सबको राह दिखाने वाले
हे सूर्य! तुझको नमन
नित्य भोर नारंगी धार
आसमान पर छा जाते
खग मृग दृग को सोहे
ऐसा रूप दिखा जाते
आरती मन्त्र ध्वनि गूँजे
तम का हो जाता शमन
हर मौसम की बात अलग
शरद शीतल और जेठ प्रचंड
भिन्न भिन्न हैं ताप तुम्हारे
पर सृष्टि में रहे अखंड
उज्ज्वलता के घेरे में
निराशा का होता दमन
जितना वेग तपन का धरते
उतना ही नीरद भर देते
बूँदों में वापस आकर के
तन मन की ऊष्मा हर लेते
साँझ ढले पर्वत के पीछे
शनै शनै करते गमन
हे सूर्य! तुझको नमन !
ऋता शेखर 'मधु'