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बसंत...
फूली सरसो
सज गए खेत
मन मेरा
बासंती
ताल तलैया
पोखर पोखर
मस्त पवन में
खोकर खोकर
झूमे मोहक
कुसुम कुमुदनी
आम्रकुँज में
बौर सजे हैं
कूक बनी
रसवंती
फागुन आए
भँवरें गाएँ
फाग राग में
दहके पलाश
बनती चंपा
शिव तपस्विनी
अमरबेल पर
लिपट वल्लरी
छुईमुई
लजवंती
नीम गुलाबी
कोमल कोंपल
शुद्ध हवाएँ
तन है सुन्दर
विद्या वर दो
हे सुहासिनी
पीत वसन में
प्रीत सुन्दरी
रंगीली
जयवंती
*ऋता शेखर 'मधु'*