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Channel: मधुर गुँजन
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खिल कर महका मोगरा

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ये दोहे अनुभूति पर प्रकाशित हैं|

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नभ में खिलता चन्द्रमा, नीचे बेला फूल।
कुशल चितेरे ने रचा, लतिका को बिन शूल।।१

खिल कर महका मोगरा, घुली पवन में गंध।
अनुरागी बन अलि कली, बना रहे अनुबंध।।२

जहाँ बसा है मोगरा, वहाँ बसी है प्रीत।
एक पुष्प हँसकर दिया, पुलक गया मनमीत।।३

बेला की हर पाँखुरी, करे तुहिन से बात।
अलसाई सी चाँदनी, सोई सारी रात।।४

नवल धवल बेला करे, शंकर का शृंगार।
पावन तन मन में हुआ, शुभता का संचार।।५

फूला जब भी मोगरा, विरहन हुई उदास।
हृदय हूक से जो भरा, विकल हो गई आस।।६

भर अँजुरी में मोगरा, चल सजनी उस पार।
विष बेलों को काटकर, वहाँ उगाएँ प्यार।।७

आई बेला साँझ की, सूर्य हो गया अस्त।
बगिया में बेला खिला, भ्रमर हुआ अलमस्त।।८

मुठ्ठी में भर चाँदनी, और ओक में गंध।
बेला ने भी रच दिया, मोहक छंद निबंध।।९

शबनम के मोती झरे, कोमल हैं अहसास।
अँखियों में छाई नमी, बना मोगरा खास।।१०

वेणी में बेला गुँथे, रचे महावर पाँव।
डाले कंगना हाथ में, आना मेरे गाँव।।११

- ऋता शेखर 'मधु'
२२ जून २०१५

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