कलकल नदिया है बही, छमछम चली बयार |
गिरिराज हैं अटल खड़े, लिए गगन विस्तार ||
लिए गगन विस्तार, हरी वसुधा मुस्काई ,
दूर्वा पर की ओस, धूप देख कुम्हलाई ||
तितली मधु को देख, मटक जाती है हरपल ,
छमछम चली बयार, बही है नदिया कलकल ||
गरिमा बढ़ती कार्य से, होता है गुणगान |
जग में सूरज चाँद सम, मिले सदा सम्मान||
मिले सदा सम्मान, नाम जग में होता है,
करते जो आलस्य, स्वप्न उनका खोता है |
ऋता करे स्वीकार, सतत प्रयत्न की महिमा,
होता गुणगान, कार्य से बढ़ती गरिमा ||
मन मन्दिर में शोभते, शिव सम सरल विचार |
सुधा-कलश को बाँटकर, गरल करें स्वीकार ||
गरल करें स्वीकार, जगत रौशन कर जाएँ ,
शीतल विल्व समान, मनः संताप मिटाएँ ||
मधु फूलों के बाग, सोहते ऋतु मगसिर में ,
शिव सम सरल विचार, शोभते मन मन्दिर में||
--ऋता शेखर 'मधु'
गिरिराज हैं अटल खड़े, लिए गगन विस्तार ||
लिए गगन विस्तार, हरी वसुधा मुस्काई ,
दूर्वा पर की ओस, धूप देख कुम्हलाई ||
तितली मधु को देख, मटक जाती है हरपल ,
छमछम चली बयार, बही है नदिया कलकल ||
गरिमा बढ़ती कार्य से, होता है गुणगान |
जग में सूरज चाँद सम, मिले सदा सम्मान||
मिले सदा सम्मान, नाम जग में होता है,
करते जो आलस्य, स्वप्न उनका खोता है |
ऋता करे स्वीकार, सतत प्रयत्न की महिमा,
होता गुणगान, कार्य से बढ़ती गरिमा ||
मन मन्दिर में शोभते, शिव सम सरल विचार |
सुधा-कलश को बाँटकर, गरल करें स्वीकार ||
गरल करें स्वीकार, जगत रौशन कर जाएँ ,
शीतल विल्व समान, मनः संताप मिटाएँ ||
मधु फूलों के बाग, सोहते ऋतु मगसिर में ,
शिव सम सरल विचार, शोभते मन मन्दिर में||
--ऋता शेखर 'मधु'