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Channel: मधुर गुँजन
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वक़्त-- कविता

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वक़्त
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ये वक़्त भी क्या शय है

कितना कुछ समेटती

कितना कुछ बिखेरती

जाने कितने वादे किए

सपनों की टेकरी में

जाने क्या क्या इरादे दिए

कहीं झंझावात देती

कहीं खुशियों को मात देती

वो मरज़ी रही उसी की

कुछ सुनहरे कुछ रुपहले

मित्रों से मुलाकात देती

इतिहास भी उसी से है

कई राज भी उसी में है

परत दर परत न उधेरो उसे

उसकी अपनी रफ़्तार है

कहीं मीठी कहीं खार है

कहीं किनारा या मझधार है

जरूरत है कि हमसब

उसी रफ़्तार में बढ़े चलें

हर पल बीतना ही है

हर दिन सूरज भी आएगा

इस सच के साथ

हम अंधेरों से न डरें

हम हारकर भी न रुकें

कहीं तो होगी ही

कालीन फूलों की

कदम उधर बढ़ते चलें

ये वक़्त है, वो वक़्त है

हर वक़्त की अपनी कहानी

कहीं लिखी गयी

कहीं है जबानी

वक़्त में सब कुछ समाया

कर्मों की पोटली हो

लगन की हो सजावट

शालीनता हो साथ

न जुबाँ में हो गिरावट

देखो ,सुनो

आने लगी है चौखटों पर

उमंगों की तेज आहट

----- ऋता शेखर 'मधु'

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