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Channel: मधुर गुँजन
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काला तोहफा-लघुकथा

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काला तोहफा
"देखो निम्मी, आज मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ|''
''क्या,''प्रश्न भरी निगाहों से निर्मला ने अंकित को देखा|
अंकित ने बिस्तर पर हल्के नीले रंग की काँजीवरम की साड़ी फैला दी और उसपर एक नेकलेस रख दिया जिसके लॉकेट पर हीरे का सुन्दर सा नग चमक रहा था|
निर्मला की आँखें खुशी से दमक गईं| उसने टैग पर कीमत देखी और अगले ही पल बुझ सी गई|
''क्या हुआ निम्मी,''अंकित ने उसके चेहरे के उतार चढ़ाव को भाँपते हुए कहा|
''मैंने कब कहा कि मुझे यह सब चाहिए| बचपन से मैंने सीखा है कि पाँव उतना ही पसारो जितनी बड़ी चादर हो| मैं यह जानती हूँ कि घर चलाने के लिए तुम कितनी मेहनत करते हो| मैं और बच्चे तुम्हारी आमदनी से बिल्कुल संतुष्ट हैं|''निम्मी ने बड़े ही सहज ढ़ग से कहा|
''जब भी मैं तुम्हें साड़ी या जेवर के दुकान में हसरत से इन चीजों को देखते हुए देखता था तो न दिला पाने की ग्लानि होती थी मुझे|''- शांत स्वर में अंकित बोल रहा था|
''तो क्या हुआ, चीजें तो दुकान में ही देखी जाती हैं| इसका अर्थ यह नहीं कि हम उन्हें खरीद ही लें|'' 
उसने ध्यान से निर्मला को देखा| उसके मुखमण्डल पर सिंदूरी आभा गहराती जा रही थी|
अंकित ने सामान समेटते हुए सोचा कि जमीर बेचकर खरीदे गए काले तोहफे से वह इस दिव्यता को धूमिल नहीं कर सकता|
-ऋता शेखर 'मधु' 

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