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कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो
है बड़ी उसमें नज़ाकत दोस्तो
रूह तक में वो समाती जा रही
लफ्ज़ में रखती नफ़ासत दोस्तो
देश में अपने फले फूले सदा
हर ज़ुबाँ की है क़राबत दोस्तो
बोल अपनापन भरा कहती सदा
है यहाँ माँ की इबादत दोस्तो
क्यूँ विदेशी मूल की भाषा रहे?
इसलिए करती बग़ावत दोस्तो
विश्व में इज्जत की है हक़दार वो
कर रही अपनी वकालत दोस्तो
लोरियाँ कविता रुबाई या ग़ज़ल
हर जगह है वो सलामत दोस्तो
वो सहज भाषा मिठासों से भरी
मानते हम ये हकीकत दोस्तो
कंठ तालू मूर्ध जिह्वा ओष्ठ में
वर्ण की है बादशाहत दोस्तो
हिन्द हिन्दुस्तान हिन्दी भाव है
क्यूँ वहाँ है फिर सियासत दोस्तो
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ऋता शेखर 'मधु'