ताटंक छंद
1
मोहन के माथे केशों की, अवली बड़ी निराली है|
हौले हौले खेल खेल कर, पवन हुई मतवाली है|
थिरक रही अधरों पर बंसी,तन्मय झूम रही गइया|
मोहिनी छवि नंदलाला की, निरखतीं यशोमति मइया||
2
रचकर लाली हाथों में तुम, ज़ुल्फ़ें यूँ बिखराती हो|
बादल की बूँदों से छनकर, इंद्रधनुष बन जाती हो|
चमका सूरज बिंदी बनकर, संगीत सुनाये कँगना|
करता जगमग तुलसी चौरा, तुम से ही चहके अँगना||
3
सीमा पर वह डटे हुए हैं, भारत की रखवाली में|
स्वर्ण बाल हैं भुट्टों के भी, कृषकों की हरियाली में|
सोच रहे जब देश के लिए, निज कर्तव्य निभा लेना|
लोक हितों की खातिर साथी, मन का स्वार्थ हटा देना||
--ऋता शेखर 'मधु'
16-14 पर यति...अन्त में गुरु गुरु गुरु