सरस्वती वंदना—हरिगीतिका छंद
यह शीश कदमों पर नवा कर, कर रहे हम वन्दना |
माँ शारदे, कर दो कृपा तुम, ज्ञान की है कामना||
अज्ञान में संतान तेरी, ज्ञान की मनुहार है |
उर में हमारे तुम पधारो, पंचमी त्यौहार है |१|
धारण मधुर वीणा किया है, दे रही सरगम हमें|
संगीत से ही तुम पढ़ाती, एकता हर पाठ में||
बस शांति हो संदेश अपना, दो हमें यह भावना|
भारत वतन ऐसा बने, हो, सब जगह सद्भावना|२|
पद्मासिनी करिये कृपा अब, हो सुवासित यह जहां
हंस पर जब माँ विराजें , शांति छा जाती यहाँ||
माता करो उपकार हमपर, कर रहे हम साधना|
साकार हों सपने सभी के, कर रहे आराधना|३|
इस ज़िन्दगी की राह भीषण, पत्थरों से सामना|
नहिं ठोकरें खा के गिरें, माँ, बुद्धि दे सँभालना||
तेरे बिना कुछ भी नहीं हम, सब जगह अवरोध है|
हों ज्ञान-रथ के सारथी हम, यह सरल अनुरोध है|४|
तूफ़ान में पर्वत बनें हम, शक्ति इतनी दो हमें|
तेरे चरण- सेवी रहें हम, भक्ति भी दे दो हमें||
करते तुझे शत-शत नमन हम, हो न तम का सामना|
आसक्त तुझमें ही रहें हम, बस यही है कामना|५|
ऋता शेखर 'मधु'