वो...जो अनदेखा है ...अनाम है...पर सबके साथ है...
2122 2122 2122 212
आज अपने साथ लाया ढेर सारे रंग वो
द्वेष को है छोड़ आया होलिका के संग वो
हर तरफ सद्भाव से निखरी पड़ी है ये फिजा
फाग की इन मस्तियों में साधता मिरदंग वो
मौसमी बदलाव का कोई असर है ना कहीं
ठंडई में है घोंटता किलकारियों का भंग वो
हरित पीले बैंगनी की धार मतवाली हुई
मुख पुते हैं लाल से जो लग रहा बजरंग वो
शोर गलियों में सुनें तो भागते डरपोक हैं
सामने आया खुशी से बन रहा शिवगंग वो
सरहदों पर जो मिटे अपने घरों के दीप थे
दस्तकें होली में देकर लौटता बेरंग वो
शब्द जो कागजों पर श्वेत श्यामल है 'ऋता'
मन उमंगित कर चला तो बन रहा बहिरंग वो
*ऋता शेखर 'मधु'*