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Channel: मधुर गुँजन
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बेपेंदी का लोटा-लघुकथा

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बेपेंदी का लोटा


“वेतनमान के लिए जबरदस्त रैली है| हम सभी कर्मचारियों को उसमें अवश्य भाग लेना चाहिए|”मुकेश वर्मा ने जोशीले स्वर में कार्यालय में सभी कर्मचारियों का आह्वान किया|

“बिल्कुल भाग लेना चाहिए| किन्तु हमलोग काम पर आ चुके हैं और रजिस्टर में उपस्थिति भी दर्ज कर चुके हैं| ऐसे में हमें अपने पदाधिकारी से पूछकर जाना चाहिए| यदि न जाने दें तो सामूहिक अवकाश ठीक रहेगा| हम अवश्य जाएँगे| हमारे अधिकारों का सवाल है,”दिनकर बाबू ने भी ओजपूर्ण शब्दों में हामी भरी|

सभी पन्द्रह कर्मचारी अपने पदाधिकारी के पास पहुँचे और जाने की इजाजत माँगी|
‘नहीं, मैं जाने की इजाजत नहीं दे सकता| जब जाना ही था तो पहले से अवकाश लेना चाहिए था| अब जाने पर मैं कार्यवाई करूँगा,” पदाधिकारी ने कहा|

“सच कहते हैं सर, जब उपस्थिति बन चुकी है तो जाने देना उचित नहीं| आप नियमानुसार ही काम करें,” दिनकर बाबू की यह बदली बदली भाषा देखकर सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे|

जाते जाते सबने सुना,” पेंदी को जाँचे बिना विरोध...हहहहहह”

--ऋता शेखर ‘मधु’

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