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Channel: मधुर गुँजन
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कर्मयोगी-लघुकथा

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कर्मयोगी
''मिसेज अणिमा, आपकी नियुक्ति यहाँ जीव विज्ञान के पद पर हुई है|स्नातक में आपने भोतिकी की पढ़ाई की हुई है| अभी इस विद्यालय में भौतिक विज्ञान के लिए कोई शिक्षक नहीं| बोर्ड की परीक्षा का समय नजदीक आ रहा| क्या आप बच्चों को भौतिकी पढ़ा देंगी?''प्राच्रार्य महोदय ने अनुरोध के भाव से कहा|
''किन्तु सर, ये सब्जेक्ट गणित के शिक्षक को पढ़ाना चाहिए''अणिमा ने कुछ सोचकर कहा|
''आपकी बात सही है| मैंने उनसे भी कहा था किन्तु....''प्राचार्य महोदय ने अपनी बात पूरी नहीं की|
''किन्तु''के आगे बोलने की जरूरत भी नहीं थी|
उच्च माध्यमिक विद्यालय में नियुक्त हुए अणिमा को लगभग एक महीना हो चुका था| नियुक्ति के बाद से उसने एक दिन के लिए भी अपना कोई भी क्लास मिस नहीं किया था जबकि कुछ सहशिक्षक बैठ कर गप्पें लड़ाते रहते| बरसों से बंद पड़ी प्रयोगशाला को खुलवाकर उसने सफाई करवाई और प्रयोग करवाने बच्चों को ले जाने लगी| बच्चे अणिमा मैम को पसंद करने लगे और यही बात पुराने शिक्षकों को नागवार लगने लगी| 
स्टाफ रूम में अणिमा कई कटाक्षों का शिकार होती रहती|
''आप तो बहुत काम करते हैं| इस बार राष्ट्पति अवार्ड के लिए आपका नाम जाना चाहिए|''
''इतना काम करके क्या होगा| ज्यादा तनख्वाह मिलेगी क्या''
''यह सरकारी संस्थान है| कोई नौकरी से थोड़े ही निकाल देगा|''
''हम जिस सब्जेक्ट के लिए आए हैं सिर्फ वही पढ़ाएँगे, दूसरा पढ़ाने से क्या मिलेगा| 
कर्मयोगियों की यहाँ कोई वैल्यू नहीं|''
प्राचार्य महोदय के प्रस्ताव पर यह सारी बातें अणिमा के मन में आने लगीं| उसे लगा कि क्यों वह इतनी मेहनत करे| इससे क्या फायदा होगा| फिर अगले ही पल प्राचार्य की उम्मीद भरी नजरें उसे उद्वेलित करने लगीं|
''जी सर, बच्चों के भविष्य का सवाल है और मैं तैयार हूँ|''
''मुझे आपसे यही उम्मीद थी''मुस्कुराते हुए प्रिंसिपल ने कहा|
''मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी''स्टाफ रूम में घुसते ही गणित के शिक्षक ने तोप दाग ही दिया|
_ऋता शेखर 'मधु'


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