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Channel: मधुर गुँजन
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सुप्रभाती दोहे-2

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प्रतिपल स्वर्णिम रश्मियाँ, छेड़ रहीं खग गान
आकुल व्याकुल सी धरा, झटपट करे विहान२०

ध्यानमग्न प्राची रचे, अरुणाचल में श्लोक
मन की खिड़की खोल मनु, फैलेगा आलोक१९

सूरज भइया आज तो, कर लो तुम आराम
मई दिवस है मन रहा, फिर क्यों करना काम१८


तीखी तीखी धूप जब,पहुँचाए आघात
तब मेघो के नृत्य की, होती है शुरुआत१७


नित नवल शक्ति भक्ति का, दे जाता आयाम
उस ऊर्जा के स्रोत को, शत शत करें प्रणाम१६

ये भूमण्डल गोल है, सूरज भी है गोल
होंतीं बातें गोल जब, बज जाती है ढोल१५

ज्यों सूरज सजने लगा, आसमान के भाल
चलती कलछी देखकर, हँसे बाल गोपाल14

शनै शनै होने लगा, अर्द्धवृत्त से गोल
दिनकर जी को देखकर, अब तो आँखें खोल13

नव प्रभात की नव किरण, करे अँधेरा दूर
गहरी काली रात का, दर्प हुआ है चूर12

सप्त अशव की पीठ पर, सूर्य लगाता पंख
द्रुतगति से रश्मियाँ, चलीं बजाती शंख11
-ऋता शेखर 'मधु'

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