो गयी थी| हवाई ड्डे पर सभी औपचारिकताओं के समय भी मैं थका थका महसूस कर रहा था| हवाई जहाज में बैठकर स्थिरता आते ही मैंने आँखें बन्द कर लीं| मेरा ख्याल था कि मुझे नींद आ जाएगी|पर मन के भीतर का संसार इतना विशाल होता है कि पलक बन्द करते ही मनुष्य वहाँ विचरण करने लगता है| कम्पनी की ओर से वह लंदन जा रहा था| वहाँ मेरे मित्र नें अपने घर आने का न्योता दे रखा था| आँखें बंद करते ही मुझे वह दिन याद आ गया जब उसने आई आई टी कम्पीट करने के बाद काउंसेलिंग के लिए कॉलेज परिसर में कदम रखा था| सबने अपने अपने ब्रांच का चयन किया| उसके बाद बारी थी हॉस्टल में रूममेट चुनने की| लगभग सबने अपनी जोड़ी ढूँढ ली थी| मेरे पिता निर्णय नहीं ले पा रहे थे| कुछ लड़के दिग्गज लग रहे थै, कुछ के माता पिता की अकड़ देखने लायक थी| तभी एक सीधा सा लड़का अपने माता पिता के साथ वहाँ पर आया|

“क्या आप मेरे बेटे ऋषि के साथ अपने बेटे को रखना चाहेंगे| ये बहुत ही सीधा है| आपका बेटा भी मासूम लग रहा|”

मेरे पिता ने झट से हामी भर दी| वहीं से सफर शुरू हुआ हमारे साथ का| हमारी जोड़ी खूब जमने लगी| चार वर्षों तक हमने अपनी सभी बातें शेयर करना सीख लिया| यह भी संयोग ही था कि कैंपस सेलेक्शन में नौकरी भी हमें एक ही कंपनी में लगी|

     हमने मुंबई में साथ ही एक फ्लैट किराये पर लिया और रहने लगे| फ्लैट में अक्सर उसके पिता आकर रहते थे| कानपुर में उनका बिज़नेस था| ऋषि उनका इकलौता पुत्र था|

एक दिन उन्होंने बातों ही बातों में बताया कि वे अब ऋषि की शादी करना चाह रहे|

“अंकल ,आपने लड़की पसंद कर ली क्या?”

“हाँ बेटा, वह मेरे एक मित्र की लड़की है| बहुत ही शालीन , मृदुभाषी और मिलनसार लड़की है| बचपन से ही देखा है उसे| उन्हैं भी ऋषि पसंद है| हमारा फैमिली बिजनेस भी सँभल जाएगा|”

“अरे वाह अंकल, ये तो बहुत अच्छी बात है| अब देर किस बात की| फटाफट बहू लाइए|”

उसके एक महीने बाद ऋषि की शादी हो गयी|

     उसके बाद ऋषि ने अपना स्थानान्तरण कानपुर में ही करवा लिया| मुझे बहुत खुशी थी कि अंकल को सहारा मिल गया था बेटे- बहू का| चूंकि कंपनी एक ही थी तो अचानक एक दिन मेल पर पढ़ा कि ऋषि विदेश जा रहा| मैंने झट से उसे फोन लगाया|

“यार, सुना कि विदेश में बसने की तैयारी हो रही| अपना देश क्या बुरा है यार|”

‘बात अपने देश की नहीं साहिल, जाना है तो जाना है|”

“ऐसा भी क्या हो गया, अंकल के बारे में भी तो सोच|”

“पापा को हमदोनों से बहुत ज्यादा चाहतें है यार, इससे हमारे रिश्तों में दरार आने लगी है|मैं घर का बिजनेस नहीं सँभालना चाहता| बहुत मेहनत से पढाई की है तो नौकरी ही करूँगा| मेरी पत्नी भी नहीं चाहती कि टिपिकल भारतीय बहुओं की तरह घर के काम काज और माँ की सेवा में समय बिताए|”

“तब उसी शहर में अलग रह, भाभी को समझा| देश छोड़ कर भागने से क्या तू खुद को माफ कर पाएगा|”

इसका ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया|

अगले दस दिनों में ही वह पत्नी के साथ विदेश चला गया|

     वह सीधा सादा लड़का क्या सच में अन्दर से उतना ही सीधा था या फिर अंकल ने ही कुछ ज्यादा उम्मीदें पाल ली थीं, इसका उत्तर नहीं दे पाता था मन मेरा|

अब जब मुझे भी लंदन जाने का मौका मिला तो मैंने अंकल को फोन किया|

“अंकल, मैं लंदन जा रहा हूँ| क्या आप कुछ देना चाहेंगे ऋषि के लिए?”

“बेटा, मैं कुछ भी दूँगा तो वह लेगा या नहीं, यह तो नहीं मालूम| हाँ, उसके कुछ छोटे कपड़े हैं, वह ले जाओ उसके बेटे के लिए|”

“अरे वाह! आप दादा बन गये और ऋषि ने बताया भी नहीं| छोटे कपड़े दे दीजिए| और अंकल, आपके लिए क्या लाऊँ?”

“बस, अपने मोबाइल में कुछ फोटो ले आना जिसमें पोते को देखकर संतोष कर लूँगा|”

“जी,”कहते हुए मेरी आँख भर आई|

मैं पुराने दिनों की यादों में खोया हुआ था तभी जहाज लैंड करने की सूचना दी गयी| ओह! पिछले चार वर्षों को याद करते हुए पाँच घंटे बीत चुके थे|

लंदन पहुँचते ही सीधे ऋषि के घर गया| आवभगत की पूरी तैयारी थी| गपशप में समय निकल गया| रात का खाना खाकर ऋषि की पत्नी रसोई समेटने लगी| मैं ऋषि से अकेले में बात करना चाहता था इसलिए उसे लेकर बाहर निकल गया|

“अब बता ऋषि, क्या अंकल आंटी की याद नहीं आती?”

शायद ऋषि को भी इसी सवाल का इन्तेजार था| पर उसने कहा कुछ नहीं| बहाने से आँखों के पास हाथ ले जाकर उसने बूँदों को थाम लिया|

“ऋषि, अंकल ने तेरे लिए कुछ भेजा है| बिना पूछे देने की हिम्मत नहीं हुई| क्या देखना पसंद करेगा?”

“हाँ”, संक्षिप्त उत्तर देकर वह वापस घर की ओर मुड़ गया|

मैंने वह पैकेट ऋषि को थमा दिया| उसे देखते हुए फिर वह स्वयं को रोक नहीं पाया और फूटफूट कर रोने लगा| उसकी पत्नी भी शांत बैठी थी|

“अंकल के लिए कुछ देना चाहोगे ऋषि?”

“क्या दूँगा”

“मैं बताऊँ’, कहते हुए मैंने वीडियो कॉल लगा दिया|

दोनों एकटक एक दूसरे को देखते रहे| मैंने उसके बेटे को भी सामने कर दिया|

उस वक्त शब्द जरूरी न थे|

विडियो बंद करने से पहले मैंने पूछा,’कुछ कहना है?”

“मैं वापस आऊँगा पापा,” अचानक ऋषि ने कहा|

वीडियो कॉल बन्द करके मैं अपने बिस्तर पर चला गया| कभी कभी किसी रिश्ते को सुधारने के लिए किसी तीसरे का प्रवेश भी जरूरी हो जाता है, यह सोचते हुए धीरे धीरे मेरी पलकें मुँदने लगी थी|

मौलिक एवं अप्रकाशित

ऋता शेखर ‘मधु’

३१/०८/२०१९

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