
चित्र गूगल से साभार
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क्वाफ़ी-आ/ रदीफ-जाने
रुख़ की बात को हवा जाने
हर दुआ को वही खुदा जाने
जो लगी ना बुझी जमाने में
इश्क की दास्ताँ वफ़ा जाने
ख़ाक में मिल रहे जनाज़े जो
क्यों नहीं दे रहे पता जाने
नेक जो भी रहे इरादों में
बाद में खुद की ही ख़ता जाने
अक्स मिलते रहेंगे किरचों में
टूट के राज आइना जाने
वक्त का करवटी इशारा था
आज तिनकों में आसरा जाने
जो रखे है गुरूर चालों में
है मुसाफ़िर वो गुमशुदा जाने
हौसले में जुनून है जिसके
गुलशनी राह खुशनुमा जाने
ख्वाब में भी वही नजर आए
दिल को क्या हो गया खुदा जाने
--ऋता शेखर ‘मधु’