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रोला छंद

रोला छंद
1
देखो आई रात, चाँद भी नभ में आया
झरते हरसिंगार, भ्रमर ने राग सुनाया
फूले सरसो खेत, पंक ने कमल खिलाये
दे बासंती भाव, फूल गेंदा हरषाये
2
हरे हुए हर पात, दूब की बात निराली
झूल रही है ओस, पवन बनती मतवाली
हौले हौले सूर्य, गरम होता जाता है
शिशिर शरद के बाद, ग्रीष्म ही मन भाता है
3
चाह रहे बदलाव, तनिक धीरज से रहना
यह तो है संग्राम, जिसे मिलकर के सहना
मन में रखकर आस, जहाँ में सूरज भरना
गम को पीछे छोड़, कालिमा हर क्षण हरना
--ऋता शेखर 'मधु'

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